Wednesday, 28 March 2018

है सृष्टि का नियम यही


मुस्कुराता यौवन
सदा बहार हरा भरा
सुंदर तन जीवन आनंद
बेपरवाह झूमता गाता
मदमस्ती में मतवाला

मौसम बदला
गई बासंती रुत जब
पतझर ने तब रंग दिखाया
टूटा डाल से अपनी ज्यूँ
पीला पत्ता
मुरझाया उड़ा संग पवन के
कहीं न फिर चैन पाया
रहे बदलते रँग मौसम
और
रही बदलती काया
जर्जर हुआ तन अंत में
कभी न फिर ठौर पाया
है सृष्टि का नियम यही
इक दिन तो माटी में
इसको
है मिल जाना

रेखा जोशी

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