ऐसा कहते है कि जहाँ माँ सरस्वती का वास होता है वहाँ माता लक्ष्मीजी का पदार्पण नही होता ,माँ शारदे का पुजारी लेखक ,नई नई रचनाओं का सृजन करने वाला ,समाज को आईना दिखा उसमे निरंतर बदलाव लाने की कोशिश में रत ,ज़िन्दगी भर आर्थिक कठिनाइयों से झूझता रहता है |अभी हाल ही की बात है मेरे एक लेखक मित्र के घर कन्या ने जन्म लिया और उन दिनों वह घोर आर्थिक स्थिति से गुज़र रहे थे ,उस वक्त उन्होंने चाय और पकौड़े बेच कर अपना और अपने परिवार का पोषण किया । एक लेखक के समक्ष आर्थिक संकट एक बहुत बड़ी चुनौती के रूप में सदा उसके आस पास मंडराता रहता है जिससे बाहर आना उसके लिए कभी भी संभव नही हो पाता और वह सारी ज़िंदगी अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने में ही जुटा रहता है| आर्थिक संकट के साथ साथ आये दिन उसे कई अन्य चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता रहता है खुदा न खास्ता अगर उसने व्यंग में ही किसी नेता याँ राजनेता के बारे में अपने आलोचनात्मक विचार प्रकट कर दिए तो उसे उनकी नाराज़गी का भी शिकार होना पड़ सकता है | समाज में पनप रही अनेक कुरीतियों को लेखक याँ लेखिका अगर अपनी सृजनात्मक कलम द्वारा उन्हें उजागर कर बदलाव लाना चाहते है तो वह सीधे सीधे समाज के ठेकेदारों की आँखों की किरकिरी बन जाते है ,ऐसा ही हुआ था लेखिका तस्लीमा नसरीन के साथ ,जब उसके खिलाफ देश निकाले का फतवा तक जारी कर दिया गया था | इसमें कोई दो राय नही कि कलम की धार तलवार से भी तेज़ होती है | रचनाकार द्वारा सृजन की गई शक्तिशाली रचना समाज एवं देश में क्रान्ति तक ला सकती है | गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर ,शरतचंद्र जी ,मुंशी प्रेमचंद जैसे अनेक लेखक हिंदी साहित्य में जीती जागती मिसाल है जिन्होंने समाज में अपनी लेखनी के माध्यम से जागृति पैदा की थी | समय बदला ,समाज का स्वरूप बदला नये लेखकों की बाढ़ सी आ गई ,लेकिन आज भी अपनी लेखनी के जादू से रचनाकार समाज को एक धीरे धीरे अच्छी दिशा की ओर ले जाने में कामयाब हो रहा है ,भले ही इसके लिए उसे अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है |
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