यादों के पिटारे में झांक के देखा तो मानस पटल पर कुछ वर्ष पहले की तस्वीरें उभरने लगी | मौसम करवट बदल रहा था ,सुहावनी सुबह थी और हल्की ठंडी हवा तन मन को गुदगुदा रही थी | गरमागर्म चाय की चुस्कियों के साथ हाथ में अखबार लिए मै उसे बरामदे में बैठ कर पढने लगी | मौसम इतना बढ़िया था कि वहां से उठने का मन ही नहीं हो रहा था ,घडी पर नज़र डाली तो चौंक पड़ी ,आठ बज चुके थे ,''अरे बाबा नौ बजे तो मेरा पीरियड है ''मन ही मन बुदबुदाई ''|जल्दी से उठी और कालेज जाने कि तैयारी में जुट गई | प्रध्यापिका होने के नाते हमे कालेज पहुंच कर सब से पहले प्रिंसिपल आफिस में हाजिरी लगानी पडती थी ,जैसे ही मै वहां पहुंची तो प्रिंसिपल के आफिस के बाहर काला बुरका पहने एक महिला खड़ी थी | एक सरसरी सी नजर उस पर डाल मै आफिस के भीतर जाने लगी ,तभी उसने पीछे से मेरे कन्धे को थपथपाया | मैने मुड कर उसकी ओर देखा ,उसने अपना सिर्फ एक हाथ जिसमे एक पुराना सा कागज़ का टुकड़ा था मेरी ओर बढाया,मैने उससे वह कागज़ पकड़ा ,उसमे टूटी फूटी हिंदी में लिखा हुआ था ,''मै बहुत ही गरीब हूँ ,मुझे पति ने घर से निकल दिया है ,मेरी मदद करो '' मैने वह कागज़ का टुकड़ा उसे लौटाते हुए उसे उपर से नीचे तक देखा ,वह ,पूरी की पूरी काले लबादे में ढकी हुई थी ,उसके पैरों में टूटी हुई चप्पल थी ,जिस हाथ में कागज़ था ,उसी हाथ की कलाई में हरी कांच की चूड़िया झाँक रही थी |मै उसे बाहर कुर्सी पर बिठा कर ,आफिस के अंदर चली आई| आफिस के अंदर लगभग सभी स्टाफ मेमबर्ज़ मौजूद थे | वहां खूब जोर शोर से चर्चा चल रही थी ,विषय था वही पर्दानशीं औरत ,हर कोई अपने अपने अंदाज़ में उसकी समीक्षा कर रहा था | किसी की नजर में वह असहाय थी ,किसी की नजर में शातिर ठग,कोई उसे कालेज से बाहर निकालने की बात कर रहा था तो कोई उसकी मदद करने की राय दे रहा था | अंत में फैसला हो गया ,उसे स्टाफ रूम में ले जाया गया और उसके लिए चाय नाश्ता मंगवाया गया ,पता नहीं बेचारी कितने दिनों की भूखी हो ,सभी स्टाफ मेमबर्ज़ से बीस बीस रूपये इकट्ठे किये गए और उन्हें एक लिफ़ाफ़े में डाल उसके हाथ में थमा दिया गया |तभी एक प्रध्यापिका ने उनके चेहरे से पर्दे को उठा दिया ,यह कहते हुए ,''हम लेडीज़ के सामने यह पर्दा कैसा ''| उनका चेहरा देखते ही सब अवाक रह गये ,''अरे यह तो डा: मसेज़ शुक्ला है |पूरे स्टाफ की नजरें उनके चेहरे पर थी ,उनकी आँखों में थी शरारत और होंठो पर हसीं,''हैपी अप्रैल फूल ,कहो कैसा रहा मेरा तुम सबको फूल बनाने का अंदाज़ | उन्होंने बुरका उतार कर एक ओर रख कर दिया और वो खिलखिला के हंस पड़ी और उनके साथ साथ हम सब भी खिसियाए हुए हंसने लगे | डा मिसेज़ शुक्ला हमारी सहयोगी और अंग्रेजी विभाग की एक सीनियर प्रध्यापिका थी | उन्होंने उसी लिफ़ाफ़े में से बीस बीस के कई नोट निकाले और कंटीन में चाय पकौड़ों की पार्टी के आयोजन के लिए फोन कर दिया| वो सारा दिन हमने खूब मौज -मस्ती में गुज़ारा ,गीत संगीत के साथ गर्मागर्म चाय और पकौड़ों ने हम सब को अप्रैल फूल बना कर के भी आनंदित किया |डा मिसेज़ शुक्ला भले ही कुछ वर्ष पूर्व रिटायर हो चुकी है लेकिन उनका पूरे स्टाफ को ,''फूल'' बनाना हम सब को हमेशा याद रहे गा खासतौर पर अप्रैल की पहली तारीख को |
Friday, 22 March 2013
होली
दिलों में प्यार लिए आज आई होली
मस्ती चहुं और आज लायी होली
रंगों में उमंग औ उमंगो में है रंग
लाल,गुलाल ,नीले ,पीले रंगों से रंगे
लुभा रहें है सब आज हो के बदरंग
बगिया सूनी बिन फूलों के जैसे
अधूरी है होली बिन गाली के वैसे
प्यार भरी गाली से हुआ वो कमाल
हुए गाल गोरी के लाल बिन गुलाल
गुलाबों का मौसम है बगिया बहार पे
कुहक रही कोयलिया ,अंबुआ की डाल पे
थिरक रहें आज सब हर्षौल्लास में
झूम रहें सब आज फागुन की बयार में
Tuesday, 19 March 2013
इक कसक
बीत गए थे
प्यार भरे वो दिन
बेताब दिल
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सिंधूरी रात
हसीन सपनों की
इक कसक
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घड़ी दो घड़ी
साथ तुम्हारा चाहा
हूँ बेकरार
...............
तलाश रहा
वो चाहत अपनी
राहें पुरानी
................
इस दिल में
बसेरा तुम्हारा है
तुम ही तुम
डूबता सूरज ढलती शाम
गोवा का डोना पोला टूरिस्ट स्थल ,चारों ओर मौज मस्ती का आलम और टूरिस्ट सेनानियों का जमघट ,ऐसा लग रहा था मानो पूरी दुनियां यहाँ इकट्ठी हो गई हो \सबको इंतजार था सूरज के डूबने का ,बेहद आकर्षक नजारा था \अपने चारों ओर लालिमा लिए सूरज धीरे धीरे क्षतिज की ओर बढ रहा था और सबकी आखें दूर आकाश पर टिकी हुई थी \समुद्र इस रंगीन स्थल को अपने में लपेट कर लहरों की धुन पर ठंडी हवा के तेज़ झोंकों से सबके दिलों को झूले सा हिला रहा था \कई देसी, विदेशी सेनानी ओर भीड़ में कई नवविवाहित जोड़े रंग बिरंगी ड्रेसिज़ और सिर पर अजीबोगरीब हैट पहने ,हाथों में हाथ लिए रोमांस कर रहे थे \कुछ मनचले युवक टोली बना कर घूम रहे थे और कई दम्पति अपने बच्चों सहित छुट्टियाँ मना रहे थे \ आकाश में सूरज तेज़ी से धरती के दूसरे छोर जहाँ दूर दूर तक पानी ही पानी दिखाई दे रहा था छूने को बेताब हो रहा था ,उसकी लालिमा समुद्र में बिखरने लगीं थी और धीरे धीरे लाल होता समुद्र सूरज को अपने आगोश में लेने को बैचेन हो रहा था\ अब कई लोग हाथों में कैमरे लिए उस अद्धभुत नजारे को कैद करने जा रहे थे\ तभी मेरी नजर दूर बेंच पर पड़ी ,एक बुजुर्ग जोड़े पर पड़ी जो आसमान की ओर टकटकी लगाये उस डूबते सूरज को देख रहा था ,उनके चेहरे पर खिंची अनेकों रेखाए जीवन में उनके अनगिनत संघषों को दर्शा रही थी,तभी वह दोनों धीरे से बेंच से उठे ,एक दूसरे का हाथ थामा और धीमी चाल से रेलिंग की ओर बढने लगे \हिलोरें मारती हुई समुद्र की विशाल लहरों का शोर उस ढलती शाम की शांति को भंग कर रहीं था\ लाल सूरज ने समुद्र के पानी की सतह को लगभग छू लिया था ,ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे एक विशालकाय आग का गोला पानी के उपर पड़ा हो \ भीड़ में से अनेकों हाथ कैमरा लिए उपर उठ चुके और अनेकों फलैश की रोशनियाँ इधर उधर से चमकने लगी,परन्तु मेरी नजरें उसी बुज़ुर्ग दम्पति पर टिकी हुई थी \ अचानक उस बुज़ुर्ग महिला ने अपना संतुलन खो दिया और वह गिरने को हुई ,जब तक कोई उन्हें संभालता उनके पति कि बूढी बाँहों ने उन्हें थाम लिया \उन दोनों ने आँखों ही आँखों में इक दूसरे को देखा और उनके चेहरे हलकी सी मुस्कराहट के साथ खिल गए \तभीमै वहां पहुंच चुकी थी ,”’आंटी ,आप ठीक तो हैं ,” अचानक ही मै बोल पड़ी\ लेकिन उतर दिया उनके पति ने ,”बेटा पचपन साल का साथ है ,ऐसे कैसे गिरने देता”\मैंने अपना कैमरा उनकी ओर करते हुए पूछा ,”एक फोटो प्लीज़ और उनको डूबते सूरज के साथ अपने कैमरे में कैद कर लिया\सूरज अब जल समाधि ले चुका था \भीड़ भी अब तितर बितर होने लगी थी, लालिमा कि जगह कालिमा ने लेना शुरू कर दिया ,सुमुद्र की लहरें चट्टानों से टकरा कर शोर मचाती वापिस समुद्र में लीन हो रही थी परन्तु मेरी निगाहें उसी दम्पति का पीछा कर रही थी ,हाथों में हाथ लिए वह दोनों दूर बाहर की ओर धीरे धीरे चल रहे थे \जिंदगी की ढलती शाम में उनका प्यार सागर से भी गहरा था \ परछाइयां लम्बी होती जा रही थी और मै उसी रेलिंग पर खड़ी सुमुद्र की आती जाती लहरों को निहार रही थी ,मन व्याकुल सा हो रहा था ,कल फिर सूरज उदय होगा ,शाम ढलते ही डूब जाये गा परन्तु पचपन साल का प्यार और साथ, उनकी ढलती जिंदगी की शाम का एक मात्र सहारा |
Saturday, 16 March 2013
आये जो तुम संग आई बहारें
पल पल हम तुमको है निहारें
आये जो तुम संग आई बहारें
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महकती चांदनी ने चूमा आंगन
बहने लगी सुहानी शीतल पवनसुरमई शाम का स्नेहिल स्पर्श
थिरकने लगा ये मन भर उमंग
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पल दो पल जो तुम हमसे मिले
वीरान राहों में गुलाब खिल गए
बिखर गई महक इन हवाओं में
गुनगुनाने लगी बहारें सब ओर
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बजने लगी शहनाई मन में मेरे
नाच उठा झंकृत मेरा तन बदन
लब पर आ गए तराने प्यार भरे
गाने लगी फिजायें संग संग मेरे
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पल पल हम तुमको है निहारें
आये जो तुम संग आई बहारें
Thursday, 14 March 2013
तार तार हुआ माँ का आंचल
इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा ,नई दिल्ली , यात्रियों की भीड़ अमरीका जाने वाले यात्री गण सिक्योरिटी चेकिंग पर खड़े अपनी बारी आने का इंतज़ार कर रहे थे| उन यात्रियों की भीड़ में एक बूढी महिला अपना घर बाहर सब कुछ बेच कर हिन्दुस्तान से सदा के लिए अपने लाडले बेटो के साथ अमरीका जा रही थी |उसके दोनों बेटों ने अपनी बूढी माँ को वेटिंग हाल की एक सीट पर बिठा दिया और अपना सामान ले कर सिक्योरिटी चेकिंग के लिए चले गए |बूढी अम्मा ,आँखों में हजारों सपने लिए अपने परिवार के साथ रहने जा रही थी ,अपने वाहे गुरु का धन्यवाद कर रही थी ,जो उसने उसे इतने अच्छे आज्ञाकारी पुत्र दिए ,बहुये दी ,पोते पोतियाँ दी ,भरा पूरा परिवार है उसका अमरीका में ,वहां उसका बुढापा अब चैन से कटे गा |यह बुढ़ापा भी कितना बेबस और लाचार कर देता है इंसान को ,एक एक करके शरीर का हर अंग शिथिल पड़ने लगता है ,आँखें धुंधला जाती है ,दांत कब का साथ छोड़ चुके होते है , कमर जिंदगी का बोझ ढोते ढोते झुक जाती है ,घुटने बेबस और टाँगे आगे चलने से इनकार करने लगती है ,ऐसे में अकेले जिन्दगी काटना नामुमकिन सा हो जाता है और वो भी पति के गुजर जाने के बाद | उसने अपने बैग से जपजी साहब की छोटी सी पुस्तिका निकाली और उस वाहेगुरु का जप करने लगी ,कब बैठे बैठे उसकी आँख लग गयी ,उसे पता ही नहीं चला |''अम्मा उठो ,कहाँ जाना है आपको ?,''आंखे खोलते ही अम्मा ने एक अजनबी को अपने सामने खड़े पाया |''बेटा ,मुझे तो अमरीका वाले जहाज में जाना है ,मेरे बेटे बस आते ही होंगे''|''किस फलाईट की बात कर रही हो अम्मा ,अमरीका जाने वाला जहाज तो कल रात को ही चला गया और अब तो सुबह हो गई है ''|''नहीं नहीं बेटा तुम्हे कोई गलतफहमी हुई है ,मेरे हरदयाल और मुखतयार बस आते ही होंगे ''|यह कहते ही अम्मा ने अपना बैग उठाया और चलने को तैयार हो गई |वह अजनबी अवाक खड़ा उस बुढ़िया को देख रहा था ,एयर इण्डिया का वो कर्मचारी समझ चुका था कि इस लाचार अम्मा के नालायक बेटे इसे यहीं छोड़ अमरीका जा चुके है |अम्मा से उसका बैग पकड़ते हुए ,उसे अपने साथ चलने को कहा,''अम्मा तुम कहाँ रहती हो ,चलो मै आपको आपके घर छोड़ आता हूँ ''|अम्मा थोड़ी ऊँची आवाज़ में बोली ,''तुम यह क्या अनाप शनाप बोले जा रहे हो ,कितनी बार कहा है कि मुझे अमरीका ही जाना है ,मैने अपना दिल्ली वाला मकान बेच कर सारे रूपये अपने बेटों को दे दिए है और अब मुझे उनके साथ अमरीका में ही रहना है ''|एयर इण्डिया का वो कर्मचारी उस भोली माँ को उसके कपूतों कि काली करतूत बताने में अपने आप को असमर्थ पा रहा था ,उस बुढ़िया का रुपया पैसा ,घर सब कुछ छीन कर उसके कपूत उसे अकेला बेसहारा भगवान भरोसे छोड़ कर दूर चले गए ,जीते जी अपनी माँ को मार दिया उन्होंने , आज उस ममतामयी माँ का आंचल तार तार हो चुका था ,वही आंचल जिसकी छाँव में उन कपूतों का बचपन बीता था ,वह आंचल जिससे उन्हें जिंदगी मिली थी| बड़ी मुश्किल से उस कर्मचारी ने अम्मा को उस कड़वी सच्चाई से अवगत कराया,तो मानो उसके पाँव तले धरती खिसक गई चलते चलते लड़खड़ा गए उस बुढ़िया के पाँव ,वज्रपात हुआ उस माँ के ममतामयी सींने पर ,इतना बड़ा धोखा ,वो भी अपने पेट जाए बच्चों से ,धम से वह वहीं बैठ गई आक्रोश और गुस्से से उसके भीतर का ज्वालामुखी फूट पड़ा और वह जोर जोर से विलाप करने लगी ,''ओये हरद्याले ,ओये मुख्त्यारे ,की कीता तुसां ,मैनू ,अपनी माँ नू इ लुट लया,मै एथे किवें रवां गी .किथे रवां गी ,''बोलते बोलते अचानक वह चुप हो गई ,उसके आस पास भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी |उसने अपने आप को सम्भाला और खड़ी हो कर उस एयर इण्डिया के कर्मचारी की तरफ असहाय नजरों से देखा और वह उसे भीड़ से निकाल बाहर ले आया और पूछा ,''अम्मा अब कहाँ जाओ गी ''?कुछ भी सूझ नही रहा था उसे ,उसके अंदर के ज्वालामुखी का लावा , उसकी आँखों से लगातार अश्रुधारा के रूप में बहता ही जा रहा था |उस कर्मचारी ने मानवता के नाते उसे पानी पिला कर एक कमरे में बिठा दिया |रोते रोते बूढी अम्मा ने बोलना शुरू किया ,''मै,गीले में सोती थी ,इन्हें सूखे में डालकर ,इन्हें अमरीका भेजने के लिए मैने अपने सारे गहने भी बेच दिए ,इन निक्ख्तो की खातिर सबसे लड़ पडती थी मै ,इनके दार जी से भी ,अच्छा हुआ वो यह सब देखने से पहले ही इस दुनिया से चले गए ,उसके आंसू थमने का नाम ही नही ले रहे थे|लम्बी चुप्पी के बाद वह बोली ,''बेटा फगवाड़े में मेरे दूर के रिश्तेदार रहते है ,तुम्हारा भला होगा तुम मुझे वहां छोड़ आओ ,जैसे तैसे होगा अपना पेट तो भर ही लुंगी |वह एयर इण्डिया का कर्मचारी उसे ले कर फगवाड़े जाने की तैयारी में जुट गया और बूढ़ी अम्मा ने अपने तार तार हुए आंचल से अपने आंसू पोंछ लिए ,लेकिन उसका ममतामयी मन अंदर ही अंदर जल रहा था ,सुलग रहा था ,काश उसके बेटों ने उसकी ममता का यूँ गला न घोटा होता |काश वह उसे अपने साथ अमरीका ले जाते |वह एयर इण्डिया का कर्मचारी अम्मा को फगवाडे छोड़ कर आ गया था| उसके बाद पता नही ,वह वहां कैसे रही ,किसके पास रही ,शायद अब वह इस दुनियां में है भी याँ नही |
कपूतों की माताओं के दिल की आवाज़ :
यूं सुलगता है दिल ,जैसे सुलगती चिता ,
सब खत्म होने के बाद फिर धुंआ क्यों?
अंगारे तो सब जल कर राख हुए ,
फिर यह धधकती ज्वाला क्यों ?
Wednesday, 13 March 2013
कब तक अग्नि परीक्षा दोगी सीता मैया ?
वो रो रही थी ,चिल्ला रही थी लेकिन उन वहशी दरिंदों के चुंगल से निकलना उसके लिए असंभव था ,वह छ पुरुष थे और वह अकेली लड़की ,वो बलशाली और वह निर्बल अबला नारी ,सिर्फ शारीरिक रूप से अबला लेकिन मन शक्तिशाली ,वह उनके बाल नोच रही थी ,उन भेड़ियों को अपने दांतों से काट रही थी परन्तु उन जंगलियों से अपने तन को बचाने में वह नाकायाब रही ,बुरी तरह से घायल उस लड़की को उसके जख्मी पुरुष मित्र सहित उन भेड़ियों ने उन्हें चलती बस से बाहर फेंक दिया था,दामिनी के साथ घटी इस अमानवीय घटना से पूरे देश में आक्रोश की लहर दौड़ उठी ,नारी की सुरक्षा को लेकर हर कोई चिंतित हो उठा ,बलात्कार हो याँ यौन शोषण इससे पीड़ित न जाने कितनी युवतियां आये दिन आत्महत्या कर लेती है और मालूम नही कितनी महिलायें अपने तन ,मन और आत्मा की पीड़ा को अपने अंदर समेटे सारी जिंदगी अपमानित सी घुट घुट कर काट लेती है क्या सिर्फ इसलिए कि ईश्वर ने उसे पुरुष से कम शारीरिक बल प्रदान किया है |यह तो जंगल राज हो गया जिसकी लाठी उसकी भैंस ,जो अधिक बलशाली है वह निर्बल को तंग कर सकता है यातनाएं दे सकता है ,धिक्कार है ऐसी मानसिकता लिए हुए पुरुषों पर ,धिक्कार है ऐसे समाज पर जहां मनुष्य नही जंगली जानवर रहतें है |जब भी कोई बच्चा चाहे लड़की हो याँ लड़का इस धरती पर जन्म लेता है तब उनकी माँ को उन्हें जन्म देते समय एक सी पीड़ा होती है ,लेकिन ईश्वर ने जहां औरत को माँ बनने का अधिकार दिया है वहीं पुरुष को शारीरिक बल प्रदान किया ,हम सब इस बात को स्वीकारते हैं कि महिला और पुरुष इस समाज के समान रूप से जरूरी अंग हैं परन्तु हमे यह भी स्वीकारना पड़ेगा चाहे नर हो याँ नारी दोनों का अपना भी स्वतंत्र अस्तित्व है और उन्हें अपने अधिकारों, स्वतंत्रता और समानता या फिर अपनी सुरक्षा के लिए मांग करना किसी भी प्रकार से अनुचित नही है क्योंकि सच तो यही है ,महिला-पुरुष दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं कम या अधिक नहीं। अब समय आ गया है सदियों से चली आ रही मानसिकता को बदलने का, नारी को शोषण से मुक्त कर उसे पूरा सम्मान और समानता का अधिकार दिलाने का ,ऐसा कौन सा क्षेत्र है जहां नारी पुरुष से पीछे रही हो एक अच्छी गृहिणी का कर्तव्य निभाते हुए वह पुरुष के समान आज दुनिया के हर क्षेत्र में ऊँचाइयों को छू रही है ,क्या वह पुरुष के समान सम्मान की हकदार नही है ?तब क्यूँ उसे समाज में दूसरा दर्जा दिया जाता है ?केवल इसलिए कि पुरुष अपने शरीरिक बल के कारण बलशाली हो गया और नारी निर्बल | अगर नारी अपनी सुरक्षा की मांग कर रही है तो सबसे पहले यह सोचना चाहिए ''सुरक्षा किससे मिलनी चाहिए ?''सुरक्षा हमारे समाज के उन जंगली भेड़ियों से मिलनी चाहिए जो दिखते तो मनुष्य जैसे है लेकिन अंदर से विक्षिप्त मानसिकता लिए हुए जंगली जानवर है जो मौका मिलते ही नारी को नोच खाने के लिए टूट पड़ते है |जब भी कोई जगली जानवर पागल हो जाता है तो उसे गोली मार दी जाती है ताकि वह कभी भी किसी को कोई नुक्सान न पहुंचा सके,लेकिन हमारे देश में तो यहाँ वहां ऐसे जानवर सरेआम घूमते हुए मिल जाएँ गे, न जाने कब और किस नारी को दबोच लें , चाहे वह दो तीन साल की अबोध बालिका हो याँ फिर सत्तर साल की माँ समान नारी हो | इतिहास साक्षी है कि इस देश की धरती पर लक्ष्मीबाई जैसी कई वीरांगनाओं ने जन्म लिया है ,वक्त आने पर जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति भी दी है और जीजाबाई जैसी कई माताएं भी हुई है जिन्होंने कई जाबाजों को जन्म दे कर देश पर मर मिटने की शिक्षा भी दी है ,नारी की सुरक्षा ही एक स्वस्थ समाज और मजबूत राष्ट्र का निर्माण कर सकती है ,जब भी कोई बच्चा जन्म लेता है तो वह माँ ही है जो उसका प्रथम गुरु बनती है ,अगर माँ ही असुरक्षित होगी तो हमारी आने वाली पीढियां भी सदा असुरक्षा के घेरे में रहें गी और राष्ट्र का तो भगवान् ही मालिक होगा | |बहुत ही दुःख होता है ऐसे पुरुषों की सोच पर जो यह समझते हैं कि महिलाएं शोषित, कमजोर और लाचार हैं तभी तो वह आन्दोलन कर अपनी सुरक्षा की मांग कर रही है | |शर्म आती है मुझे जब आज भी नारी को ही कठघड़े में खड़ा कर उसकी अग्निपरीक्षा ली जाती है और बलात्कारी सलाखों के पीछे कैद न हो कर खुलेआम सडकों पर घूमता है |अपने तन मन और आत्मा से घायल पीड़ित नारी को इन्साफ मिलना तो दूर उसके अपने सगे सम्बंधी,यहाँ तक कि उसके अपने माँ बाप तक उसे अपनाने से इनकार कर देते है और वह जाए तो कहाँ जाए |समाज दुवारा पीड़ित ,अपमानित ,बेबस नारी अपनी आँखों में आंसू भर कर ईश्वर से प्रार्थना ही कर सकती है ,''काश यह धरती फट जाए और मै उसमे समा जाऊं |'' अपनों दुवारा ठुकराए जाने पर वह और कर भी क्या सकती है ,मै समाज से आज पूछती हूँ कि नारी को कब तक ,आखिर कब तक सीता मैया की तरह अग्निपरीक्षा दे कर अपने आपको सदा प्रमाणित करते रहना होगा ? बस बहुत सह लिया ,और नही ,अब और नही ,नारियों को जागना होगा ,हमारी सरकार और समाज को महिलाओं के प्रति सम्मान ,पुरुष के साथ समानता और सुरक्षा का अधिकार तो देना ही होगा |
Tuesday, 12 March 2013
लालच ,भ्रष्टाचार की जड़
मेरे घर एक छोटी सी नन्ही परी है ,मेरी फुदकने वाली पांच साल की गुडिया ,जिसकी एक हँसी पूरे घर में खुशियाँ बिखेर देती है \उसकी एक फरमाइश पर उसकी पसंद की चीज़ उसके सामने हाजिर हो जाती है \उसका छोटा सा कमरा ढेरों खिलौने से भरा होने के बावजूद जब भी वह मार्किट जाती है तो वह किसी नये खिलौने को देख मचल उठती है ,''मुझे यह वाला चाहिए ,नहीं नहीं, मुझे तो वो वाला चाहिए ''और उसकी जिद के आगे किसी का बस नहीं चल पाता\यह दिल तो है ही ऐसा ,क्या छोटे क्या बड़े ,हर किसी को कुछ न कुछ चाहिए ,यह कमबख्त दिल तो बस मांगे मोर और मोर .....अपनी अपनी इच्छाओं की एक न खत्म होने वाली सूची हरेक के पास सदा रहती है लेकिन दिल तो दीवाना है, किसी आशिक से पूछ कर के तो देखो अपनी महबूबा के लिए आसमान से तारे तोड़ने की बातें करे गा,नामुमकिन को भी मुमकिन बनाने की यह कोशिश इस दिल की जिद ही तो है और उसकी इस जिद के कारण बेचारा दिमाग घुटने टेक देता हैऔर ,उसकी सोचने समझने की बत्ती हो जाती है गुल \वह सही और गलत का अंतर ही समझ नहीं पाता\अरे भाई ठीक है जिंदगी में हर कोई उड़ान भरना चाहता है,कुछ पाना चाहता है,एक कमरे में रहने वाले को दो कमरे चाहिए और कोठियों ,फ़ार्म हाउसिज़ के मालिकों की निगाहें मुकेश अंबानी सरीखे रईसों पर होती है \अगर फलां फलां के पास मर्सिडीज़ गाड़ी है तो उसके पास क्यों नहीं हो सकती \उसका दोस्त अगर हवाई जहाज में सफर कर सकता है तो वो क्यों नही ?मिर्ज़ा ग़ालिब ने सही कहा है ,''हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिशपे दम निकले ''इस पागल दिल के पीछे लग कर नासमझ इंसान बिना सोचे समझे कूद पड़ता है, लालच की अन्धी दौड़ में,हर कोई भाग रहा है पैसे के पीछे ,दीन ईमान को ताक पे रख कर ,जैसे भी हो बस चाहिए तो चाहिए सिर्फ पैसा ही पैसा,जैसे भी मिले ,कहीं से भी मिले ,काला हो यां सफ़ेद कोई परवाह नहीं,भई पैसा तो आखिर पैसा है\उफ़ यह लालच ,भ्रष्टाचार की जड़ ,कहाँ जा कर खत्म होंगी ये जड़ें, रुकने का नाम ही नहीं लेती,फैलती ही चली जा रही है खरपतवार की तरह ,सींच तो दिया इसने देश में कई घोटालों को :बस और नहीं अब और नहीं ,देश खोखला हो तो हो ,लालच के अंधों को देश से कोई सरोकार नही\बचपन में एक कहानी सुनी थी ;एक राजा को वरदान मिला था ,वह जिस वस्तु को छुए गा वह सोने में बदल जाए गी,लालच में अंधे हो कर उसने अपने महल की हर वस्तु को सोने में बदल दिया,लेकिन उसे पछतावे के सिवा कुछ नहीं मिला,उसका भोजन सोने में बदल चुका था ,जब उसकी जान से भी प्यारी बिटिया उसके छूने से सोने की मूर्ति बन गई ,तब उसे एहसास हुआ कि लालच बुरी बला है लेकिन अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गयी खेत \अरे भैया समय रहते संभल जाओ ,दिल को उड़ान भरने दो पर संभल कर,सीमाओं में रह कर ,ऐसा न हो कही यह लालच का भूत कभी तुम्हे भी पछताने को मजबूर न कर दे \
Monday, 11 March 2013
पवित्र रिश्ता
महक , एक खूबसूरत लड़की न जाने कैसे गलत दोस्तों के संसर्ग में आ कर ड्रग्स के सेवन में उलझ कर रह गई ,मस्ती के आलम में एक ही सिरींज से उसने अपने साथियों के साथ बांटा ,इस बात से अनभिज्ञ कि वह एक ऐसी जानलेवा बीमारी को निमंत्रण दे चुकी है जो लाइलाज है ,जी हाँ एड्स यानीकि'‘एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिसिएंशी सिंड्रोम'' जिसका अर्थ है ''मनुष्य की प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर अनेक बीमारियों का उस पर प्रहार '' जो की एच.आई.वी''. वायरस से होती है.और यह वायरस ही मनुष्य की प्रतिरोधी क्षमता पर असर कर उसे इतना कमज़ोर कर देता है,जिसके कारण खांसी ज़ुकाम जैसी छोटी से छोटी बीमारी भी रोगी की जान ले सकती है |यह जानलेवा बीमारी किसी भी इंसान में एच.आई. वी. ''ह्यूमन इम्यूनो डेफिसिएंशी वाइरस ''के पाजी़टिव होने से होती है ,लेकिन महक इन सब बातों से दूर थी उसने तो सिर्फ अपने एक साथी से ड्रग्स का इंजेक्शन ले कर लगाया था ,इस बात से बेखबर कि उसने किसी एच आई वी पासिटिव व्यक्ति के रक्त से संक्रमित हुए इंजेक्शन का सेवन कर लिया था,जिसने उसे मौत के मुहं की तरफ धकेलदिया था ,क्योकि इस बीमारी का इलाज तो सिर्फ और सिर्फ बचाव में ही है ,अगर कोई''एच आई वी'' से ग्रस्त व्यक्ति किसी भी महिला यां पुरुष से असुरक्षित यौन सम्बन्ध बनाता है तोवह उसे तो इस बीमारी से ग्रस्त करता ही है और अगर इस बीमारी से पीड़ित किसी पुरुष से कोई महिला गर्भवती हो जाती है तो उसके पेट में पल रहे बच्चे को भी यह जानलेवा बीमारी अपनी ग्रिफ्त में ले लेती है ,इसी कारण हमारे देश में इस रोग से पीड़ित लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है , समलैंगिक सम्बन्ध ,रेड अलर्ट एरिया भी भारी संख्या में इस खतरनाक बीमारी को फैलाने में अच्छा खासा योगदान दे रहें है ,आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी और अनैतिक संबंधों की बढ़ती बाढ़ से यह बीमारी और भी तेजी से फैल रही है,और पूरे विश्व के लिए यह एक अच्छी खासी सिरदर्द बन चुकी है,यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इस बीमारी को बेहद गंभीरता से लिया है और हर वर्ष पहली दिसंबर को यह दिन ''विश्व एड्स दिवस''के रूप में मनाया जाता है ताकि दुनिया भर में लोगों को इस नामुराद बीमारी से अवगत करा कर इससे बचने के उपाय बताये जा सकें |इस खतरनाक ,लाइलाज बीमारी से अगर कोई ग्रस्त हो गया तो बस समझ लो वह मौत के मुहं में पहुंच चुका है उसके बचने का कोई भी उपाय नही है ,इस जानलेवा बीमारी से बचने का एक मात्र उपाय केवल सावधानी और बस सावधानी ही है ,यह एक ऐसा सुरक्षा चक्र है जो इस भयानक बीमारी से हर किसी को दूर रख सकता है ,वह है पति पत्नी का इक दूजे के प्रति उनका समर्पण भाव ,हमारे हिन्दू धर्म में विवाह को सदा एक पवित्र रिश्ता माना जाता रहा है जिसमे पति के लिए पत्नी और पत्नी के लिए पति पूजनीय है ,कितना ही अच्छा हो अगर हम सब इस रिश्ते की गरिमा को समझ कर सदा अपने जीवन साथी के प्रति समर्पित रह कर एड्स जैसी घिनौनी बीमारी को सदा के लिए अपने से दूर रखें |इससे पहले कि महक जैसे अनेक भटके हुए युवा अपनी जवानी के नशे में जिंदगी के अनदेखे ,अनजाने रास्तों पर चल कर अपनी मौत को खुद ही आमंत्रित करें हम सबका यह कर्तव्य बनता है कि हम उन्हें सही राह दिखाते हुए इस बीमारी से बचने के लिए पति पत्नी के आपसी प्रेम के सुरक्षा चक्र के बारे में जानकारी दे कर उनका मार्गदर्शन करे ओर उनको एक स्वस्थ और खुशहाल जिंदगी की ओर अग्रसर करे |
गरल गरल सुधा सुधा
छिड़ी थी जंग
सुर औ असुर में
अमृत पाना
.....................
मोहिनी रूप
सागर का मंथन
किया था छल
......................
मस्त असुर
देवों के अधर पे
रख दी सुधा
..................
गरल आया
नीलकंठ शंकर
विश्व बचा
.................
गरल सुधा
मिलते जीवन में
है यही पाया
..................
स्वाती अमृत
मिल कर जो पियें
ये सुधा सुधा
....................
धरो कंठ में
ये गरल गरल
सब के लिए
Sunday, 10 March 2013
ख़ुशी ,शांति और सम्पनता
सदियों पुराने वास्तुशास्त्र को लेकर अक्सर मन में यह शंका उत्पन्न होती है ,''क्या वास्तव में आज के इस वैज्ञानिक युग में वास्तु का कोई महत्व है?'' याँ फिर हम ऐसे ही अंधाधुन्द इसका अनुसरण कर रहे है ,हाँ इस विषय पर कोई शोध नही हुआ जिससे इसकी प्रामाणिता सिद्ध हो सके | इस शास्त्र को जानने की मुझ में भी जिज्ञासा उत्पन्न हुई ,वास्तुशास्त्र में लिखी कुछ बातों का मैने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विश्लेष्ण किया जिसे मै आप सब के साथ बांटना चाहती हूँ |
१ ऐसे कई क्षेत्र है जहाँ सदियों पुराना विज्ञानं ,आधुनिक विज्ञानं के साथ आश्चर्यजनक् रूप से एकरस हो रहा है |रंगों की दुनिया की ही बात करें तो इस में कोई दो राय नहीं ,कि रंगों का मनोवैज्ञानिक रूप से हमारे दिलोदिमाग पर आश्चर्यजनक रूप से असर पड़ता है |लाल रंग को ही लें ,जो की ऊर्जा का प्रतीक है ,वास्तुशास्त्र के अनुसार दक्षिण पूर्व दिशा रसोईघर के लिए निर्धारित की गई है जिसे अग्निकोण भी कहा जाता है |इसी तरह हरे रंग के लिए पूर्व दिशा निर्धरित की गई है ,हरा रंग विकास का प्रतीक है इसलिए इस दिशा में बच्चों का कमरा निर्धारित किया गया है ,वह इसलिए क्यों कि बच्चों के शारीरिक ,बौद्धिक व् मानसिक विकास पर इस रंग का और इस दिशा का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है|
२ पदार्थ विज्ञानं के अनुसार पूरी सृष्टि पञ्च तत्वों से बनी है ,अग्नि ,वायु जल, धरती और आकाश |हर तत्व का अपना एक रंग होता है और अपनी ही एक दिशा ,अगर किसी इमारत सही दिशा में में पञ्च तत्वों के अनुसार रंगों का सही दिशा में चुनाव किया जाये तो उसमें रहने वाले सभी लोगों पर सकारात्मक प्रभाव पड़े गा |विज्ञानं के अनुसार हम जानते है की हर रंग की अपनी ही उर्जा होती है|अगर किसी स्थान पर रंगों को सही दिशा में नहीं रखा जाता तो रंगों से निकलने वाली तरंगो की ऊर्जा आपस में उलझ कर रह जाती है जिसके कारण वह उर्जा सहायक न हो कर विपरीत प्रभाव दे सकती है |इसलिए विभिन्न रंगों को अगर हम पञ्च तत्वों के अनुसार किसी भी इमारत में लगवाया जाए उस जगह पर ख़ुशी ,शांति और सम्पनता का वास रहे गा |
३ वास्तुशास्त्र में लिखा गया है कि सोते समय हमारा सिर दक्षिण दिशा की ओर और पाँव उत्तर दिशा में होने चाहिए ,वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह बिलकुल सही है क्योकि हमारी धरती भी एक चुम्बक है और भूगोलीय उत्तर की तरफ धरती का दक्षिण चुम्बकीय छोर है और भूगोलीय दक्षिण की तरफ धरती का उत्तर चुम्बकीय छोर है |भौतिक विज्ञान के अनुसार चुम्बकीय रेखाएं सदा उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर जाती है ,इससे यह ज्ञान होता है कि धरती की चुम्बकीय रेखाओं की दिशा भूगोलीय दक्षिण से भूगोलीय उत्तर की तरफ होती है | हम यह भी जानते है कि हमारे शरीर में बह रहे रक्त में लोहा भी होता है ,जिसके उपर चुम्बक का प्रभाव पड़ता है |जब हम भूगोलीय दक्षिण की तरफ सिर कर के सोते है तब हमारे शरीर के रक्त का प्रवाह और धरती की चुम्बकीय रेखाओं का प्रवाह एक ही दिशा में होता है जो हमे निरोग रखने में सहायक होता है ,अगर हम भूगोलीय उत्तर दिशा कि ओर सिर कर के सोयें तब हमारे शरीर के रक्त का प्रवाह धरती की चुम्बकीय रेखाओं के विपरीत होता है ,जिसके कारण रक्त सम्बन्धी बिमारियाँ हो सकती है |
ऐसे अनेक तथ्य वास्तुशास्त्र में लिखे हुए है जिसे प्रामाणित करने के लिए और उनकी वैज्ञानिक व्याख्या के लिए उन पर शोध होना जरूरी है |
Saturday, 9 March 2013
सफलता का मूलमंत्र
प्रिया ने सुबह सुबह अपनी पड़ोसन को मुहँ अँधेरे अपने घर से बाहर निकलते देखा ,इससे पहले वह उससे कुछ पूछती उसकी पड़ोसन जल्दी जल्दी कहीं चली गई |प्रिया को उसका इस तरह जाना कुछ अजीब सा लगा ,इतना तो वह जानती थी कि आजकल उनके घर के हालात कुछ ठीक नही चल रहे ,उसके पति काफी समय से बीमार चल रहे थे और उसके बेटे की कमाई भी कुछ ख़ास नही थी और वह अंधाधुंध ज्योतिष्यों और तांत्रिकों के पीछे भाग रही थी ,उसकी सोच पर प्रिया को बहुत दुःख होता था ,क्या ऐसे पाखंडियों के पास कोई जादू का डंडा था जो घुमा दिया तो सारी मुसीबतें खत्म ,बस ''खुल जा सिम सिम ''की तरह उनकी किस्मत का ताला भी खुल जाए गा और वो पाखंडी बाबा उनका घर खुशियों से भर देगा |उन्ही पाखंडी बाबाओं के बहकावे में आ कर वह अपने घर की सुख समृधि के लिए कुछ अटपटे से उपाय भी करती रहती थी ,कई बार तो प्रिया को अपने घर के आंगन में काले रंग के छींटे भी पड़े हुए भी मिले थे ,लेकिन प्रिया इस तरह के अंधविश्वासों को बिलकुल नही मानती थी ,बल्कि उसका कई बार मन होता था की वह अपनी पड़ोसन को समझाये कि इन सब ढकोसलों से उसे कुछ भी हासिल होने का नही और वह व्यर्थ में इन पोंगे पंडितों पर अपनी खून पसीने की कमाई लुटा रही थी |इस संसार में हर इंसान की जिंदगी में अच्छा और बुरा समय आता है ,लेकिन बुरे वक्त में इंसान अक्सर घबरा जाता है और उन परस्थितियों का सामना करने में अपने आप को असुरक्षित एवं असमर्थ पाता है उस समय उसे किसी न किसी के सहारे या संबल की आवश्यकता महसूस होती है ,जिसे पाने के लिए वह इधर उधर भटक जाता है ,जिसका भरपूर फायदा उठाते है यह पाखंडी पोंगे पंडित |अपनी लच्छेदार बातों में उलझा कर वह शातिर लोग उन्हें बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा करते है ,पता नही हमारे देश के कितने लोग ऐसे पाखंडियों के बहकावे में आ कर अपनी जिंदगी भर की कमाई उन्हें सोंप कर अंत में बर्बाद हो कर बैठ जाते है |अपने बुरे वक्त में अगर इंसान विवेक से काम ले तो वह अपनी किस्मत को खुद बदलने में कामयाब हो सकता है ,आत्म विशवास ,दृढ़ इच्छा शक्ति ,लग्न और सकारात्मक सोच किसी भी इंसान को सफलता प्रदान कर आकाश की बुलंदियों तक पहुंचा सकती है ,हम जिस नजरिये से जिंदगी को देखते है जिंदगी हमे वैसी ही दिखाई देती है लेकिन केवल ख्याली पुलाव पकाने से कुछ नही होता ,जो भी हम सोचते है उस पर पूरी निष्ठां और लग्न से कर्म करने पर हम वो सब कुछ पा सकते है जो हम चाहते है |कुछ दिन पहले प्रिया की मुलाकात एक बहुत ही कामयाब इंसान से हुई थी ,यूँ ही प्रिया ने बातों बातों में उससे उसकी सफलता के पीछे किसका हाथ है ,पूछ लिया ,उसके उत्तर ने प्रिया को बहुत प्रभावित किया ,उसने कहा था कि अपनी जिंदगी में उसने बहुत कठिन परस्थितियों का सामना किया था लेकिन जब कभी भी उसे कुछ कर दिखाने का कोई अवसर दिखाई देता , वह आगे बढ़ कर उस अवसर को सुअवसर में बदल देता था और उसके पीछे रहती थी उसकी अनथक लग्न ,भरपूर आत्मविश्वास और सफलता पाने का दृढ संकल्प ,बस जैसे ही उन रास्तों पर चलना शुरू करता ,मंजिलें अपने आप मिलने लग गई थी ,बस यही राज़ था उसके सफलता के द्वार के खुलने का |तभी प्रिया को सामने से अपनी पड़ोसन आती दिखाई दी और वह उससे मिलने और जीवन में सफलता पाने का मूलमंत्र बताने के लिए उसकी तरफ चल पड़ी |
Wednesday, 6 March 2013
है भोर भयी
आज सुबह
धूप ने दस्तक दी
खिड़की पर
दूर हो गया
वहां पर अँधेरा
भरी रौशनी
अलसाया मै
रहा बिस्तर पर
चादर ओढ़
हाथ में लिए
प्रियतमा हमारी
चाय की प्याली
है भोर भयी
चहक उठे पंछी
अब तो जागो
धूप ने दस्तक दी
खिड़की पर
दूर हो गया
वहां पर अँधेरा
भरी रौशनी
अलसाया मै
रहा बिस्तर पर
चादर ओढ़
हाथ में लिए
प्रियतमा हमारी
चाय की प्याली
है भोर भयी
चहक उठे पंछी
अब तो जागो
भगवददर्शन [continued] 10
भगवददर्शन [continued] 'यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे '॥
श्री कृष्ण भगवान् ने जिस विराट रूप का दर्शन अर्जुन को करवाया था वही दर्शन पा कर श्रद्धावान पाठक आनंद प्राप्त करें गे [लेखक प्रो महेन्द्र जोशी ]
श्री कृष्ण नमो नम:
[श्री मद भगवदगीता अध्याय 11 का पद्यानुवाद ]
आगे ....
श्री भगवान ने कहा :-
52देख तुम जो रहे वह ,रूप दुर्लभ देखना ,
देवता भी चाहते ,जिस को नित्य देखना ।
53न वेद से न यज्ञ से और ना तप दान से ,
दिख सकूँ हूँ कभी मै ,तुम देखते ज्यों मुझे ।
54अनन्यभक्तियुक्त ही यूं देख मुझको सके
तत्व से जान सकते और मुझ में मिल सकें ।
55कर्म दे मुझे ,मत्परम ,संगरहित भक्त जो ,
निर्वैर जो सभी में ,पाए मुझे पार्थ वो ।
॥ ग्यारहवां अध्याय समाप्त ॥
आगे ....
श्री भगवान ने कहा :-
52देख तुम जो रहे वह ,रूप दुर्लभ देखना ,
देवता भी चाहते ,जिस को नित्य देखना ।
53न वेद से न यज्ञ से और ना तप दान से ,
दिख सकूँ हूँ कभी मै ,तुम देखते ज्यों मुझे ।
54अनन्यभक्तियुक्त ही यूं देख मुझको सके
तत्व से जान सकते और मुझ में मिल सकें ।
55कर्म दे मुझे ,मत्परम ,संगरहित भक्त जो ,
निर्वैर जो सभी में ,पाए मुझे पार्थ वो ।
॥ ग्यारहवां अध्याय समाप्त ॥
Tuesday, 5 March 2013
भगवददर्शन [continued] 9
भगवददर्शन [continued] 'यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे '॥
श्री कृष्ण भगवान् ने जिस विराट रूप का दर्शन अर्जुन को करवाया था वही दर्शन पा कर श्रद्धावान पाठक आनंद प्राप्त करें गे [लेखक प्रो महेन्द्र जोशी ]
श्री कृष्ण नमो नम:
[श्री मद भगवदगीता अध्याय 11 का पद्यानुवाद ]
आगे ....
आगे ....
भगवान् श्री कृष्ण ने कहा:-
47प्रसन्न हो दिखाया अर्जुन तुझे ,
परम रूप अपना निज योग से ,
तेजोमय अनंत विश्वाद्य जो ,
न देखा किसी ने पहले कभी जो ।
48न यज्ञों न वेदों के अध्ययन से ,
दान से न क्रिया से न उग्र तप से ,
इस रूप वाला मै नर लोक में ,
दिख सकूं न किसी को ,केवल तुझे ।
49न हो तू दुखी और न हो विमूढ़ ,
देख कर मेरा यह विकराल रूप ,
भय छोड़ और प्रीतियुक्त मन से ,
वही देवरूप तू देख फिर से ।
संजय ने कहा :-
50वासुदेव ने कह अर्जुन से यह ,
फिर से दिखाया उसको रूप वह ,
औ उस डरे को तब ढाढस दिया ,
कृष्ण ने सौम्यरूप धारण किया ।
अर्जुन ने कहा :-
51देख कर कृष्ण सौम्य न्रर तन यह तुम्हारा ,
हुआ शांत चित ,निज स्थिति मै दोबारा | क्रमश :-.......
हुआ शांत चित ,निज स्थिति मै दोबारा | क्रमश :-.......
Monday, 4 March 2013
भगवददर्शन [continued] 8
भगवददर्शन [continued] 'यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे '॥
श्री कृष्ण भगवान् ने जिस विराट रूप का दर्शन अर्जुन को करवाया था वही दर्शन पा कर श्रद्धावान पाठक आनंद प्राप्त करें गे [लेखक प्रो महेन्द्र जोशी ]
श्री कृष्ण नमो नम:
[श्री मद भगवदगीता अध्याय 11 का पद्यानुवाद ]
आगे ....
43 सब जग चराचर के हो पिता तुम ,
तुम पूज्य हो गुरुओं के गुरु तुम ,
तुझ सा न कोई ,हो कैसे अधिक,
प्रभाव त्रैलोक में जिस का अमित ।
44करता नमन धर काया चरण में ,
स्तुतियोग्य तुझको प्रसन्न करने ,
ज्यों पिता पुत्र ,प्रिय प्रिय ,सखा का सखा ,
क्षमा दोष करते ,मुझे दो क्षमा ।
45 हर्षित हुआ देख रूप अदेखे ,
व्याकुल भी है मन मेरा भय से ,
अत: दिखाओ देवरूप मुझको ,
देवेश जगत निवास प्रसन्न हो ।
46 मुकुट शिर ,गदा चक्र लिए हाथ में
आगे ....
43 सब जग चराचर के हो पिता तुम ,
तुम पूज्य हो गुरुओं के गुरु तुम ,
तुझ सा न कोई ,हो कैसे अधिक,
प्रभाव त्रैलोक में जिस का अमित ।
44करता नमन धर काया चरण में ,
स्तुतियोग्य तुझको प्रसन्न करने ,
ज्यों पिता पुत्र ,प्रिय प्रिय ,सखा का सखा ,
क्षमा दोष करते ,मुझे दो क्षमा ।
45 हर्षित हुआ देख रूप अदेखे ,
व्याकुल भी है मन मेरा भय से ,
अत: दिखाओ देवरूप मुझको ,
देवेश जगत निवास प्रसन्न हो ।
46 मुकुट शिर ,गदा चक्र लिए हाथ में
परम रूप अपना निज योग से ,
तेजोमय अनंत विश्वाद्य जो ,
न देखा किसी ने पहले कभी जो ।
Sunday, 3 March 2013
शुभ प्रभात
उगता भानु
लालिमा गगन की
हुआ उजाला
,...............
पक्षी चहके
हवा के हिचकोले
मौसम हसीं
...............
विहग उड़े
छोड़ अपने नीड़
चुगते दाना
.............
सुंदर समां
फिर सुबह हुई
शुभ प्रभात
भगवददर्शन [continued] 7
भगवददर्शन [continued] 'यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे '॥
श्री कृष्ण भगवान् ने जिस विराट रूप का दर्शन अर्जुन को करवाया था वही दर्शन पा कर श्रद्धावान पाठक आनंद प्राप्त करें गे [लेखक प्रो महेन्द्र जोशी ]
श्री कृष्ण नमो नम:
[श्री मद भगवदगीता अध्याय 11 का पद्यानुवाद ]
आगे ....
38तुम आदिदेव सनातन पुरुष हो ,
इस विशव के तुम ही आश्रय हो ,
सर्वज्ञ ज्ञातव्य परमधाम हो ,
सकल विश्व में आप ही आप हो
39तुम अग्नि वायु यम वरूण चन्द्र तुम ,
हो ब्रह्मा और पिता उसके तुम ,
नमन सहत्र बार करू मै तुझे ,
बार बार फिर नमस्ते नमस्ते ।
40नमस्कार हो सामने से तुझे ,
पीछे सभी और सब ओर से ,
हो अनंतवीर्य ,अति विक्रमी तुम ,
सब कुछ ने तुम हो सब कुछ हो तुम ।
41हे कृष्ण यादव हे मेरे सखे ,
यह महिमा तुम्हारी न जानते ,
कहा जो सखा मान हठ में तुम्हे ,
कहा प्रेम से या प्रमाद से ।
42असत्कृत हुए जो कभी हास में ,
आसन शय्या भोजन विहार में ,
अच्युत अकेले किसी के सामने ,
क्षमा दो अप्रमेय ,उसके लिए । कमश :-..........
आगे ....
38तुम आदिदेव सनातन पुरुष हो ,
इस विशव के तुम ही आश्रय हो ,
सर्वज्ञ ज्ञातव्य परमधाम हो ,
सकल विश्व में आप ही आप हो
39तुम अग्नि वायु यम वरूण चन्द्र तुम ,
हो ब्रह्मा और पिता उसके तुम ,
नमन सहत्र बार करू मै तुझे ,
बार बार फिर नमस्ते नमस्ते ।
40नमस्कार हो सामने से तुझे ,
पीछे सभी और सब ओर से ,
हो अनंतवीर्य ,अति विक्रमी तुम ,
सब कुछ ने तुम हो सब कुछ हो तुम ।
41हे कृष्ण यादव हे मेरे सखे ,
यह महिमा तुम्हारी न जानते ,
कहा जो सखा मान हठ में तुम्हे ,
कहा प्रेम से या प्रमाद से ।
42असत्कृत हुए जो कभी हास में ,
आसन शय्या भोजन विहार में ,
अच्युत अकेले किसी के सामने ,
क्षमा दो अप्रमेय ,उसके लिए । कमश :-..........
Saturday, 2 March 2013
भगवददर्शन [continued] 6
भगवददर्शन [continued] 'यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे '॥
श्री कृष्ण भगवान् ने जिस विराट रूप का दर्शन अर्जुन को करवाया था वही दर्शन पा कर श्रद्धावान पाठक आनंद प्राप्त करें गे [लेखक प्रो महेन्द्र जोशी ]
श्री कृष्ण नमो नम:
[श्री मद भगवदगीता अध्याय 11 का पद्यानुवाद ]
आगे ....
श्री भगवान ने कहा :-
32मै काल हूँ लोक हनन को बढ़ा ,
अब मै लगा हूँ सब नष्ट करने ,
बिन तेरे भी न यह सब रहेंगे ,
जो योधा खड़े तेरे सामने ।
33द्रोण को भीष्म और जयद्रथ को ,
कर्ण को औ योद्धाओं अन्य को ,
मार इन मरों को दुखी तुम न हो ,
जीतो गे अवश्य युद्ध तुम करो ।
संजय ने कहा :-
35सुन कर वचन ये तब श्री कृष्ण के
,हाथ जोड़ मुकुटधर ने कांपते ,
कृष्ण से कहा फिर नमस्कार कर ,
भयभीत ने हो गद्गद नमन कर ।
36कृष्ण तेरी कीर्ति से ठीक ही ,
जगत को हर्ष हो और प्रीत भी ,
राक्षस सब ओर डरते दौड़ते ,
और नमन सिद्ध गण करते तुझे ।
37महात्मन ,क्यों न सब तुझ को नमे ,
ब्रह्मा के भी आदि कर्ता हो बड़े ,
देवेश अनंत ,निवास जगत के ,
अक्षर हो तुम सत असत से परे । कमश:-.....
आगे ....
श्री भगवान ने कहा :-
32मै काल हूँ लोक हनन को बढ़ा ,
अब मै लगा हूँ सब नष्ट करने ,
बिन तेरे भी न यह सब रहेंगे ,
जो योधा खड़े तेरे सामने ।
33द्रोण को भीष्म और जयद्रथ को ,
कर्ण को औ योद्धाओं अन्य को ,
मार इन मरों को दुखी तुम न हो ,
जीतो गे अवश्य युद्ध तुम करो ।
संजय ने कहा :-
35सुन कर वचन ये तब श्री कृष्ण के
,हाथ जोड़ मुकुटधर ने कांपते ,
कृष्ण से कहा फिर नमस्कार कर ,
भयभीत ने हो गद्गद नमन कर ।
36कृष्ण तेरी कीर्ति से ठीक ही ,
जगत को हर्ष हो और प्रीत भी ,
राक्षस सब ओर डरते दौड़ते ,
और नमन सिद्ध गण करते तुझे ।
37महात्मन ,क्यों न सब तुझ को नमे ,
ब्रह्मा के भी आदि कर्ता हो बड़े ,
देवेश अनंत ,निवास जगत के ,
अक्षर हो तुम सत असत से परे । कमश:-.....
Friday, 1 March 2013
लौट आया मेरा बचपन
जब से आई है बिटिया मेरे अंगना में
यूँ महकने लगी है मेरे घर की दीवारें
खिलखिलाती हुई उसकी मधुर हसीं
जान से भी प्यारी हमारी राजकुमारी
........................................................
देखती हूँ जब भी अपनी नन्ही परी को ,
तैरता है इन नयनों में मेरा वो बचपन
वो खुशियों के पल वो चहकते हुए दिन
लौट आया फिर मेरा प्यारा सा बचपन
........................................................
भरी दोपहरी में छुप छुप कर अंगना में
वो मेरा घर घर खेलना संग गुडिया के
वोह माँ के दुपट्टों से सजना संवरना
कभी साड़ी पहनना कभी चोटी बनाना
.......................................................
चहकती मटकती जब माँ के आंगन में
मुस्करा उठती थी माँ के घर की दीवारे
शाम सवेरे मै नाचती,नचाती थी सबको
थी पापा की प्यारी मै माँ की थी दुलारी
यूँ महकने लगी है मेरे घर की दीवारें
खिलखिलाती हुई उसकी मधुर हसीं
जान से भी प्यारी हमारी राजकुमारी
........................................................
देखती हूँ जब भी अपनी नन्ही परी को ,
तैरता है इन नयनों में मेरा वो बचपन
वो खुशियों के पल वो चहकते हुए दिन
लौट आया फिर मेरा प्यारा सा बचपन
........................................................
भरी दोपहरी में छुप छुप कर अंगना में
वो मेरा घर घर खेलना संग गुडिया के
वोह माँ के दुपट्टों से सजना संवरना
कभी साड़ी पहनना कभी चोटी बनाना
.......................................................
चहकती मटकती जब माँ के आंगन में
मुस्करा उठती थी माँ के घर की दीवारे
शाम सवेरे मै नाचती,नचाती थी सबको
थी पापा की प्यारी मै माँ की थी दुलारी
पति परमेश्वर
''सोनू आज तुमने फिर आने में देर कर दी ,देखो सारे बर्तन जूठे पड़ें है ,सारा घर फैला पड़ा है ,कितना काम है ।''मीना ने सोनू के घर के अंदर दाखिल होते ही बोलना शुरू कर दिया ,लेकिन सोनू चुपचाप आँखे झुकाए किचेन में जा कर बर्तन मांजने लगी ,तभी मीना ने उसके मुख की ओर ध्यान से देखा ,उसका पूरा मुहं सूज रहा था ,उसकी बाहों और गर्दन पर भी लाल नीले निशान साफ़ दिखाई दे रहे थे । ''आज फिर अपने आदमी से पिट कर आई है ''?उन निशानों को देखते हुए मीना ने पूछा ,परन्तु सोनू ने कोई उत्तर नही दिया ,नजरें झुकाए अपना काम करती रही बस उसकी आँखों से दो मोटे मोटे आंसू टपक पड़े । मीना ने इस पर उसे लम्बा चौड़ा भाषण और सुना दिया कि उन जैसी औरतों को अपने अधिकार के लिए लड़ना नही आता ,आये दिन पिटती रहती है ,घरेलू हिंसा के तहत उसके घरवाले को जेल हो सकती है और न जानेक्या क्या बुदबुदाती रही मीनू । उसी रात देव मीनू के पति रात देर से घर पहुंचे ,किसी पार्टी से आये थे वह ,एक दो पैग भी चढ़ा रखे थे ,मीनू ने दरवाज़ा खोलते ही बस इतना पूछ लिया ,''आज देर से कैसे आये ,?''बस देव का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया ,आव देखा न ताव कस कर दो थप्पड़ मीना के गाल पर जड़ दिए । सुबह जब सोनू ने अपनी मालकिन का सूजा हुआ चेहरा देखा तो वह अवाक उसे देखती रह गई ।
भगवददर्शन [continued] 5
भगवददर्शन [continued] 'यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे '॥
श्री कृष्ण भगवान् ने जिस विराट रूप का दर्शन अर्जुन को करवाया था वही दर्शन पा कर श्रद्धावान पाठक आनंद प्राप्त करें गे [लेखक प्रो महेन्द्र जोशी ]
श्री कृष्ण नमो नम:
[श्री मद भगवदगीता अध्याय 11 का पद्यानुवाद ]
आगे ....
27 वे भयानक विकराल द्न्त्युक्त ,
तेज चलते जबड़ों में जा रहे ,
दांतों के बीच फसें है कई ,
सिर जिनके चूर्ण हुए जा रहे ।
28नदियों के जल जैसे वेगशील ,
समुद्र की ओर ही सब है जाते ,
वैसे ही नरलोक के वीर सब ,
तेरे प्रज्वल्लित मुखों में जाते ।
29जैसे पतंगे जलते दिए में ,
प्रविष्ट हो वेग से नाश को ,
वैसे वेग से ही लोग सब ,
तेरे मुखों में आते नाश को ।
30प्रज्ज्वलित मुखों में ग्रसित करते ,
चाटते लोक सब सभी ओर से ,
परिपूर्ण कर तेज से सब जगत ,
तपाते हो विष्णु उग्र प्रकाश से ।
31तुम कौन उग्र रूप मुझे यह कहो ,
नम:देववर हे तू प्रसन्न हो ,
तुम आध्य को देखना चाहता ,
न जानू तुम्हारी मै प्रवृति को । कमश :.....
आगे ....
27 वे भयानक विकराल द्न्त्युक्त ,
तेज चलते जबड़ों में जा रहे ,
दांतों के बीच फसें है कई ,
सिर जिनके चूर्ण हुए जा रहे ।
28नदियों के जल जैसे वेगशील ,
समुद्र की ओर ही सब है जाते ,
वैसे ही नरलोक के वीर सब ,
तेरे प्रज्वल्लित मुखों में जाते ।
29जैसे पतंगे जलते दिए में ,
प्रविष्ट हो वेग से नाश को ,
वैसे वेग से ही लोग सब ,
तेरे मुखों में आते नाश को ।
30प्रज्ज्वलित मुखों में ग्रसित करते ,
चाटते लोक सब सभी ओर से ,
परिपूर्ण कर तेज से सब जगत ,
तपाते हो विष्णु उग्र प्रकाश से ।
31तुम कौन उग्र रूप मुझे यह कहो ,
नम:देववर हे तू प्रसन्न हो ,
तुम आध्य को देखना चाहता ,
न जानू तुम्हारी मै प्रवृति को । कमश :.....
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