Tuesday, 11 June 2013

नवकिरण

आशा की इक नवकिरण
भर देती है संचार तन में
पंख पखेरू बन के ये मन
भर लेता है ये ऊँची उड़ान
जा पहुंचा है दूर गगन पर
पीछे छोड़ के चाँद सितारे
छू रहा है सातवाँ आसमां
गीत गुनगुनाये धुन मधुर
रच  रहा है हर पल नवीन
सृजन निरंतर रहा है कर
झंकृत करता तार मन के
बन  जाता मानव  महान 

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