मार
महंगाई की
झेल रहे हम
जब प्याज़
अस्सी रू
और
चालीस की
मेथी
पर बेचारा
गरीब दुखिया
क्या खाए
कहाँ रहे
पेट भर
भोजन नही
रहने को
छत नही
सोच रहा
सडक किनारे
लेट कर
सडक किनारे
लेट कर
बेचारा
यूँही दुःख
झेलने है
क्या उसे
उम्र भर
उसका नसीब
यही है
याँ
है फिर
कुछ और ,,,,,,,,,,,
रेखा जोशी
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