Thursday 19 July 2018

बुत हूँ मैं

सिर पर बैठे
चील, चिड़िया या कबूतर
क्या अंतर पड़ता है मुझे
मै तो बुत हूँ इक
नहीं उड़ा सकता किसी को भी
टुकर टुकर रहता हूँ देखता

सोचता हूँ आखिर
क्यों निर्माण किया मेरा
नाचते कूदते कभी वह सिर पर मेरे
झेलता हूँ कभी गंदगी भी उनकी
और मै बस
टुकर टुकर रहता हूँ देखता

आंधी के थपेड़े खाता
बारिश में भीग जाता
सर्दी हो या गर्मी
चाहे तपती हवाएं चलें
मुझे तो है यहीं खड़े रहना
और मैं सब
टुकर टुकर रहता हूँ देखता

रेखा जोशी

No comments:

Post a Comment