Sunday, 29 June 2014

फैला दे सब ओर मुहब्बते ही मुहब्बते

ज़िंदगी में गम है बहुत
फिर भी
यह हसीन लगती है
कुछ पल गम
तो
कुछ पल ख़ुशी होती है
यूहीं ऋतुओं का आना जाना मुस्कुराना
और
हमसे यह कहना
हर गम तू भुला दे
आएं गे
खुशियों के पल
 दोबारा
जो हो सके तो
 मिटा दे
चिंताएँ अपनी सारी
जो हो सके तो
बदल  दे
नफरतों की दिशा
फैला दे सब ओर
मुहब्बते ही मुहब्बते

अनुज शर्मा

शौक ऐ मुहब्बत

माना कि दिल में
तुम्हारे
है प्यार का हसीं जज़्बा
है जनून भी इश्क में
तुम्हारे
लेकिन मत करो इज़हार
इसका
तुम शौक ऐ मुहब्बत
के लिए
भर लो तुम
इसमें
रंग वफ़ा का
है करना पड़ता
महसूस इसे
जज़्बातों से
आसान नही
मुहब्बत निभाना
दिल ओ जान से
है बनना पड़ता
अपने
दिलबर का
उम्र भर के लिए

रेखा जोशी





Friday, 27 June 2014

अपने बालकों में माँ की बसती है जान

पूत चमके जैसा दिनकर माँ का अरमान
आकाश को छू ले उड़कर माँ का अरमान
अपने बालकों में माँ की बसती है जान
दे आशीष स्नेह भरकर माँ का अरमान
रेखा जोशी

उड़ता जाये चंचल चितवन संग पवन के

उड़ता जाये चंचल चितवन संग पवन के
महका  जाये  मेरा  आँगन संग पवन के 
नील गगन में  घिर आये  है काले बादल
बरसता  जाये  यहाँ सावन संग पवन के

रेखा जोशी 

ज़िन्दगी गाती सदा नित यह तराने है


ज़िन्दगी  गाती सदा  नित  यह  तराने  है
प्यार  तुमसे  अब  बने  लाखों  फ़साने  है 
खोल कर दिल को निगाहों ने दिया  है रख 
चाह  यह  तेरी    लिये   बीते  ज़माने   है 

रेखा जोशी 

Thursday, 26 June 2014

शून्य है मानव

पूछा मैने
सूरज और
चाँद सितारों से
हस्ती क्या तुम्हारी
विस्तृत ब्रह्मांड के
विशाल महासागर में
जिसमे है समाये
असंख्य तुम जैसे
सूरज आग उगलते
साथ लिए अपने
अनेक चाँद
टिमटिमा रहे जिसमे
अनेकानेक तारे
निरंतर घूम रही जिसमे
असंख्य आकाशगंगाएँ
देख पाती नही जिसे
आाँखे हमारी
रहस्यमय अनगिनत जिसमे
विचर रहे पिंड
और
इस घरती पर
मूर्ख मानव
अभिमान में डूबा हुआ
कर रहा प्रदर्शन
अपनी शक्ति का
अपने अहम का
अपनी सत्ता का
कर रहा पाप अनगिनत
देखता है आकाश रोज़
नही समझ पाया
अपनी हस्ती
शून्य है मानव
विशाल महासागर में

रेखा जोशी





Wednesday, 25 June 2014

हाइकु


निश्छल प्यार
मिला स्नेह आपार
करे दुलार

हिरण खाता 
उपहार दोस्ती का
मेल अनोखा

मन के सच्चे
करें सबसे प्यार
होते है बच्चे

रेखा जोशी 

Tuesday, 24 June 2014

लाये हो संदेश दूर से मेरे सजन का

गुलाब से सजी बगिया में छाई बहार है
भीगी सी  मदमस्त  ठंडी आई बयार है
लाये  हो  संदेश दूर से  मेरे  सजन  का 
महकती पाती उनकी संग लाई प्यार है

रेखा जोशी 

Monday, 23 June 2014

राहे फलक तलक फूलों से महक उठी है

अब तो सनम लगी दिल की है नयन मिला जा 
तुमसे  चहक उठा  आँगन अब चमन खिला जा 
राहे    फलक  तलक   फूलों  से  महक   उठी है 
आजा झलक  कभी तो अपनी सजन दिखा जा 

 रेखा जोशी

Sunday, 22 June 2014

एकरस हो जायें हम मिले जब ईश तुमसे

जैसे मिले जल नदिया का आपार  सागर में 
खो देता मिल कर नीर भी आकार  सागर में 
एकरस हो  जायें हम भी मिले जब ईश तुमसे 
समायें  तुझ में हम जैसे जलधार  सागर  में 

रेखा जोशी 

Thursday, 19 June 2014

गूँजती सदा तेरी नीरव घाटियों में

ढूँढ़ते  है  तुम्हे इन शान्त वादियों में 
आते हो नज़र तुम  पत्ते  बूटियों में 
समाये हो तुम तो सृष्टि के कण कण में 
गूँजती सदा  तेरी नीरव घाटियों में 

रेखा जोशी 

Wednesday, 18 June 2014

मेरे प्यारे नन्हे नन्हे बच्चे

हुआ आगमन 
मधुमास का 
मेरे आंगन 
आये ऋतुराज बसंत 
झूम रही डाल डाल
बह रही 
मस्त पवन हर्षित मन 
देख छटा पीताम्बरी
झूल रहे  
रंग बिरंगे सुन्दर फूल 
खेल रहे बगिया में 
मेरे 
नन्हे मुन्ने फूल से बच्चे 
भाग रहे पकड़ने तितली 
संग फूलों के 
मुस्कुराते महका रहे 
मेरा अंगना 
चम्पा चमेली 
गुलाब से  
मेरे प्यारे नन्हे नन्हे 
बच्चे 


रेखा जोशी 

रचयिता हो तुम मेरे

हाथों में हूँ
तुम्हारे
कच्ची माटी सी
ढाल दो मुझे
जैसा तुम चाहों
दे दो आकार
संवार दो मुझे 
हाथों से अपने
रच दो सुन्दर सा
रूप मेरा
खिला खिला सा
देख जिसे
गर्वित हो तुम
अपने अनुपम सृजन पर
और मै रचना
तुम्हारी
झूमने लगूँ थिरकने लगूँ
हर ताल पर
तुम्हारी
नाचूँ गी वैसे
नचाओगे तुम जैसे
रचयिता  हो
तुम मेरे

रेखा जोशी









Tuesday, 17 June 2014

बनाने चले तकदीर तुमसे जानम


चोट  खाई  बहुत  हमने  अब  क्या  करें  
मिटा दिए अरमान दिल ने अब क्या करें 
बनाने  चले   तकदीर    तुमसे   जानम  
बीच  राह  छोड़ा  तुमने  अब  क्या  करें 

रेखा जोशी 
 

Monday, 16 June 2014

HAPPY FATHERS DAY

ऊँगली पकड़ के मेरी चलना सिखाया आपने 
कदम कदम पर रास्ता मुझको दिखाया आपने
मिली आपसे ही पहचान मुझे इस ज़िन्दगी में 
आपके जैसा मुझे पिताजी बनाया आपने

रेखा जोशी 

Sunday, 15 June 2014

' लव यू पापा


उस दिन माँ बाप की ख़ुशी सातवें आसमान पर होती है ,जिस दिन उनके परिवार में एक नन्हें से बच्चे का आगमन होता है ,जैसे किसी ने उनकी गोद में दुनिया भर की खुशियाँ बिखेर  दी  हो |राजीव  और गीता का भी यही हाल था आज ,गीता की गोद में अपना ही नन्हा सा रूप देख राजीव चहक उठा ''देखो गीता इसके हाथ कितने छोटे है''यह कहते ही राजीव ने अपनी उंगली उस नन्हे से हाथ पर रख दी  ,अरे अरे यह क्या, देखो इसने तो मेरो ऊँगली ही पकड़ ली |ख़ुशी के मारे राजीव के पाँव धरती पर टिक ही नहीं  पा रहे  थे ,यही हाल गीता का था ,इतनी पीड़ा  सहने के बाद भी गीता की आँखों की चमक देखते ही बनती थी ,बस टकटकी लगाये उस नन्ही सी जान को मुस्कुराते हुए देखती ही जा  रही थी|  राजीव उसे गोद में उठाते हुए बोला , ''यह तो हमारा सचिन है ,बड़ा हो कर यह भी सचिन की तरह छक्के मारे गा ''|

अनेकों सपने राजीव की आँखों में तैरने लगे ,अपने इन्ही सपनो को पूरा करने की चाह लिए हुए कब उनके बेटे  सचिन ने अपनी जिदगी के पन्द्रहवें वर्ष में कदम रख लिया,इसका राजीव और गीता को अहसास ही नहीं हुआ ,उनकी आँखों का तारा सचिन उनकी नजर में अभी भी  एक छोटा सा बच्चा ही था ,लेकिन सचिन  तो  अब किशोरावस्था  में पदार्पण कर चुका था, घंटों अपने चेहरे को शीशे  में निहारना,कभी  बालों को  बढ़ा लेता ,तो कभी  दाढ़ी को ,अपने को किसी हीरो से कम नही समझता था वो ,सारी की सारी दुनिया अपनी जेब में लिए घूमता था |उसमे आये  शारीरिक परिवर्तन और उसके मानसिक विकास ने उसे जिन्दगी के कई अनदेखी राहों के रास्ते दिखाने शुरू कर दिए | राजीव और गीता दोनों पढ़े लिखे थे ,वह सचिन को आज की इस दुनिया में क्या सही ,और क्या गलत है ,जब भी बताने यां समझाने  की कोशिश करते तो सचिन यां तो बहस करता यां मजाक में टाल देता ,वैसे बहस करना उसकी आदत सी बनती जा रही थी |गीता भी रोज़ की इस चिक चिक से परेशान सी रहने लगी ,फिर सोचती ,''यह उम्र ही ऐसी है ,बच्चों की किशोरावस्था के इस नाज़ुक दौर  के चलते अभिभावकों के लिए यह उनके धैर्य एवं समझदारी की परीक्षा की घड़ी है  |किशोरों के शरीर  में हो रही हार्मोंज़ की  उथल पुथल जहां उन्हें व्यस्क के रूप में नवजीवन प्रदान करने जा रही है ,वही उनका बचकाना व्यवहार ,उन्हें स्वयं की और माँ बाप की नजर में अजनबी सा बना देता है |माँ बाप से उनका अहम टकराने लगता है ,हर छोटी सी बात पर अपनी प्रतिक्रिया देना ,उनकी आदत में शामिल हो जाता है |किशोरों को  इस असमंजस की स्थिति से माँ बाप अपने विवेक और धेर्य से ही बाहर निकालने में मदद कर सकते है ,उनकी हर  छोटी बड़ी बात को महत्व दे कर ,उनका मित्रवत व्यवहार अपने लाडले बच्चों को जहां गुमराह होने से बचाते है वहीँ उनमे विशवास कर के उन्हें एक अच्छा  नागरिक बनने में भी सहायता भी करते है ''|राजीव और गीता किशोरावस्था की इन सब समस्याओं से अनजान नहीं थे लेकिन फिर क्यों नहीं उन्हें सचिन का विशवास ,और प्यार जिसकी वह उससे उम्मीद करते थे ,नहीं मिल पा रहा था ||

 अचानक राजीव के मोबाईल फोन की घंटी बजी ,,''पापा जल्दी रेलवे प्लेट्फार्म पर आ जाओ ,''|राजीव जल्दी से कार में बैठ सचिन  पास पहुंच गया ,यह क्या ,उसका सचिन रेलवे प्लेटफार्म पर  रेलवे पुलिस के इंस्पेक्टर  के साथ खड़ा था |सचिन क्या बात है ?राजीव ने हैरानी से पूछा |जवाब मिला पुलिस इंस्पेक्टर से ,''बदतमीजी की है इसने ,गाली दी है एक बुज़ुर्ग  रेलवे कर्मचारी को ,सचिन के  चेहरे का रंग उड़ा हुआ था  |राजीव ने प्यार से सचिन के काँधे पर हाथ रखा और सचिन से माफ़ी मांगने को कहा,उसे भी अपनी गलती का अहसास हो रहा था ,सचिन ने उस बुजुर्ग के पाँव छू क़र माफ़ी मांगी ,उस बुजुर्ग कर्मचारी ने उसे माफ़ करते हुए समझाया कि जिंदगी में जो  काम हम प्यार के करवा सकते है वह अकड़ से नहीं |सारा मामला सुलझा क़र राजीव सचिन को घर ले आया ,माँ का चेहरा देखते ही सचिन की आँखों में आंसू आ गये ,माँ ने उसका हाथ थाम लिया ,इतने में राजीव भी उनके पास आ गया और सचिन उससे लिपट गया ,भर्राई आवाज़ से उसने कहा ''पापा आई लव यू |

Saturday, 14 June 2014

पापा जैसा कोई नही --फादर्स डे पर [मेरी पुरानी पोस्ट ]

अमृतसर के रेलवे स्टेशन पर गाड़ी से  उतरते ही मेरा दिल खुशियों से भर उठा  ,झट से ऑटो रिक्शा पकड़ मै अपने मायके पहुंच गई,अपने बुज़ुर्ग माँ और पापा को देखते ही न जाने क्यों मेरी आँखों से आंसू छलक आये , बचपन से ले कर अब तक मैने अपने पापा के घर में सदा सकारात्मक उर्जा को महसूस किया है ,घर के अन्दर कदम रखते ही मै शुरू हो गई ढेरों सवाल लिए ,कैसो हो?,आजकल नया क्या लिख रहे हो ?और भी न जाने क्या क्या ,माँ ने हंस कर कहा ,''थोड़ी देर बैठ कर साँस तो ले लो फिर बातें कर लेना ''| अपनी चार बहनों और एक भाई में से  मै सबसे बड़ी और सदा अपने पापा की लाडली बेटी रही हूँ ,शादी से पहले कालेज से आते ही घर में  जहाँ मेरे पापा होते थे मै वहीं पहुंच जाती थी और जब तक पूरे दिन का लेखा जोखा उन्हें बता नही देती थी तब तक मुझे चैन ही नही पड़ता था | मै और मेरे पापा न जाने कितने घंटे बातचीत करते हुए गुज़ार दिया करते थे ,समय का पता ही नहीं चलता था और मेरी यह आदत शादी के बाद भी वैसे ही बरकरार रही ,ससुराल से आते ही उनके पास बैठ जाती थी लेकिन मेरी मम्मी हमारी इस आदत से बहुत परेशान हो जाती थी ,वह बेचारी किचेन में व्यस्त रहती और मै उनके साथ घर के काम में  हाथ न बंटा कर अपने पापा के साथ गप्प लगाने में व्यस्त हो जाती थी ,लेकिन आज अपने पापा के बारे में लिखते हुए मुझे बहुत गर्व हो रहा है कि मै एक ऐसे व्यक्ति की बेटी हूँ जिसने जिंदगी की चुनौतियों को अपने आत्मविश्वास और मनोबल से परास्त कर सफलता की ओर अपने कदम बढ़ाते चले गए |


मात्र पांच वर्ष की आयु में उनके पिता का साया उनके सर के ऊपर से उठ गया था और मेरी दादी को अपने दूधमुहें बच्चे ,मेरे चाचा जी के  साथ अपने मायके जा कर जिंदगी की नईशुरुआत करनी पड़ी थी जहां उन्होंने अपनी अधूरी शिक्षा को पूरा कर एक विद्धालय में प्रचार्या की नौकरी की थी और मेरे पापा अपने दादा जी की छत्रछाया में अपने गाँव जन्डियाला गुरु ,जो अमृतसर के पास है ,में रहने लगे | उस छोटे से गाँव की छोटी छोटी पगडण्डीयों पर शुरू हुआ उनकी जिंदगी का सफर ,मीलों चलते हुए उनकी सुबह शुरू होती थी ,वह इसलिए कि उनका स्कूल गाँव से काफी दूर था ,पढ़ने में वह सदा मेधावी छात्र रहे थे  और इस क्षेत्र में उनके मार्गदर्शक रहे उनके चाचाजी जी जो उस समय एक स्कूल में अध्यापक थे | दसवी कक्षा  से ले कर बी ए  की परीक्षा तक उनका नाम मेरिट लिस्ट में आता रहा था ,बी ए की परीक्षा में उन्होंने  पूरी पंजाब यूनिवर्सिटी में तृतीय स्थान प्राप्त कर अपने अपने गाँव का नाम रौशन किया था |धन के अभाव के कारण,पढ़ने के साथ साथ वह ट्यूशन भी किया करते थे ताकि मेरी दादी और चाचा जी की जिंदगी में कभी कोई मुश्किलें न आने पाए | दो वर्ष उन्होंने अमृतसर के हिन्दू कालेज में भौतिक विज्ञान की  प्रयोगशाला में सहायक के पद पर कार्य किया और आगे पढ़ाईज़ारी रखने के लिए धन इकट्ठा कर अपने एक प्राध्यापक प्रो आर के कपूर जी की मदद से आदरणीय श्री हरिवंशराय बच्चन के दुवारा इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के भौतिकी विभाग में एम् एस सी पढ़ाई के लिए प्रवेश लिया |अपने घर से दूर एम् एस सी की पढ़ाई उनके लिए एक कठिन चुनौती थी,यहा आ कर मेरे पापा का स्वास्थ्य बिगड़ गया ,किसी इन्फेक्शन के कारण वह ज्वर से पीड़ित रहने लगे और उप्पर से धन का आभाव तो सदा से रहता रहा था ,इसलिए यहाँ पर भी वह पढ़ने के साथ साथ ट्यूशन भी करते रहे जिसका सीधा असर उनकी पढ़ाई पर पड़ा ,जैसे तैसे कर के वह प्रथम वर्ष के पेपर दे कर वापिस अमृतसर आगये |इसी समय मेरी मम्मी इनकी जिंदगी सौभाग्य ले कर आई .मेरे  चाचा जी  बैंक में नौकरी लगने के कारण पापा घर परिवार कि ज़िम्मेदारी माँ पर छोड़ कर अपनी पढ़ाई का द्वितीय वर्ष पूरा करने वापिस इलाहाबाद चले गए,उसके बाद अमृतसर के हिन्दू कालेज में लेक्चरार के पद पर आसीत हुए ,उसी कालेज में हेड आफ फिजिक्स डिपार्टमेंट बने ओए वाइस प्रिंसिपल के पद से रिटायर्ड हुए |उसके बाद वह लेखन कार्य से जुड़ गए ,हिंदी साहित्य में उनकी सदा से ही रूचि रही है ,उन्होंने श्रीमद्भागवत गीताका पद्धयानुवाद  किया,उनके दुवारा लिखी गई पुस्तके , मै तुम और वह ,तुम ही तुम ,आनंद धाम काफी प्रचलित हुई और उन्हें कई पुरुस्कारों से भी सम्मानित किया गया |

पापा हम सभी बहनों और भाई के गुरु ,पथप्रदर्शक और मित्र रहें है ,उन्ही की दी हुई शिक्षा ,प्रेरणा और संस्कार है जिसके चलते हम सभी ने नौकरी के साथ साथ बहुत सी उपल्ब्दियाँ
भी हासिल की है |इस वृद्धावस्था में भी उनका मनोबल बहुत ऊंचा है ,आज भी अपने कार्य वह स्वयम करना पसंद करते है ,मेरी  ईश्वर  प्रार्थना है वह सदा स्वस्थ रहे और अपना लेखन कार्य करते रहे |

Friday, 13 June 2014

ख्वाहिशें

उड़ रही
रंगबिरंगी तितलियाँ
मेरी
ख्वाहिशों की बगिया में
फूलों से लदी
डालियाँ
झूला रही मदमस्त पवन
महकने लगी
मेरी
कुछ अधूरी ख्वाहिशें
जाग उठी तमन्ना
मेरी
ख्वाहिशें और ख्वाहिशें
बढ़ती रही
चाहतों की दुनिया में
खो गई
न खत्म हुई
मेरी
हसरते कभी
ज़िंदगी यूँही
चली रही

रेखा जोशी


Thursday, 12 June 2014

दर्द

 दर्द में सनम जीते
दर्द में सजन मरते
दर्द की दवा क्या है
दर्द ही दर्द सहते
रेखा जोशी
दोहे [सावन पर ]

बादल गरजे गगन में ,घटाएँ है घनघोर । 
रास रचा  दामिनी से ,मचा  रहे  है शोर ॥ 

आँचल लहराये  हवा , ठंडी पड़े  फुहार 
उड़ उड़  जाये चुनरिया ,बरखा की बौछार  

 सावन बरसे झूम के ,भीगे तन मन आज 
 पेड़ों पे झूले पड़ें ,मधुर बजे है साज 

भीगा सा मौसम यहाँ  ,भीगी सी ये  रात । 
भीगे से अरमान है ,ले आई बरसात ॥ 

रेखा जोशी 


Wednesday, 11 June 2014

हवाओं ने छेड़ दिए मदमस्त तराने आज

दीप कलश जगमगाने लगे मेरे घर में आज 
झंकृत हो बजने लगे  मेरे दिल के तार आज 
उनके आने की खबर सुन के छाने लगी बहारे 
हवाओं ने भी छेड़ दिए मदमस्त तराने आज 

रेखा जोशी 

Tuesday, 10 June 2014

ग़ज़ल

ग़ज़ल 
 बहर --2 1 2 2 2 1 2  2 2 1 2

तुम मिले खुशियाँ मिली सजदा करें 
इश्क  तुम नहीं  समझे अब क्या करें 

मिल गये है जब हमें अपने सनम 
वह समझ नहीं पाये  अब क्या करें 

दी हमे थी चोट जब तुमने  बहुत 
वही सज़दा कर रहे  अब क्या करें 

ज़ख्म जो नासूर बन तड़पा रहा 
ताउम्र वह  नही भरे अब क्या करें 

थे बनाने हम चले किस्मत सनम 
है बिछुड़ गई राहें  अब क्या करें 

 था  सहारा प्यार का जोशी सदा 
जब न चाहें वो हमें अब क्या करें 

रेखा जोशी 



दर्द ए दिल बयाँ न कर सकी प्रियतम


दर्द ए दिल बयाँ न कर सकी प्रियतम 
पीड़ा मन  की दिखा  न सकी प्रियतम 
खिले  गुल   छाई   बहार  बगिया  में 
आस मिलन की छिपा न सकी प्रियतम 

रेखा जोशी 

Thursday, 5 June 2014

दोहे [वीर रस ]



उठो  देश  के  सपूतो,  भारत  रहा  पुकार ।  
भारत पर तुम मर मिटो ,हो जाओ तैयार ॥ 

आन बान पर देश की  ,लाखों हुये  शहीद । 
सीमा पर उत्सव मने  ,क्या होली क्या ईद ॥ 

भारत सीमा पर खड़े ,तन कर वीर जवान । 
आँच  देश  पर  न आये ,हो  जायें  कुरबान ॥ 

हमारी  जन्म भूमि  की ,माटी है अनमोल ।
तिलक  लगाएँ  माटी से ,नाही इसका मोल  ॥ 

रेखा जोशी 

पूछती है सवाल अक्सर मेरी तन्हाईयाँ मुझसे

पूछती है सवाल
अक्सर
मेरी तन्हाईयाँ
मुझसे
गुनगुनाती जब
धूप आँगन में
गुमसुम सी तब
क्यों खोयी खोयी सी
तन्हाईयों में अपनी
भीतर  ही भीतर
सुलगती रही

जीवन के सफर में
साथी मिले
कुछ अपने कुछ पराये
पराये अपने बने
कभी अपने पराये
पर पीड़ा अंतस  की
तन्हाईयों में अपनी
भीतर ही भीतर
सुलगती रही

महकते रहे फूल
मुस्कुराती रही कलियाँ
बगिया में
पर मुरझाती रही
लेती रही सिसकियाँ
तन्हाईयों में अपनी
भीतर ही भीतर
सुलगती रही

पूछती है सवाल
अक्सर
मेरी तन्हाईयाँ
मुझसे
जीवन में
न ख़ुशी न गम
क्यों फिर
तन्हाइयों में अपनी
भीतर ही भीतर
सुलगती रही

रेखा जोशी


रात चाँदनी शीतल पवन[गीत ]


रात  चाँदनी  शीतल पवन
घर  आजा  तू  मेरे  सनम

तुझको  बुलाए  ठंडी हवाएँ
आँचल मेरा उड़  उड़  जाए
शीतल पवन अगन लगाये
घर  आजा तू   मेरे  सनम

सूने नैना तुम  बिन सजन
राह  निहारे  पागल  नयन
अब तो तू आ भी जा बलम
घर  आजा  तू   मेरे  सनम

रात  चाँदनी   शीतल पवन
घर  आजा  तू   मेरे  सनम

रेखा जोशी




Tuesday, 3 June 2014

माना कि बहुत कठिन डगर है प्यार की

धीरे  धीरे  मुहब्बत  में सरूर  आना है
राह ए इश्क में तुम्हे भी जरूर आना है
हमने माना कि बहुत कठिन डगर है प्यार की
वफ़ा ए दीपक जलाने भी जरूर आना है

रेखा जोशी 

Sunday, 1 June 2014

गरजत बरसत काले मेघा आये न पिया

रिम झिम रिम झिम
गरजत बरसत
काले मेघा
आये न पिया 

टप टप टिप टिप 
बरस रही 
बूंदे बारिश की 
पिया गये परदेस सखी री 
मोहे छोड़ अकेला
सूना अंगना बिन पिया
जले जिया
आये न पिया 

रिम झिम रिम झिम
गरजत बरसत
काले मेघा
इक बरसे बदरिया
दूजे मोरे नयना 
आये न पिया

बिजुरी चमके
धड़के जिया घर आजा
मोरे सावरियाँ
गरजत बरसत
काले मेघा
आये न पिया 

चारो ओऱ
जलथल जलथल
तरसे प्यासे नयना
पीर न जाने
इस दिल की
धड़के मोरा जिया

रिम झिम रिम झिम
गरजत बरसत
काले मेघा
आये न पिया

रेखा जोशी