अंधाधुंध पाश्चात्य सभ्यता के पीछे
बचपन में जब मै छोटी थी तब एक मूवी ,'यह रास्ते है प्यार के 'रीलिज़ हुई थी ,मेरे बहुत जिद करने पर भी मेरी माँ ने मुझे वह पिक्चर नहीं दिखाई क्योकि उस समय व्यस्क न होने पर सिनेमा हाल के अंदर घुसने भी नही दिया जाता था | वक्त के चलते जब टेलीविजन का जमाना आया ,तब एक दिन वही पिक्चर छोटे पर्दे पर आ गई ,मैने भी अपने अवयस्क बेटे को उसे देखने से मना कर दिया ,लेकिन उसने वह मूवी चुपके से देख ली और हैरानी से मुझसे पूछा ,''इस मूवी में ऐसा था ही क्या जो इसे सेंसर बोर्ड ने ऐ सर्टिफिकेट दिया था |'' उसकी बात सुन कर मै भी सोच में पड़ गई ,ठीक ही तो कह रहा था वह ,उसमे आजकल की फिल्मों तुलना में ऐसा कुछ आपतिजनक तो था ही नही ,जिसे फैमिली के साथ देखा न जा सके |हर पल, हर दिन ,बदलते समय के साथ साथ टेक्नोलोजी भी तेज़ी से बदल रही है ,इंटरनेट के इस जमाने में हमारे बच्चे हमसे बहुत आगे निकल चुके है ,टी वी पर समाचार बाद में आता है जबकि इंटरनेट पर वह पुराना हो चुका होता है, इस बदलते दौर में हम कहां तक अपने बच्चों पर अंकुश लगा सकते है |आजकल आधुनिकता की इस अंधी दौड़ में जहां हमारे देश की नई पीढ़ी अंधाधुंध पाश्चात्य सभ्यता के पीछे भाग रही है,वहां हम अभी भी अपने संस्कारों और परम्पराओं में बंधे हुए है ,उनका दुनिया के साथ चलना तो हमे अच्छा लगता है लेकिन अपने संस्कारों और परम्पराओं के घेरे में रहते हुए | जवानी की दहलीज़ पर कदम रखते ही हमारे बच्चों में बढ़ती उत्सुकता के चलते उन्हें कई अनदेखे रास्ते अपनी और आकर्षित करने लगते है ,यही वह समय होता है जब वह जिंदगी के किसी अनदेखे मोड़ पर भटक सकते है |माता पिता और बच्चों के बीच का आपसी विशवास ही उनका मार्गदर्शक बन उन्हें गुमराह होने से रोक सकता है| सेंसर बोर्ड की रिवाइज्ड समिति का यह फैसला ,जिन फिल्मों को रिलीज से पहले ‘ए’ सर्टिफिकेट दिया गया है उन्हें थोड़ी कांट-छांट करने के बाद रात ग्यारह बजे के पश्चात छोटे पर्दे अर्थात टेलीविजन पर प्रसारित किया जा सकता है। इस निर्णय के पीछे सेंसर बोर्ड समिति का यह कहना है कि रात ग्यारह बजे तक कम आयु के बच्चे सो जाते है ,लेकिन आजकल तो बच्चों में देर रात तक जागने का चलन बढ़ रहा है ,कई घरों में तो रात को किचन में मैगी पार्टीज़ भी चलती है ,बच्चों पर वातावरण का बहुत जल्दी प्रभाव पड़ता है ,ऐसे में देर रात में टी वी पर उन्हें आसानी से उपलब्ध अडल्ट फ़िल्में देखने की खुली छूट मिल सकती है ,जो उनकी मानसिकता पर गहरा प्रभाव डाल उन्हें पथभ्रष्ट कर सकती है ,ऐसी ही एक खबर मैने समाचारपत्र में पढ़ी थी जब देर रात में माँ बाप गहरी नींद सो रहे थे उस समय टेलीविजन पर कोई अंग्रेजी फिल्म देखते देखते उनके बच्चों ने जो सगे भाई बहन थे, वह आपस में शारीरिक सम्बन्ध स्थापित कर बैठे ,यह संस्कारों का अभाव था यां छोटे पर्दे द्वारा फैलाया गया मानसिक प्रदूष्ण ,सेंसर बोर्ड की रिवाइज्ड समिति को अपने इस निर्णय पर एक बार फिर से विचार करना चाहिए ,कही देर रात में फैलता यह मानसिक प्रदूष्ण परिवार और समाज के शर्मसार होने का कारण न जाए |
No comments:
Post a Comment