Sunday 27 July 2014

फिर से महकने लगी चांदनी

सुरमई रात
पेड़ों के पत्तों से
छन कर
गुनगुनाती हुई
गीत मधुर गाती
खिलखिलाने लगी
चांदनी

आहट  सुनते ही
उसकी
बिछ गये मखमली फूल
राहों में
पाते ही कोमल
स्पर्श उनका
मुस्कुराने लगी
चांदनी

लबों पर मेरे
मचलने लगे तराने
उड़ने लगी तितलियाँ
दिल की बगिया में
छा गई बहारे
फ़िज़ाओं में
अंगना में मेरे
फिर से
महकने लगी
चांदनी

रेखा जोशी





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