जनवरी का सर्द महीना था ,सुबह के दस बज रहे थे और रेलगाड़ी तीव्र गति से चल रही थी वातानुकूल कम्पार्टमेंट होने के कारण ठण्ड का भी कुछ ख़ास असर नही हो रहा था ,दूसरे केबिन से एक करीब दो साल का छोटा सा बच्चा बार बार मेरे पास आ रहा था ,कल रात मुम्बई सेन्ट्रल से हमने हज़रात निजामुदीन के लिए गोलडन टेम्पल मेल गाडी पकड़ी थी ''मै तुम्हे सुबह से फोन लगा रही हूँ तुम उठा क्यों नही रहे ''साथ वाले केबिन से किसी युवती की आवाज़ ,अनान्यास ही मेरे कानो से टकराई,शायद वह उस बच्चे की माँ की आवाज़ थी ,''समझ रहे हो न चार बजे गाडी मथुरा पहुँचे गी ,हाँ पूरे चार बजे तुम स्टेशन पहुँच जाना ,मुझे पता है तुम अभी तक रजाई में ही दुबके बैठे होगे , एक नंबर के आलसी हो तुम इसलिए ही तो फोन नही उठा रहे,बहुत ठण्ड लग रही है तुम्हे '' | वह औरत बार बार अपने पति को उसे मथुरा के स्टेशन पर पूरे चार बजे आने की याद दिला रही थी ,उसकी बातों से ऐसा ही कुछ प्रतीत हो रहा था मुझे | ''हाँ हाँ मुझे पता है तुम्हारा ,पिछली बार तुम चार बजे की जगह पाँच बजे पहुँचे थे ,पूरा एक घंटा इंतज़ार करवाया था मुझे ,इस बार मै तुम्हारा इंतज़ार बिलकुल नही करूँगी , अगर तुम ठीक चार बजे नही पहुँचे तो मै वहाँ से चली जाऊँ गी बस ,फिर ढूँढ़ते रहना मुझे , कहीं भी जाऊँ परन्तु तुम्हे नही मिलूँगी अरे मै अकेली कैसे आऊँ गी ,सामान है मेरे साथ ,गोद में छोटा बच्चा भी है ,आप कैसी बात कर रहे हो | ''ऐसा लग रहा था जैसे उसका पति उसकी बात समझ नही पा रहा हो i उसकी बाते सुनते सुनते और गाड़ी के तेज़ झटकों से कब मेरी आँख लग गई मुझे पता ही नही चला ,आँख खुली तो मथुरा स्टेशन के प्लेटफार्म पर गाड़ी रूकी हुई थी ,घड़ी में समय देखा तो ठीक चार बज रहे थे ,मैने प्लेटफार्म पर नज़र दौड़ाई तो देखा वह औरत बेंच की एक सीट पर गोद में बच्चा लिए बैठी हुई थी और उसकी बगल में दो बड़े बड़े अटैची रखे हुए थे ,लेकिन उसकी बेचैन निगाहें अपने पति को खोज रही थी ,पांच मिनट तक मै उसकी भटकती निगाहों को ही देखती रही ,तभी गाड़ी चल पड़ी और वह औरत धीरे धीरे मेरी नज़रों से ओझल हो गई | मालूम नही उसकी बेचैन निगाहों को चैन मिला याँ नही , उसका पति उसे लेने पहुँचा याँ नही ,लेकिन इतना तो मुझे उसकी बाते सुन कर विशवास हो गया था कि वह अपने पति का इंतज़ार अवश्य करे गी,जो कुछ भी वह फोन पर अपने पति से कह रही थी वह तो सिर्फ कहने भर के लिए था |
रेखा जोशी
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