Saturday, 8 March 2014

माँ तुझे सलाम [लघु कथा ]

 माँ तुझे सलाम [लघु कथा ]

चिलचिलाती धूप से बचने के लिए बीमार छमिया ने साडी के पल्लू से अपने चेहरे को तो ढक लिया लेकिन पसीने से लथपथ थकी हारी,अपने नन्हे को गोद में लिए छमिया सोच में डूब गई ,''क्या वह आज अपने नन्हे का पेट भर पायेगी ,रात भर तो वह बुखार में कराहती रही ,लेकिन अपने नन्हे के लिए उसे काम तो करना ही है ,ऊपर से गर्मी ने भी बेहाल कर रखा है ,अब तो उसके हाथों में भी जान नही रही कि वह और पत्थर तोड़ पाये ''| यह सोचते ही उसके अंदर की माँ कुलबुलाने लगी ,''नही नही ,चाहे मुझे कुछ भी हो जाए मै अपने बच्चे को कभी भूखा नही रख सकती ,चाहे मुझे कितनी भी मेहनत करनी पड़े ,रात दिन एक कर दूंगी लेकिन नन्हे को  भूख से बिलखता नही देख सकती |''अपने नन्हे के मुख पर एक मुस्कराहट देखने के लिए बीमार छमिया फिर से तैयार हो गई भूख से ज़िंदगी की जंग जीतने के लिए | 

रेखा जोशी

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