Saturday, 28 July 2018

हर घड़ी खुशियाँ मनाना सीख लो

प्यार के नाम चलो आज इक जाम हो जाये
देखते  रहें  तुम्हें  सुबह  से  शाम  हो  जाये
उम्र भर चलें  सदा हम थामें  हाथों  में  हाथ
ख़ुदा  करे  ज़िंदगी  यूंही   तमाम   हो  जाये
...
ज़िन्दगी में मुस्कुराना सीख लो
गीत अब तुम गुनगुनाना सीख लो
दर्द से यह जिन्दगी माना भरी
हर घड़ी खुशियाँ मनाना सीख लो

रेखा जोशी

Wednesday, 25 July 2018

छलकते रहे नयन बहते रहे आँसू

छलकते रहे नयन
बहते रहे आँसू
खाते रहे कसमे हम
ज़िन्दगी भर
देते रहे दुहाई हम
अपनी वफ़ा की
लेकिन
गहराती शक की
खाईयों में
मिट गई उल्फत मेरी

देख उनको
कभी
थी बजा करती दिल मे
शहनाईयां
पर मिली ज़िन्दगी में हमे
रुसवाईयाँ
लेकिन गहराती रही
शक की खाईयां
वक्त चलता रहा
फासले बढ़ते रहे
दूर दिल होते रहे
पास रहते हुये भी  उनसे
जुदा हो गये
हम आजकल

रेखा जोशी

प्रेम ही है मधुबन

अजब पहेली
है यह जिंदगी हमारी
जितना भी इसे सुलझाए
उतनी ही उलझती जाये
टेढ़ी मे मेढ़ी राहें इसकी
हर मोड़ पर इसके 
जिया घबराये
न जाने
क्या लिखा है आगे
तकदीर में हमारी
कर भरोसा खुद पर अपने
राह पकड़ लो प्रेम की
जला कर दीपक नेह का
फैला उजियारा पथ पर
प्रेम ही है जीवन
प्रेम ही है मधुबन
प्रेम गीत
प्रेम ही है संगीत
डूब कर प्रेम सागर में
लहर लहर कर प्रेममय

रेखा जोशी

Friday, 20 July 2018

शत शत नमन नीरज जी को


हस्ती थी वह दुनिया में इक जानी मानी
गीतों  में   बहती  सदा  प्रेम  की  रवानी
सो गये चिरनिन्द्रा में  चले  गये  वह  दूर
लिख गये नीरज जी जीवन  की कहानी

रेखा जोशी

Thursday, 19 July 2018

बाढ़

ऊफ यह बाढ़
रह जाती है अखबार की
इक खबर बन कर
या दिखते टेलीविजन पर
डूबे हुए घर
चहुं ओर जलथल
है पढ़ते देखते हम
बाढ़ से पीड़ित लोगों की
बेबसी लाचारी
फिर फेंक अखबार को एक ओर
टेलीविजन बंद कर
है भूल जाते उनकी व्‍यथा
नहीं महसूस कर पाते हम
उनकी भूख उनकी पीड़ा
डूबे हुए घरों में तैरती गंदगी
कितने असंवेदनशील
हो जाते हैं हम
बस छोड देते उनको
हाल पर उनके
इक आम खबर की तरह

रेखा जोशी

बुत हूँ मैं

सिर पर बैठे
चील, चिड़िया या कबूतर
क्या अंतर पड़ता है मुझे
मै तो बुत हूँ इक
नहीं उड़ा सकता किसी को भी
टुकर टुकर रहता हूँ देखता

सोचता हूँ आखिर
क्यों निर्माण किया मेरा
नाचते कूदते कभी वह सिर पर मेरे
झेलता हूँ कभी गंदगी भी उनकी
और मै बस
टुकर टुकर रहता हूँ देखता

आंधी के थपेड़े खाता
बारिश में भीग जाता
सर्दी हो या गर्मी
चाहे तपती हवाएं चलें
मुझे तो है यहीं खड़े रहना
और मैं सब
टुकर टुकर रहता हूँ देखता

रेखा जोशी

Wednesday, 18 July 2018

मुहब्बत की राहें


प्रियतम
आओ  चलें हम
सागर किनारे
कितनी ख़ूबसूरत हैं देखो
यह मुहब्बत की राहें
बाहें फैलाये हमे
है  बुला  रही
और हम उन पर
चलते ही  रहें निरंतर

दुनिया से दूर
खोये रहे हम
इक  दूजे में  सदा
ज़िंदगी भर
थामें इक  दूजे का हाथ
कदम से कदम मिला कर
चलते ही  रहें निरंतर

भूल कर
दुनिया के  सारे गम
बस  मै और तुम
निभाते रहें साथ
मंजिल मिले न मिले
है कोई नही  गम
बस रहें महकती सदा
प्रेम की राहें
और हम
चलते ही  रहें निरंतर

 रेखा जोशी

Sunday, 15 July 2018

बरसात

आसमां से आज फिर जम कर बरसात हुईं
दिल  मचलता  रहा  तुमसे न मुलाकात हुई
रिमझिम  बरसी  बूंदें  है  नहाया  तन बदन
अब  के सावन पिया न  जाने क्या बात हुई

रेखा जोशी

Thursday, 12 July 2018

खुशियाँ ही खुशियाँ

दीपक से
मैंने जलना सीखा
गिरतों को मैंने उठाया
फूलों के संग संग
मुस्कुराना सीखा
गुन गुन करते
भँवरों से
गुनगुनाना सीखा
रंग बिरंगी चाहतें मेरी
आसमां छूने को मचलती
देख रंगीन इंद्रधनुष को
बादल में
आशियाना बनाती
कल्पनाओं के
महल फिर सजाती
हवाओं संग खेलती
बादल पकड़ती
बजाती हूँ साज़ प्रेम का
मै सबका मन बहलाती
गले लगा कर
प्रेम से सबको
खुशियाँ ही खुशियाँ
बांटती

रेखा जोशी

Wednesday, 11 July 2018

ओ चाँद पाना चाहती हूँ तुम्हें


ओ चाँद
पाना चाहती हूँ तुम्हें
जैसे ही करीब आती हूँ तेरे
उतने ही हो जाते हो
तुम दूर बहुत दूर  मुझसे
..
मै तो
हर यतन कर हारी चंदा
उपर भी  आ  गई  धरा  से
जितना पास आती हूँ  मैं  तेरे
उतने ही हो जाते हो
तुम दूर बहुत  दूर  मुझसे
.
बढ़ती जा रही
तुम्हें पाने की चाहत
और तुम
बढ़ाते ही जा रहे हो  मुझसे  दूरियाँ
आ जाओ  पहलू  में  मेरे
मत जाओ चंदा
तुम दूर बहुत दूर  मुझसे

रेखा जोशी

Wednesday, 4 July 2018


ढूँढ   रहे   लगा   तेरी   गलियों    के   फेरे
पड़   गये    छाले   अब   तो  पैरों   में  मेरे
सूखे  नयन   के  आँसू    भी  याद  में  पिया
अस्त   व्यस्त   हुई   है  जिंदगी   बिन   तेरे

रेखा जोशी

 

Tuesday, 3 July 2018

माना दर्द भरा संसार यह ज़िंदगी


माना दर्द भरा संसार यह ज़िंदगी
लेकिन फिर भी है दमदार यह ज़िंदगी
,
आंसू  बहते  कहीं  मनाते जश्न  यहां
सुख दुख देती हमें अपार यह ज़िंदगी
,
रूप जीवन का बदल रहा पल पल यहां
लेकर नव रूप करे सिंगार यह जिंदगी
,
ढलती शाम डूबे सूरज नित धरा पर
आगमन भोर का आधार यह ज़िंदगी
,
चाहे मिले ग़म खुशियां मिली है हज़ार
हर्ष में खिलता हुआ प्यार यह ज़िंदगी

रेखा जोशी

शाम गमगीन साजन मिली क्या करें

शाम गमगीन साजन मिली क्या करें
रात में शाम अब यह  ढली क्या करें
..
छोड़ हम को अकेले चले तुम कहाँ
देख कर आज सूनी गली क्या करें
....
साथ दोनों चले ज़िन्दगी में सजन
साथ छूटा मची खलबली क्या करें
....
फूल खिलते नहीं  प्यार में अब यहाँ
बाग़ में आज खिलती कली क्या करें
.....
दर्द में डूब कर क्या हमें है मिला
ज़िन्दगी जो नही अब खिली क्या करें

रेखा जोशी