प्रियतम
आओ चलें हम
सागर किनारे
कितनी ख़ूबसूरत हैं देखो
यह मुहब्बत की राहें
बाहें फैलाये हमे
है बुला रही
और हम उन पर
चलते ही रहें निरंतर
दुनिया से दूर
खोये रहे हम
इक दूजे में सदा
ज़िंदगी भर
थामें इक दूजे का हाथ
कदम से कदम मिला कर
चलते ही रहें निरंतर
भूल कर
दुनिया के सारे गम
बस मै और तुम
निभाते रहें साथ
मंजिल मिले न मिले
है कोई नही गम
बस रहें महकती सदा
प्रेम की राहें
और हम
चलते ही रहें निरंतर
रेखा जोशी
No comments:
Post a Comment