Monday, 24 June 2013

छज्जू दा चौबारा

पड़ोस में कहीं बहुत ऊँची आवाज़ में ऍफ़ एम् रेडियो बज रहा था ”यह गलियाँ यह चौबारा यहाँ आना न दोबारा” गाना सुनते ही आनंद के मौसा जी परेशान हो गए ,”अरे भई कैसा अजीब सा गाना है ,हम कहीं भी जाए ,दुनिया के किसी भी कोने में जाए लेकिन आना तो वापिस अपने घर ही में होता है , हूँअ ,भला यह कोई बात हुई यहाँ आना न दोबारा ,अरे भाई अपने घर अंगना ना ही जाएँगे तो कहाँ जाएँगे |अब हमी को ले लो बबुआ ,देखो तो हफ्ता हुई गवा तोरे यहाँ पड़े हुए ,लेकिन अब हम वापिस अपने घर को जाएँ गे क्यों कि हमे अपने घर की बहुतो याद आ रही है ,अहा कितनी सान्ती थी अपनी उस छोटे से घर में |”यह कहते कहते आनंद के मौसा जी ने अपना सामान बांधना शुरू कर दिया |”अरे अरे यह क्या कर रहें है आप ,कहीं नही जाएँ गे ,आप की तबीयत ठीक नही चल रही और वहां तो आपकी देखभाल करने वाला भी कोई नही है ,मै वहां आप को अकेले नही छोड़ सकता ,”कहते हुए आनंद ने उनका सामान खोल कर एक ओर रख दिया | मौसा जी चुपचाप कुर्सी पर बैठ गए ,”अब का बताये तुम्हे बबुआ ,हमार सारी जिन्दगी उह छोटे से घर में कट गई ,अब कहीं भी जावत है तो बस मन ही नाही लगत,पर अब इस बुढ़ापे की वजह से परेसान हुई गवे है ,ससुरा इस सरीर में ताकत ही न रही ,का करे कछु समझ न आवे,का है के बबुआ तुम कुछ दिन चलो न अपने गावं हमरे साथ ,बहुतो अच्छा लगे गा तोरे को ”|
बहुत समझाया आनंद ने अपने बूढ़े मौसा जी को ,लेकिन वह तो टस से मस नही हुए अपनी जिद पर अड़े रहे और वापिस अपने गाँव चले गए |मौसा जी तो चले गए लेकिन आनंद को उसके माता पिता की याद दिला गए ,अकेले दोनों बुढ़ापे में अपने गाँव वाले घर में रहते थे,अब बुढ़ापे में तो आये दिन कभी माँ तो कभी पिता जी बीमार रहने लगे |एक तो बुढ़ापा उपर से बीमारी ,दोनों यथासंभव एक दूसरे का ध्यान भी रखते थे परन्तु आनंद उन्हें भला कैसे तकलीफ में देख सकता था ,उन दोनों को वह जबरदस्ती शहर में अपने घर ले आया ,कुछ दिन तक तो सब ठीक चलता रहा ,फिर वह दोनों वापिस गाँव जाने की जिद करने लगे ,वह इसलिए कि उनका आनंद के यहाँ मन ही नही लगा ,आनंद और उनकी बहू सुबह सुबह काम पर चले जाते और शाम ढले घर वापिस आते ,हालाँकि बहू और बेटा दोनों उनका पूरा ध्यान रखते थे ,लेकिन वह दोनों भी जिद कर के वापिस अपने गाँव चले गए और एक दिन हृदय गति के रुक जाने से आनंद के पिता का स्वर्गवास हो गया |बहुत रोया था आनंद उस दिन ,परन्तु वह समझ नही पाया था किउसके माता पिता उसके साथ क्यों नही रहे |
हमारे बुज़ुर्ग क्यों नही छोड़ पाते उस स्थान का मोह जहां उन्होंने सारी उम्र बिताई होती है ,शायद इसलिए कि हम सब अपनी आदतों के गुलाम बन चुके है और अपने आशियाने से इस कदर जुड़ जाते है कि उसी स्थान पर ,.उसी स्थान पर ही क्यों हम अपने घर के उसी कोने में रहना चाहते है जहां हमे सबसे अधिक सुकून एवं शांति मिलती है ,चाहे हम पूरी दुनिया घूम ले लेकिन जो सुख हमे अपने घर में और घर के उस कोने में मिलता है,वह कहीं और मिल ही नही पाता,तभी तो कहते है ”जो सुख छज्जू दे चौबारे ओ न बलख न बुखारे ”

Saturday, 22 June 2013

सुनहरे पंख

टेढ़ी मेढ़ी छोटी  पगडंडिया
चल रहा अकेला मै उन पर
आसमां पर चमकता सूरज
हो चुकी सुबह  मै अँधेरे में
छाई तमस  थी काली घटा
ताने बानो में उलझता रहा
हर  कदम पर मुड़ते रास्ते
चला जा रहा धुन में खोया
जाने  किधर चला जा रहा
गूंजते बोल कहीं भीतर मेरे
तू  ढूंढ़ने किसे चला जा रहा
घनी तमस से बाहर निकल
जो बीत गया  उसे भूल जा
पग चूमती नव उषाकिरण
ढूँढ़ लो तुम सुनहरे वो पंख
फैला के अपने पंख फिर से
छू लो ऊँचे आसमां को तुम 

Wednesday, 19 June 2013

इन्द्रधनुष रंगों से स्वप्न

था इक हारा  हुआ इंसान
चकनाचूर  हुए  थे सपने
न मिल  रही थी  मंजिल
गम में डूबा था गमगीन
................................
जागी उम्मीद की किरण
दिवाकर से  मिली नजर
इन्द्रधनुष रंगों से स्वप्न
पाना उन्हें  है  बन सूरज
..................................
भर उठा जोश से फिर वह
जीवन में भरने को वो रंग
प्रकाशित कर दुनिया यह
चमकना सूरज सा है उसे

कितनी सुरक्षित आपकी बेटी ?

कितनी सुरक्षित आपकी बेटी ?


कितनी सुरक्षित है हमारी बेटियाँ इस समाज में  ,रह रह कर यह सवाल सुमन को कचोट रहा था .उसकी अंतरंग सखी दीपा  ने रो रो कर अपना बुरा हाल कर लिया था उसके घर की नन्ही कली को किसी ने मसल दिया था और उसके दुःख से सुमन भी बहुत दुखी थी,उसकी आँखों में भी आंसुओं का सैलाब उमड़ आया था ,उसकी जान से भी प्यारी सखी दीपा के घर पर आज मातम छा चुका था |कोई ऐसे कैसे कर सकता है ,इक नन्ही सी जान,एक अबोध बच्ची , जिसने अभी जिंदगी में कुछ देखा ही नही ,जिसे कुछ पता ही नही ,एक दरिंदा अपने वहशीपन से उसकी पूरी जिंदगी कैसे  बर्बाद कर सकता है |दीपा की चार वर्षीय कोमल सी कली के साथ दुष्कर्म,यह सोच कर भी काँप उठी थी सुमन ,कैसा जंगली जानवर था वह दरिंदा ,जिसे उस छोटी सी बच्ची में अपनी बेटी दिखाई नही दी |सुमन का बस चलता तो उस  जंगली भेड़िये को जान से मार देती ,गोली चला देती वह उस पर |आज वह नन्ही सी कली मुरझाई हुई अस्पताल में बेहोश अधमरी सी पड़ी है |अपनी जान से भी प्यारी बेटियों की  सुरक्षा को लेकर आज पूरा भारत परेशान है ,आज हर स्थान पर नारी असुरक्षित है ,बलात्कार जैसी बेहद घिनौनी और अमानवीय घटनाएं  तो न मालूम कब से हमारे समाज में चली आ रही है लेकिन बदनामी के डर इस तरह की घटनाओं पर परिवार वाले ही पर्दा  डालते रहते है |

आज लोग नैतिकता को तो भुला ही चुकें है ,कई बार अख़बारों  की सुर्ख़ियों में अक्सर बाप द्वारा अपनी ही बच्ची के साथ बलात्कार ,भाईयों दवारा अपनी ही बहनों का यौन शोषण ,पति अपनी अर्धांगिनी की दलाली खाने के समाचार छपते रहते है  और उनके कुकर्म का पर्दाफाश न हो सके ,इसके लिए बेचारी नारी को यातनाये दे कर,ब्लैकमेल कर के उसे अक्सर दवाब में जीने पर मजबूर कर देते है| हमारी संस्कृति ,जीवन शैली ,विचारधारा ,जिंदगी जीने के आयाम सब में बड़ी तेज़ी से परिवर्तन हो रहा है ,आज इस बदलते परिवेश में जहां भारत पूरी दुनिया के साथ हर क्षेत्र में प्रगति  कर रहा है ,वहां सिमटती हुई दुनिया में आधुनिकता की आड़ लिए कई भारतीय महिलाओं ने भी पाश्चात्य सभ्यता का अंधाधुन्द अनुसरण कर छोटे छोटे कपडे पहनने , स्वछंदता , रात के समय घर से बाहर निकलना, अन्य पुरुषों के संपर्क में आना ,तरह तरह के व्यसन पालना ,सब अपनी जीवन शैली  में शामिल कर लिया है और जो उनके अनुसार कथित आधुनिकता के नाम पर गलत नही है परन्तु यह कैसी आधुनिकता जिसने  तो हमारे संस्कारों  की धज्जिया ही उड़ा दी है ।

एक तो वैसे ही समय के अभाव के कारण और हर रोज़ की आपाधापी में जी रहे  माँ बाप अपने बच्चों को अच्छे  संस्कार नही दे पा रहे उपर से टी वी ,मैगजींस ,अखबार के  विज्ञापनों में भी नारी के जिस्म की अच्छी खासी नुमाईश की जा रही  है ,जो विकृत ,कुंठित मानसिकता वाले लोगों के दिलोदिमाग में विकार पैदा करने में कोई कसर नही छोडती ,''एक तो करेला दूसरा नीम चढ़ा'' वाली बात हो गई |  ऐसी विक्षिप्त घटिया मानसिकता वाले  पुरुष अपनी दरिंदगी का निशाना उन सीधीसादी कन्याओं पर यां भोली भाली निर्दोष बच्चियों को इसलिए बनाते है ताकि वह अबोध बालिकाएं उनके दुवारा किये गए कुकर्म का भांडा न फोड़ सकें और वह जंगली भेड़िये आराम से खुले आम समाज घूमते रहें और मौका पाते ही किसी  भी अबोध बालिका अथवा कन्या को दबोच  लें |

 सुमन की सहेली दीपा ने पुलिस स्टेशन में जा कर '' एफ आई आर'' भी दर्ज़ करवा दी  ,पर क्या पुलिस उस अपराधी को पकड़ पाए गी ?क्या कानून उसे सजा दे पाए गा ?कब तक न्याय मिल पाये गा उस कुम्हलाई हुई कली को ?ऐसे अनेक प्रश्न सुमन के मन में रह रह कर उठ रहे थे |इन सब से उपर सुमन उस नन्ही सी बच्ची को लेकर परेशान थी ,अगर जिंदगी और मौत में झूल रही वह अबोध बच्ची बच भी गई तो क्या वह अपनी बाक़ी जिंदगी समान्य ढंग से जी पाए गी ? ऐसे कई प्रश्न है जिनका  कोई भी उत्तर न तो समाज के पास है न ही सरकार के पास,आखिर बेटी वाले करें भी तो क्या करें ?समाज में हर तरफ से नारियों पर दबाव डाला जाता है ,चाहे दहेज का मामला हो याँ फिर कोई और वजह हो ,पीड़ित और दुखी तो सदा नारी ही होती है । 

Friday, 14 June 2013

मुक्तक

हाथ जोड़ अपनी असमर्थता को जब अर्जुन ने जतलाया था 
कुरुक्षेत्र की रणभूमि मेंश्रीकृष्ण ने विराट रूप दिखलाया था 
तेजोमय असंख्य चाँद ,सितारे चमक रहे थे अनेक सूरज 
पार्थ ने भगवन के आगे श्रधा से मस्तक अपना झुकाया था 

Thursday, 13 June 2013

भागो भागो बिल्ली है [बाल कविता ]

बिल्ली आई चूहें भागे
भागे चूहे बिल्ली आई
बिल्ली पीछे चूहे आगे
भागो भागो बिल्ली है
मिल के  बैठे सारे चूहे
अब  बचना बिल्ली से
हुआ यह बहुत कठिन
क्या करें यह सोच रहे
फैसला अभी यह करें
बांधे बिल्लीके गले में
घंटी जो टन टन बोले
सुन  आवाज़ बिलों में
छुप जाएँ गे वहअपने
अब ये घंटी कौन बांधे
विचार सभी  यह करें
सोच विचार में वे डूबे
तभी भगदड़ मेंवो चूहे
यहाँ वहां लगे भागने
शोर मच गया वहां पे
भागो भागो बिल्ली है

रेखा  जोशी 

Wednesday, 12 June 2013

मुक्तक

तुम्हारी चाहत इस तरह मुझ में समा जाती है
जैसे महक फूलों की हवा में घुल मिल जाती है
जब भी आते हो मेरी नजरों के  सामने तुम
हर तरफ बहारों की महफ़िल सी  छा जाती है

Tuesday, 11 June 2013

नवकिरण

आशा की इक नवकिरण
भर देती है संचार तन में
पंख पखेरू बन के ये मन
भर लेता है ये ऊँची उड़ान
जा पहुंचा है दूर गगन पर
पीछे छोड़ के चाँद सितारे
छू रहा है सातवाँ आसमां
गीत गुनगुनाये धुन मधुर
रच  रहा है हर पल नवीन
सृजन निरंतर रहा है कर
झंकृत करता तार मन के
बन  जाता मानव  महान 

Sunday, 9 June 2013

आज जिंदगी कुछ याद दिला गई है

आज जिंदगी कुछ याद दिला गई है
 सपने जो देखे वह याद दिला गई है
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वो हाथो में हाथ लिए चले थे कभी
उन्ही पलों की वो याद दिला गई है
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सोचा था के उनको हम भूल चुके है
न जाने क्यों वो फिर याद आ गई है
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दर्पण में देखते ही चेहरे को अपने
उनकी सूरत हमे  नजर आ गई है
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वो खिलखिलाती हुई उसकी हसी
बंद पलकों में वो नजर आ गई है
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माना की तुम बहुत दूर चले गए
पर यादे तेरी  दिल में समा गई है 

Thursday, 6 June 2013

आप जब से मिले

आप जब से मिले हर ख़ुशी मिल गई
जिंदगी की  कसम  जिंदगी मिल गई

साथ  जब  से  चले   हमे  ऐसा   लगा
हर  कदम पर  नई जिंदगी मिल गई

प्यास  से जो  कभी  मुरझाई  सी  थी
प्यार का जल  मिला  कली खिल गई

अंधेरों   में   थे  अब  तलक  भटकते
आप क्या मिल गए रौशनी मिल गई

[महेन्द्र जोशी ]


Monday, 3 June 2013

मुक्तक

उठा कर सीता ले जा रहे रावण आज भी
सुरक्षित चौराहों और रंग बिरंगे रस्तों से
चाहता हूँ पर न बचा पा रहा  जटायु जैसे
कटे पँख लिए विवश हूँ घायल मूक दृष्टा 

Sunday, 2 June 2013

जल संरक्षण [व्यंग ]

पत्नी  पति  से बोली
'ऐ जी जरा  सुनते हो
जल  संकट  है  भारी ''
 ढंग  से  करना  जरा
तुम   इस्तेमाल पानी
पानी नही  होगा जब
नही बनेगा खाना तब
भूखे पेट  भजना तुम
जय  जय हे  गोपाला
पतिदेव बोले जानेजां
मत  करो तुम अपने
यूँ  हीं  हाल को बेहाल
पानी का मै कर लूँगा
सही ढंग से इस्तेमाल
नहाता था हररोज़ मै  
फुव्वारे की  फुहार से
नहा लूंगा आज  बस
मै  मग दो  एक डाल
पतिदेव बोले ''डार्लिंग
तुम  न पानी  बहाना
न ही भोजन पकाना
न तो घर में  बनाना
न बाहर से मंगवाना
सेहत के लिए अच्छा
होता  उपवास करना

Saturday, 1 June 2013

असफलता

धरोहर उसकी 
सत्य ईमानदारी और सेवा भाव
है साहस भी
लगन मेहनत और उमंग भी 
लेकिन रहा असफल
नही पहुंच सका बुलंदियों पर
नहीं कर सका 
जी हजूरी और रिश्वतखोरी
बातें मीठी मीठी 
नही बना सकता 
न ही था उसके
सिर पर किसी सत्ता का हाथ

रेखा जोशी 



रात स्वप्न में आई भारत माता

रात स्वप्न में आई भारत माता मेरी
ममतामयी मूरत आँखों में स्नेह लिए
तिरंगा लिए वो घूम रही थी भारत में
अमर शहीदों संग सज रही मैया मेरी
दुखी थी वह अपने  बच्चों को देख के
भाईचारे का माँ ने दिया संदेश था जो
न जाने सब भूल के भाई भाई लड़ रहे
 माँ के अपने पूत ही उसे नोच खा रहे
कहाँ है लाल बहादुर गांधी से  बेटे वो
जकड़ लिया है उसे अनेक घोटालों ने
आंसू भर आँखों में शहीदों से पूछ रही
क्या यही है हमारे सपनों का भारत ?