Friday, 1 March 2013

लौट आया मेरा बचपन

जब से आई है बिटिया मेरे अंगना में
यूँ महकने लगी है मेरे घर की दीवारें
खिलखिलाती हुई उसकी मधुर हसीं
जान से भी प्यारी हमारी राजकुमारी
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देखती हूँ जब भी अपनी नन्ही परी को ,
तैरता है इन नयनों में मेरा वो बचपन
वो खुशियों के पल वो चहकते हुए दिन
लौट आया फिर मेरा प्यारा सा बचपन
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भरी दोपहरी में छुप छुप कर अंगना में
 वो मेरा घर घर खेलना संग गुडिया के
वोह माँ  के  दुपट्टों  से सजना संवरना
कभी साड़ी पहनना कभी चोटी बनाना
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चहकती मटकती जब माँ के आंगन में
मुस्करा उठती थी माँ के घर की दीवारे
शाम सवेरे मै नाचती,नचाती थी सबको
थी पापा की प्यारी मै  माँ की थी दुलारी








6 comments:

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    1. अज़ीज़ जी ,मेरी साईट में शामिल होने पर और रचना पसंद करने पर आपका हार्दिक आभार ,धन्यवाद

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  2. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद शालिनी जी ,आभार

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  3. Replies
    1. शास्त्री जी आपका हार्दिक धन्यवाद ,ऐसे ही उत्साह बढाते रहिये ,आभार .

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