Thursday, 7 September 2017

दोहे

दोहे

नभ पर बादल गरजते ,घटा घिरी घनघोर ।
रास रचाये दामिनीे  ,मचा  रही  है शोर ॥
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आँचल लहराती  हवा ,ठंडी पड़े फुहार ।
उड़ती जाये चुनरिया ,बरखा की बौछार ||
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सावन बरसा झूम के ,भीगा तन मन आज ।
पेड़ों पर झूले पड़े ,बजे मधुर है साज़ ॥
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भीगा सा मौसम यहाँ  ,भीगी सी है रात ।
भीगे से अरमान है ,आई है बरसात ॥
      
कुहुक रही कोयल यहां ,अँबुआ की हर डार।
हरियाली छाई रही,है चहुँ ओर बहार।।

रेखा जोशी

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