माया उसकी अपरम्पार [क्षणिका ]
भंग होती नीरवता
गुंजित हुआ ब्रह्मांड
आँखे मूंदे धरा पर
समाधिस्थ योगी
विलीन ओम में
विचर रहा दूर कहीं
एकरस उसमे
झांक रहा उस पार
आभामंडल
चहुँ ओर
दृष्टि अलौकिक
चुपचाप रहा देख
बन द्रष्टा
माया उसकी
अपरम्पार
रेखा जोशी
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