मुस्कुराता यौवन
सदा बहार हरा भरा
सुंदर तन जीवन आनंद
बेपरवाह झूमता गाता
मदमस्ती में मतवाला
मौसम बदला
गई बासंती रुत जब
पतझर ने तब रंग दिखाया
टूटा डाल से अपनी ज्यूँ
पीला पत्ता
मुरझाया उड़ा संग पवन के
कहीं न फिर चैन पाया
रहे बदलते रँग मौसम
और
रही बदलती काया
जर्जर हुआ तन अंत में
कभी न फिर ठौर पाया
है सृष्टि का नियम यही
इक दिन तो माटी में
इसको
है मिल जाना
रेखा जोशी
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