Thursday, 8 March 2018

छूटा साथ गगन से मेरा

मै नीर  भरी दुख की बदली
आंसू  बन   नैनों  से छलकी
,
सीने  में  जज़्बात दबाये
पीर हृदय में शोर मचाये
,
कड़क कर दामिनी धमकाती
नभ के उर पर रही सिसकती
,
टूट कर आसमान से बिछड़ी
फिर भी पिघल पिघल कर बरसी
,
छूटा साथ गगन से मेरा
माटी  ही अब बना बसेरा

रेखा जोशी

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