खेल रहे है मिलजुल कर इस बगिया में नन्हे मुन्ने फूल मेरे आंगन के मस्त मस्त झूल रहें डाली डाली पे हर्षित हो रहा है मन देख कर उन्हें भाग रहे उड़ती तितलियों को पकड़ने फूलों के संग संग कभी मुस्कुराते मेरे घर आंगन में खेलते बच्चे चम्पा चमेली गुलाब सा महका रहे
सुबह सुबह
ठिठुरती
सर्दी
कूड़े का
ढेर
बीनता
सपने
टुकड़ों में
फलों के
रोटी के
नही सोऊँगा
खाली पेट
सिर पर
होगी छत
कह रहा वो
मांगता वोट
दे दूँगा
जीते हारे
बला से
सपना
सच हो
मेरा
ढूँढ रहीं
इक मंदिर
होती है
पूजा जहाँ
तुम्हारी
वह स्थान
जो जोड़े
इक दूजे को
धर्म हो
जहाँ
मानवता
जहाँ
मानव का
मानव से
हो प्यार
न हो
टकराव
उत्थान
हो जहाँ
मानवता का
ढूँढ रहीं
वह मंदिर
नारी जीवन
ममता की मूरत
लुटाती प्रेम
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बन कर माँ
पालन करती है
इस जग का
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भार्या बनती
कदम कदम है
साथ निभाती
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औरत एक
है ममता लुटाती
रूप अनेक
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
सूना आँगन
जो नही महकता
बिन बिटिया
खूबसूरत थी जिन्दगी जब हाथो में हाथ था तुम्हारा
खूबसूरत थी जिंदगी जब प्यार भरा साथ था तुम्हारा
दे कर दर्द कहाँ चले गए हमे अपनी यादों में छोड़ के
पाते है हम चैन औ सुकून ख्याल आता है जब तुम्हारा
संघर्ष है
यह ज़िंदगी
कब गुज़रा
बचपन
याद नही
आया
होश
जब से
तभी से
भाग
रहा हूँ
संजों
रहा हूँ
खुशियाँ
सब के
लिए
थे अपने
कुछ
थे पराये
आज
निस्तेज
बिस्तर पर
पड़ा देख
रहा हूँ
समझ
रहा हूँ
अपनों को
और
परायों को
था कल भी
और
हूँ आज भी
संघर्षरत
तन्हा
सिर्फ
तन्हा
सुबह सुबह अखबार खोला तो निगाह पड़ी एक छोटी सी खबर ,''आत्महत्या के आंकड़ों पर ,जिसमे एक वर्ष में भारत में अस्सी हज़ार पुरुष और चालीस हज़ार महिलायों द्वारा आत्महत्या का उल्लेख था '',पढ़ते ही मन खिन्न और उदास सा हो गया। आखिर क्यों करते है लोग आत्म हत्या ,कोई कैसे अपनी ज़िंदगी को समाप्त कर देता है ?
हम सब जानते है कि अपने प्राण सबको प्यारे होते है ,हर कोई एक खुशहाल ज़िंदगी जीना चाहता है ,आखिर फिर कौन सी मजबूरी में इंसान ऐसा घिर जाता है या कौन सा ऐसा दुखों का पहाड़ उस पर टूट जाता है कि उसके सामने ज़िंदगी के कोई मायने नही रह जाते और वह बेबस हो कर मौत को गले लगा लेता है ,यह सोच कर ही रोंगटे खड़े हो जाते है ,अपने ही हाथों अपनी ज़िंदगी को मिटा देना ,आखिर क्या चल रहा होता है उस व्यक्ति के अंतर्मन में उस समय जो उसे खुद को ही मिटा देने पर मज़बूर कर देता है l
जिंदगी माना की चुनौतियों से भरी हुई है और कई बार हम चुनौतियों से निपटने में अपने आप को असमर्थ पाते हैं, जीवन की कठिनाइयों को झेल नहीं पाते और खुद को मौत के हवाले कर देते हैं, लेकिन अगर उन कमज़ोर लम्हों में अपनी सोच को सकारात्मक दिशा दें और चुनौतियों से जूझने का रास्ता ढूंढने की कोशिश करें तो उन हताश पलों से निकला जा सकता है l
महाकाल ने जब जब भी है रौद्र रूप धरा, था भस्म हुआ सब कुछ जब खुला नेत्र तीसरा। पिघल जाते पत्थर भी धधक रही ज्वाला में बिगड़े गा क्रोधाग्नि से सुन्दर रूप तेरा रेखा जोशी
लालच की अन्धी दौड़ ,एक कमरे वाले को दो चाहिए ,कोठियों ,फ़ार्म हाउसिज़ के मालिकों की निगाहें मुकेश अंबानी पर है | उसका दोस्त हवाई जहाज में सफर कर सकता है तो वो क्यों नही है, ,दीन ईमान को ताक पे रख कर ,चाहिए पैसा, काला हो यां सफ़ेद उफ़ लालच ,भ्रष्टाचार की जड़ ,फैलती जा रही है खरपतवार जैसे ,सींच दिया इसने देश में कई घोटालों को :,देश खोखला हो तो हो ,लालच के अंधों को कोई सरोकार नही|
प्यारे बच्चो मै आप सब से एक सवाल पूछती हूँ ,क्या तुम्हारे साथ कभी ऐसा हुआ है कि गलती तुम्हारे किसी छोटे भाई बहन से हुई हो और उसकी सजा तुम्हे मिली हो ? ,अगर किसी को ऐसी सजा मिली हो तो उसे कितना गुस्सा आया होगा ,मै इसे खूब समझ सकती हूँ ,जब मै छोटी थी बात तब की है ।
दिवाली से पूर्व जब घर में सफेदी और रंगाई पुताई का काम चल रहा था ,मेरे मम्मी पापा कुछ जरूरी काम से घर से बाहर गए हुए थे ,पूरे घर का सामान बाहर आँगन में बिखरा हुआ था ,घर के सभी कमरे लगभग खाली से थे और मेरे छोटे भाई बहन मस्ती में एक कमरे से दूसरे कमरे में छुपन छुपाई खेलते हुए इधर उधर शोर शराबा करते हुए भाग रहे थे,लेकिन मै सबसे बड़ी होने के नाते अपने आप को उनसे अलग कर लेती थी ,उन दिनों मुझे फ़िल्मी गीत सुनने का बहुत शौंक हुआ करता था ,बस जब भी समय मिलता मै रेडियो से चिपक कर गाने सुनने और गुनगुनाने लग जाती थी ,उस दिन भी मै रेडियो पर कान लगाये गुनगुना रही थी ,उस कमरे में सामान के नाम पर बस एक ड्रेसिंग टेबल और एक मेज़ पर रेडियो था जहां खड़े हो कर मै अपने भाई बहनों की भागम भाग से बेखबर मे संगीत की दुनिया में खोई हुई थी ,तभी बहुत जोर से धड़ाम की आवाज़ ने मुझे चौंका दिया ,आँखे उठा कर देखा तो ड्रेसिंग टेबल फर्श पर गिर हुआ था और उस खूबसूरत आईने के अनगिनत छोटे छोटे टुकड़े पूरे फर्श पर बिखर हुए थे,वहां उसके पास खड़ी मेरी छोटी बहन रेनू जोर जोर से रो रही थी ,ऐसा दृश्य देख मेरा दिल भी जोर जोर से धडकने लगा था ,मै भी बुरी तरह से घबरा गई थी ,एक पल के लिए मुझे ऐसा लगा कहीं रेनू को कोई चोट तो नही आई ,लेकिन नही वह भी बुरी तरह घबरा गई थी ,क्योकि वह खेलते खेलते ड्रेसिंग टेबल के नीचे छुप गई थी और जैसे ही वह बाहर आई उसके कारण ड्रेसिंग टेबल का संतुलन बिगड़ गया और आईना फर्श पर गिर कर चकना चूर हो गया था ।
हम दोनों बहने डर के मारे वहां से भाग कर अपने नाना के घर जा कर दुबक कर बैठ गई ,जो कि हमारे घर के पास ही था ,कुछ ही समय बाद ही वहां पर हमारी मम्मी के फोन आने शुरू हो गए और फौरन हमे घर वापिस आने के लिए कहा गया ,मैने रेनू को वापिस घर चलने के लिए कहा परन्तु वह डरी हुई वहीं दुबकी बैठी रही ,बड़ी होने के नाते मुझे लगा कि हम कब तक छुप कर बैठे रहें गे ,हौंसला कर मै घर की और चल दी और मेरे पीछे पीछे रेनू भी घर आ गई । जैसे ही मैने घर के अंदर कदम रखा एक ज़ोरदार चांटा मेरे गाल पर पड़ा ,सामने मेरी मम्मी खड़ी थी । मै हैरानी से उनका मुहं देखती रह गई ,''यह क्या गलती रेनू ने की और पिटाई मेरी '' बहुत गुस्सा आया मुझे अपनी माँ पर । अब बताओ बच्चो मेरी माँ ने गलत किया न ,मुझे मालूम है तुम सब मेरे साथ हो ,मेरी मम्मी ने आखिर मुझे क्योकर मारा जबकि गलती मेरी छोटी बहन से हुई थी ,बहुत रोई थी उस दिन मै ।
आज जब भी मै पीछे मुड़ कर उस घटना को याद करती हूँ तो फर्श पर बिखरे वो आईने के टुकड़े मेरी आँखों के सामने तैरने लगते है और अब मै समझ सकती हूँ कि वह चांटा मेरी मम्मी ने मुझे मार कर मुझे मेरी ज़िम्मेदारी का मतलब समझाया था ,अपने मम्मी पापा की अनुपस्थिति में बड़ी होने के नाते मुझे अपने घर का ध्यान रखना चाहिए था ,मुझे अपनी बहन रेनू को ड्रेसिंग टेबल के नीचे छुपने से रोकना चाहिए था । वह चांटा मुझे मेरी लापरवाही के कारण पड़ा था
होती है
पीड़ा
कितनी
जब
शूल से
चुभते है
पल कुछ
आते है
जीवन में
क्षण
ऐसे भी
जब छा
जाता है
तिमिर
चहुँ ओर
सूझती नही
कोई भी
राह
जब बन
जाते है
फूल भी
कांटे
चाह हो
उड़ने की
जब
पंख कट
जाते है
है दुःख
ही
दुःख
जीवन में
जलता है
हृदय
अपमानित
होता है
जब यहाँ
सत्य
सम्मानित
होता है
असत्य
कहलाता
मूर्ख
जब साधू
कठिन
होता है
जीना
शूल सा
कुछ
चुभता है
दिल में
जब बुराई
मनाती है
खुशियाँ
और
अच्छाई
रोती है
हाँ
दीप
हूँ मै
प्रज्वलित
हो कर
भरता
हूँ मै
उजाला
जहाँ
रहता हो
घना अँधेरा
रोशन कर
वहाँ
लाता हूँ
खुशियाँ
दीप
ज्ञान का
इक तुम
जलाओ
दीप्त कर
हर अज्ञानता
रोशन कर
लौ प्रेम की
ज्योति
जग में
फैलाओ
तुम
मेरे हो
यह
सोच कर
तुम्हे
चाहा
तुम्हे
अपनाया
तुम से
प्यार किया
बंदगी की
तुम्हारी
पर तुमने
न समझी
पीड़ा
इस दिल की
जाना
यही
है प्यार
इक फरेब
और
मुहब्ब्त
इक धोखा
है इसमें
बस
आँसूओं का
सौदा