Saturday, 4 January 2014

ख़ुशी और भी है

खिले फूल बगिया में और भी है
 न हो  उदास मंज़िलें और भी है
माना   राहे   है  काँटों   से  भरी
ज़िंदगी  है तो  ख़ुशी  और भी है

रेखा जोशी

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