Saturday, 30 November 2013

उत्सव

हौले से  झोंकों  ने पवन  के फूलों को सहलाया 
गुनगुना रहे भौरों ने भी मधुर गीत गुनगुनाया 
बाल उपवन में खिल रहे है भांति भांति के फूल 
फूलों पर नाच रही तितली ने भी उत्सव मनाया 

रेखा जोशी 

फूल मेरे आंगन के

खेल रहे है मिलजुल कर इस बगिया में 
नन्हे मुन्ने फूल मेरे आंगन के 
मस्त मस्त झूल रहें डाली डाली पे 
हर्षित हो रहा है मन देख कर उन्हें
भाग रहे उड़ती तितलियों को पकड़ने
फूलों के संग संग कभी मुस्कुराते
मेरे घर आंगन में खेलते बच्चे
चम्पा चमेली गुलाब सा महका रहे

रेखा जोशी

Friday, 29 November 2013

सपने बीनता

सुबह सुबह
ठिठुरती
सर्दी
कूड़े का
 ढेर
बीनता
सपने
टुकड़ों में
फलों के
रोटी के
नही सोऊँगा 
खाली पेट
सिर पर
होगी छत
कह रहा वो
मांगता वोट
दे दूँगा
जीते हारे
बला से
सपना
सच हो
मेरा

रेखा जोशी



Thursday, 28 November 2013

जननी जन्म भूमि


आँचल में बीता बचपन जननी जन्म भूमि 
लुटा दूँगा जान तुझ पर जननी जन्म भूमि 
तिलक इस पावन माटी का  माथे सजा  लूँ 
माटी बहुत अनमोल है  जननी जन्मभूमि 

रेखा जोशी 

Wednesday, 27 November 2013

तुम्हारी मुस्कुराहट


खिली खिली धूप है तुम्हारी मुस्कुराहट 
खुदा  का  नूर  है  तुम्हारी   मुस्कुराहट 
भूल जाते है देख  तुम्हे दुनिया को हम 
जादू  कर  देती  है तुम्हारी  मुस्कुराहट 

 रेखा जोशी   

Tuesday, 26 November 2013

फिर होगी सुबह

समुद्र तट पर 
चल रहे किनारे किनारे 
मचा रही शोर 
आती जाती लहरे 

सूरज चूम रहा
सागर का आंचल 
रंग सिंदूरी चमक रहा 
आसमां भरा गुलाल 

जीवन चलता रहा 
ढलती है शाम 
फिर होगी सुबह 
होगा नव नाम 

रेखा जोशी 

ढूँढ रहीं इक मंदिर

ढूँढ रहीं
इक मंदिर
होती है
पूजा जहाँ
तुम्हारी
वह स्थान
जो जोड़े
इक दूजे को
धर्म हो
जहाँ
मानवता
जहाँ
मानव का
मानव से
हो प्यार
न हो
टकराव
उत्थान
हो जहाँ
मानवता का
 ढूँढ रहीं
वह  मंदिर

रेखा जोशी







Sunday, 24 November 2013

लम्बी होती परछाईयाँ

लम्बी होती 
परछाईयाँ 
एह्साह 
दिला रही है 
शाम के 
ढलने का 
उदास हूँ 
पर शांत 
ज़िंदगी की 
ढलती शाम 
आ रही है 
करीब 
धीरे धीरे 
लेकिन 
पा रहीं हूँ 
सुकून 
मिला जो 
मुझे है 
तुम्हारा साथ 

रेखा जोशी 

ममता की मूरत नारी


नारी जीवन
ममता की मूरत
लुटाती  प्रेम
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
बन कर माँ
पालन करती है
इस जग का
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
भार्या बनती
कदम कदम है
साथ निभाती
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
औरत एक
है ममता लुटाती
रूप अनेक
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
सूना आँगन
जो नही महकता
बिन बिटिया

 रेखा जोशी


Saturday, 23 November 2013

समय की धारा

मत तोड़ना दिल उनका जो रहते करीब हमारे है 
तोड़  देना  दिलों  के  बीच  जब  आयें  दीवारे है 
पल पल करवट ले रही है यह देखो समय की धारा 
समेट लो खुशिया जो बिखरी आस पास तुम्हारे है 



रेखा जोशी 

महंगाई [हास्य व्यंग ]


जब सुबह सुबह 
गर्मागर्म 
प्रेमपूर्वक
चाय का प्याला 
हमारी
प्यारी श्रीमती जी ने 
हमारे
हाथ में जब थमाया 
हमने भी उनका
हाथ पकड़ प्रेम से
पास बिठाया 
झटक कर हाथ
श्रीमती जी ने उसमे
बड़ा सा झोला पकड़ाया 
कड़कती
आवाज़ में उन्होंने 
सब्ज़ी लाने का
आदेश फरमाया 
सस्ती  घास फूस ले आना 
टमाटर आलू को न हाथ लगाना 
प्याज का तो
सोचना भी मत
इसने
हमे खूब  रुलाया 
महंगाई का
क्या करें जनाब 
इससे
हमारा बजट
गड़बड़ाया 
इससे हमारा
बजट गड़बड़ाया 

रेखा जोशी 

Thursday, 21 November 2013

तुम्हारा ख्याल


खूबसूरत थी जिन्दगी जब  हाथो में हाथ था  तुम्हारा
खूबसूरत थी जिंदगी  जब प्यार भरा साथ था तुम्हारा
 दे कर दर्द कहाँ चले गए हमे अपनी यादों में छोड़ के
पाते है हम चैन औ सुकून ख्याल आता है जब तुम्हारा

रेखा जोशी

चार दिन की चांदनी



किस बात का गरूर बंदे तू करता है 
चार दिन की चांदनी पर इठलाता है 
रह जाये गा सब कुछ यहीं पर इक दिन 
जब यहाँ से प्राण पखेरू हो जाता है 

रेखा जोशी 

सूरज की चमक

सज रही है महफ़िल चाँद तारों की चमक से 
इतरा रहे है सभी  अपनी अपनी चमक से 
लेकिन रौशन नहीं हुआ यह जहां अभी तक 
छुप जाएँगे सब गगन में सूरज की चमक से 

रेखा जोशी 

Wednesday, 20 November 2013

सिर्फ तुम ही तुम

आये हो जब से तुम घर में हमारे 
बढ़ गई  धड़कने  नाम से तुम्हारे 
दिल में रहते हो अब सिर्फ तुम ही तुम 
आँखों में बसे सपने है तुम्हारे 

रेखा जोशी 

Tuesday, 19 November 2013

तन्हा सिर्फ तन्हा

संघर्ष है
यह ज़िंदगी
कब गुज़रा
बचपन
याद नही
आया
होश
जब से
तभी से
भाग
रहा हूँ
संजों
रहा हूँ
खुशियाँ
सब के
लिए
थे अपने
कुछ
थे पराये
आज
निस्तेज
बिस्तर पर
पड़ा देख
रहा हूँ
समझ
रहा हूँ
अपनों को
और
परायों को
था कल भी
और
हूँ आज भी
संघर्षरत
तन्हा
सिर्फ
तन्हा

रेखा जोशी





Tuesday, 12 November 2013

आत्म हत्या-आखिर क्यों करते है लोग ?

आत्म हत्या-आखिर क्यों करते है लोग ?

सुबह सुबह अखबार खोला तो निगाह पड़ी एक छोटी सी खबर  ,''आत्महत्या के आंकड़ों पर ,जिसमे एक वर्ष में भारत में अस्सी हज़ार पुरुष और चालीस हज़ार महिलायों द्वारा आत्महत्या का उल्लेख था '',पढ़ते ही मन खिन्न और उदास सा हो गया। आखिर क्यों करते है लोग आत्म हत्या ,कोई कैसे अपनी ज़िंदगी को  समाप्त कर देता है ?

हम सब जानते है कि अपने प्राण सबको प्यारे होते है ,हर कोई एक खुशहाल ज़िंदगी जीना चाहता है ,आखिर फिर  कौन सी मजबूरी में इंसान ऐसा घिर जाता है या कौन सा ऐसा दुखों का पहाड़ उस पर टूट जाता है कि उसके सामने ज़िंदगी के कोई मायने नही रह जाते और वह  बेबस  हो  कर मौत को गले लगा लेता है ,यह सोच कर ही रोंगटे खड़े हो जाते है ,अपने ही हाथों अपनी ज़िंदगी को मिटा देना ,आखिर क्या चल रहा होता  है उस व्यक्ति के अंतर्मन में उस समय जो उसे खुद को ही मिटा देने पर मज़बूर कर देता है l

जिंदगी माना की चुनौतियों से भरी हुई है और कई बार  हम  चुनौतियों से निपटने में अपने आप को असमर्थ पाते हैं, जीवन की कठिनाइयों को झेल नहीं पाते और खुद को मौत के हवाले कर देते हैं, लेकिन अगर उन कमज़ोर लम्हों में अपनी सोच को सकारात्मक दिशा दें और चुनौतियों से जूझने का रास्ता ढूंढने की कोशिश करें तो उन हताश पलों से निकला जा सकता है l

रेखा जोशी 


Monday, 11 November 2013

बिगड़े गा क्रोधाग्नि से सुन्दर रूप तेरा


महाकाल ने  जब जब भी है रौद्र रूप धरा,
था भस्म हुआ सब कुछ जब खुला नेत्र तीसरा।
पिघल जाते पत्थर भी धधक रही ज्वाला में 
बिगड़े गा क्रोधाग्नि से सुन्दर रूप तेरा 

रेखा जोशी

,लालच की अन्धी दौड़

लालच की अन्धी दौड़  ,एक कमरे वाले को दो चाहिए ,कोठियों ,फ़ार्म हाउसिज़ के मालिकों की निगाहें मुकेश अंबानी पर है | उसका दोस्त हवाई जहाज में सफर कर सकता है तो वो क्यों नही है,  ,दीन ईमान को ताक पे रख कर ,चाहिए पैसा, काला हो यां सफ़ेद  उफ़  लालच ,भ्रष्टाचार की जड़ ,फैलती जा रही है खरपतवार जैसे ,सींच  दिया इसने देश में कई  घोटालों को :,देश खोखला हो तो हो ,लालच के अंधों को कोई सरोकार नही|

रेखा जोशी 

बहता चल धारा संग

बहता पानी नदिया का 
चलना नाम जीवन का 
बहता चल धारा संग  
तुम में रवानी
है हवा सी 
खिल उठें  वन उपवन 
महकने लगी बगिया 
रुकना नही चलता चल 

रेखा जोशी 

Sunday, 10 November 2013

और आईना टूट गया [ बाल कथा ]


प्यारे बच्चो मै आप सब से एक सवाल पूछती हूँ ,क्या तुम्हारे साथ कभी ऐसा हुआ है कि गलती तुम्हारे किसी छोटे भाई बहन से हुई हो और उसकी सजा तुम्हे मिली हो ? ,अगर किसी को ऐसी सजा मिली हो तो उसे कितना गुस्सा आया होगा ,मै  इसे खूब समझ सकती हूँ ,जब मै छोटी थी बात तब की है ।

दिवाली से पूर्व जब घर में सफेदी और रंगाई पुताई का काम चल रहा था ,मेरे मम्मी पापा कुछ जरूरी काम से घर से बाहर गए हुए थे ,पूरे घर का  सामान बाहर आँगन  में बिखरा हुआ था ,घर  के सभी कमरे लगभग खाली से थे और मेरे छोटे भाई बहन मस्ती में एक कमरे से दूसरे कमरे  में  छुपन छुपाई खेलते हुए इधर उधर शोर शराबा करते हुए भाग रहे थे,लेकिन मै सबसे बड़ी होने के नाते अपने आप को उनसे अलग कर लेती थी ,उन दिनों मुझे फ़िल्मी गीत सुनने का बहुत शौंक हुआ करता था ,बस जब भी समय मिलता मै  रेडियो से चिपक कर गाने सुनने और गुनगुनाने लग जाती थी ,उस दिन भी मै रेडियो पर कान लगाये गुनगुना रही थी ,उस कमरे में सामान के नाम पर बस एक ड्रेसिंग टेबल और एक मेज़ पर रेडियो था  जहां खड़े हो कर मै अपने भाई बहनों की भागम भाग से बेखबर मे संगीत की दुनिया में खोई हुई थी ,तभी बहुत जोर से धड़ाम की आवाज़ ने मुझे चौंका दिया ,आँखे उठा कर देखा तो ड्रेसिंग टेबल फर्श पर गिर हुआ था और उस  खूबसूरत आईने के अनगिनत छोटे छोटे टुकड़े पूरे फर्श पर बिखर हुए थे,वहां उसके पास खड़ी मेरी छोटी बहन रेनू जोर जोर से रो रही थी ,ऐसा दृश्य देख मेरा दिल भी जोर जोर से धडकने लगा था ,मै भी बुरी तरह से घबरा गई  थी ,एक पल के लिए मुझे ऐसा लगा कहीं रेनू को कोई चोट तो नही आई ,लेकिन नही वह भी बुरी तरह घबरा गई थी ,क्योकि वह खेलते खेलते ड्रेसिंग टेबल के नीचे छुप गई थी और जैसे ही वह बाहर आई उसके  कारण  ड्रेसिंग टेबल का संतुलन बिगड़ गया और आईना फर्श पर गिर कर चकना चूर हो गया था ।

हम दोनों बहने डर  के मारे वहां से भाग कर अपने नाना के घर जा कर दुबक कर बैठ गई ,जो कि हमारे घर के पास ही था ,कुछ ही समय बाद ही वहां पर हमारी मम्मी के फोन आने शुरू हो गए और फौरन हमे घर वापिस आने के लिए कहा गया ,मैने रेनू को वापिस  घर चलने  के लिए कहा परन्तु वह डरी  हुई वहीं दुबकी बैठी रही ,बड़ी होने के नाते मुझे लगा कि हम कब तक छुप कर बैठे रहें गे ,हौंसला कर मै  घर की और चल दी और मेरे पीछे पीछे रेनू भी घर आ गई । जैसे ही मैने घर के अंदर कदम रखा एक ज़ोरदार चांटा मेरे गाल पर पड़ा ,सामने मेरी मम्मी खड़ी थी । मै हैरानी से उनका  मुहं देखती रह गई  ,''यह क्या गलती रेनू ने की और पिटाई मेरी '' बहुत गुस्सा आया मुझे अपनी माँ पर । अब बताओ बच्चो मेरी माँ ने गलत किया न ,मुझे मालूम है तुम सब मेरे साथ हो ,मेरी मम्मी ने आखिर मुझे क्योकर मारा जबकि गलती मेरी छोटी बहन से हुई थी ,बहुत रोई थी उस दिन मै ।

आज जब भी मै पीछे मुड़ कर उस घटना को याद करती हूँ तो फर्श पर बिखरे वो आईने के टुकड़े मेरी आँखों के सामने तैरने लगते है और अब मै समझ सकती हूँ कि वह चांटा मेरी मम्मी ने मुझे मार कर मुझे मेरी ज़िम्मेदारी का मतलब समझाया था ,अपने मम्मी पापा  की अनुपस्थिति में बड़ी होने के नाते मुझे अपने घर का ध्यान रखना चाहिए था ,मुझे अपनी बहन रेनू को ड्रेसिंग टेबल के नीचे छुपने से रोकना चाहिए था । वह चांटा मुझे मेरी लापरवाही के कारण पड़ा था

 रेखा जोशी 

सशक्त पुल

नदी के दो किनारे
मिल न पायें कभी 
साथ साथ चलते हुए 
बिलकुल हमारी तरह 
अलग अलग 
समय की
बहती धारा के संग 
न जाने 
कैसे बाँध दिया हमे
इक सुंदर नन्ही परी
जिसने जोड़ दिया 
नदी के दो पाटों 
को
एक सशक्त पुल से 

रेखा जोशी 

Saturday, 9 November 2013

पगला दिल

भावनाओं की 
उमड़ती
बाढ़ में 
डूब जाता 
है यह 
पगला दिल 
और बहने 
लगती है 
आँखों से 
अविरल 
आँसूओं की 
बरसात 
हूक सी 
उठती है 
रह रह कर 
और दर्द से
भीग जाता है 
यह मन 

रेखा जोशी 

Friday, 8 November 2013

श्रृंगार रस [दो मुक्तक ]

श्रृंगार रस [दो मुक्तक ]

सुहानी चांदनी से भीगता यह बदन
हसीन ख्वाबों के पंखों तले मेरा मन
उड़ने लगी चाहतें ले के संग कई रंग
नाचे मन मयूरा  बांवरा ये तन मन
..................................................
जन्म जन्म के साथी हो तुम मेरे 
उड़  रही  हूँ  संग  हवाओं  के  तेरे 
ले  लो अब आगोश में  मुझे अपने 
ओ मेरे हमसफ़र ओ हमदम  मेरे 

रेखा जोशी 

Thursday, 7 November 2013

जब पंख कट जाते है

होती है
पीड़ा
कितनी
जब
शूल से
चुभते है
पल कुछ
आते है
जीवन में
क्षण
ऐसे भी
जब छा
जाता है
तिमिर
चहुँ ओर
सूझती नही
कोई भी
राह
जब बन
जाते है
फूल भी
कांटे
चाह हो
उड़ने की
जब
पंख कट
जाते है

रेखा जोशी 

चमकेगा सूरज फिर


चाहते हो रोशनी जीवन में तुम 
मत घबराना फिर अन्धकार से तुम 
सुबह आंगन चमकेगा सूरज फिर 
उजाले को लेना आगोश में तुम 

रेखा जोशी 

तुम ही तुम

कहा 
नदी ने 
सागर से 
मिटा कर 
अस्तित्व 
अपना 
मै अब 
समा 
गई हूँ 
तुम में 
पूर्ण 
हो गई मै 
रहे बस 
तुम 
ही 
तुम 

रेखा जोशी 

Tuesday, 5 November 2013

कर पहचान असत्य और सत्य की

देखा 
झांक कर 
मन के 
आईने में 
नही 
पहचान 
पाया 
खुद को 
धूल में 
लिपटे 
अनेक 
मुखौटे 
नहीं था 
वो मै 
मूर्ख मनवा 
पहचान ले 
खुद को 
साफ़ कर ले 
धूल को 
और 
फेंक दे 
सब मुखौटे 
कर पहचान 
असत्य 
और 
सत्य की 

रेखा जोशी 

''भाई दूज'' पर सभी को हार्दिक शुभकामनायें

भाई बहन के इस पावन त्यौहार ''भाई दूज'' पर सभी को हार्दिक शुभकामनायें 

माहिया 

सूरज जैसा चमके 
है सुंदर मुखड़ा 
टीका माथे दमके 
……………
मेरे भैया आये 
सूरत चन्दा सी 
बहना वारी जाये

रेखा जोशी

Monday, 4 November 2013

जब अच्छाई रोती है

है दुःख
ही
दुःख
जीवन में
जलता है
हृदय
अपमानित
होता है
जब यहाँ
सत्य
सम्मानित
होता है
असत्य
कहलाता
मूर्ख
जब साधू
कठिन
होता है
जीना
शूल सा
कुछ
चुभता है
दिल में
जब बुराई
मनाती है
खुशियाँ
और
अच्छाई
रोती है

रेखा जोशी


Sunday, 3 November 2013

तेरा ख्याल


जीवन का  संगीत  है तेरा यह ख्याल 
उस प्रभु का आशीष है तेरा यह ख्याल 
बसा है तेरा ख्याल  इस मन मंदिर में 
गुनगुना रहा  सदा   है तेरा यह ख्याल 

रेखा जोशी 

Saturday, 2 November 2013

दीप ज्ञान का इक तुम जलाओ

हाँ
दीप
हूँ मै
प्रज्वलित
हो कर
भरता
हूँ मै
उजाला
जहाँ
रहता हो
घना अँधेरा
रोशन कर
वहाँ
लाता हूँ
खुशियाँ
दीप
ज्ञान का
इक तुम
जलाओ
दीप्त कर
हर अज्ञानता
रोशन कर
लौ प्रेम की
ज्योति
जग में
फैलाओ

 रेखा जोशी


Friday, 1 November 2013

आँसूओं का सौदा

तुम
मेरे हो
यह
सोच कर
तुम्हे
चाहा
तुम्हे
अपनाया
तुम से
प्यार किया
बंदगी की
तुम्हारी
पर तुमने
न समझी
पीड़ा
इस दिल की
जाना
यही
है प्यार
इक फरेब
और
मुहब्ब्त
इक धोखा
है इसमें
बस
आँसूओं का
सौदा

रेखा जोशी