Monday, 11 September 2017

ग़ज़ल


2122 2122 2122 212

काफिया  आ
रदीफ़  लेते कहीं

दर्द दिल का ज़िंदगी में हम बता देते नहीं  
नैन में जज़्बात अपने हम  छिपा लेते कहीं
.. 
ज़ख्म इस दिल के दिखायें हम किसे जानिब यहाँ
शाम होते ही सजन महफ़िल सजा लेते कहीं 
...
अब सुनायें हाल दिल का ज़िंदगी में हम किसे
टीस  उठती है जिगर में हम दबा लेते कहीं
.....
तोड़ कर दिल को हमारे तुम सदा आबाद हो
दिल हमारे को सजन समझा बुझा लेते कहीँ
....
 रात दिन तड़पे यहाँ पर ज़िंदगी तेरे लिये
काश हम फिर ज़िंदगी तुमको मना लेते कहीँ

रेखा जोशी

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