Thursday, 12 July 2018

खुशियाँ ही खुशियाँ

दीपक से
मैंने जलना सीखा
गिरतों को मैंने उठाया
फूलों के संग संग
मुस्कुराना सीखा
गुन गुन करते
भँवरों से
गुनगुनाना सीखा
रंग बिरंगी चाहतें मेरी
आसमां छूने को मचलती
देख रंगीन इंद्रधनुष को
बादल में
आशियाना बनाती
कल्पनाओं के
महल फिर सजाती
हवाओं संग खेलती
बादल पकड़ती
बजाती हूँ साज़ प्रेम का
मै सबका मन बहलाती
गले लगा कर
प्रेम से सबको
खुशियाँ ही खुशियाँ
बांटती

रेखा जोशी

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