Thursday, 30 May 2013

दास्तान ए मुहब्बत

दास्तान ए मुहब्बत


दूर जा गिरा  कहीं  जाम ए उल्फत
लब पे आते ही हाथो से फिसल कर
दास्तान ए मुहब्बत अधूरी  रह  गई
जो चले गए तुम हमे तन्हा छोड़ कर
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हमारे प्यार की जिंदगी थी तुम्ही से
क्यूँ छोड़ दिया डूबने मंझधार में हमे
तकते  रहे हम अधखुली निगाहों से
और तुम कश्ती में सवार चलते बने
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 न कोई शिकवा न शिकायत तुमसे
 तुम पे ही यह दिल वार दिया हमने
आईना मुहब्बत का धुंधला  सा गया
देखी थी कभी तस्वीर ए यार जिसमे


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