इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा ,नई दिल्ली , यात्रियों की भीड़ अमरीका जाने वाले यात्री गण सिक्योरिटी चेकिंग पर खड़े अपनी बारी आने का इंतज़ार कर रहे थे| उन यात्रियों की भीड़ में एक बूढी महिला अपना घर बाहर सब कुछ बेच कर हिन्दुस्तान से सदा के लिए अपने लाडले बेटो के साथ अमरीका जा रही थी |उसके दोनों बेटों ने अपनी बूढी माँ को वेटिंग हाल की एक सीट पर बिठा दिया और अपना सामान ले कर सिक्योरिटी चेकिंग के लिए चले गए |बूढी अम्मा ,आँखों में हजारों सपने लिए अपने परिवार के साथ रहने जा रही थी ,अपने वाहे गुरु का धन्यवाद कर रही थी ,जो उसने उसे इतने अच्छे आज्ञाकारी पुत्र दिए ,बहुये दी ,पोते पोतियाँ दी ,भरा पूरा परिवार है उसका अमरीका में ,वहां उसका बुढापा अब चैन से कटे गा |यह बुढ़ापा भी कितना बेबस और लाचार कर देता है इंसान को ,एक एक करके शरीर का हर अंग शिथिल पड़ने लगता है ,आँखें धुंधला जाती है ,दांत कब का साथ छोड़ चुके होते है , कमर जिंदगी का बोझ ढोते ढोते झुक जाती है ,घुटने बेबस और टाँगे आगे चलने से इनकार करने लगती है ,ऐसे में अकेले जिन्दगी काटना नामुमकिन सा हो जाता है और वो भी पति के गुजर जाने के बाद | उसने अपने बैग से जपजी साहब की छोटी सी पुस्तिका निकाली और उस वाहेगुरु का जप करने लगी ,कब बैठे बैठे उसकी आँख लग गयी ,उसे पता ही नहीं चला |''अम्मा उठो ,कहाँ जाना है आपको ?,''आंखे खोलते ही अम्मा ने एक अजनबी को अपने सामने खड़े पाया |''बेटा ,मुझे तो अमरीका वाले जहाज में जाना है ,मेरे बेटे बस आते ही होंगे''|''किस फलाईट की बात कर रही हो अम्मा ,अमरीका जाने वाला जहाज तो कल रात को ही चला गया और अब तो सुबह हो गई है ''|''नहीं नहीं बेटा तुम्हे कोई गलतफहमी हुई है ,मेरे हरदयाल और मुखतयार बस आते ही होंगे ''|यह कहते ही अम्मा ने अपना बैग उठाया और चलने को तैयार हो गई |वह अजनबी अवाक खड़ा उस बुढ़िया को देख रहा था ,एयर इण्डिया का वो कर्मचारी समझ चुका था कि इस लाचार अम्मा के नालायक बेटे इसे यहीं छोड़ अमरीका जा चुके है |अम्मा से उसका बैग पकड़ते हुए ,उसे अपने साथ चलने को कहा,''अम्मा तुम कहाँ रहती हो ,चलो मै आपको आपके घर छोड़ आता हूँ ''|अम्मा थोड़ी ऊँची आवाज़ में बोली ,''तुम यह क्या अनाप शनाप बोले जा रहे हो ,कितनी बार कहा है कि मुझे अमरीका ही जाना है ,मैने अपना दिल्ली वाला मकान बेच कर सारे रूपये अपने बेटों को दे दिए है और अब मुझे उनके साथ अमरीका में ही रहना है ''|एयर इण्डिया का वो कर्मचारी उस भोली माँ को उसके कपूतों कि काली करतूत बताने में अपने आप को असमर्थ पा रहा था ,उस बुढ़िया का रुपया पैसा ,घर सब कुछ छीन कर उसके कपूत उसे अकेला बेसहारा भगवान भरोसे छोड़ कर दूर चले गए ,जीते जी अपनी माँ को मार दिया उन्होंने , आज उस ममतामयी माँ का आंचल तार तार हो चुका था ,वही आंचल जिसकी छाँव में उन कपूतों का बचपन बीता था ,वह आंचल जिससे उन्हें जिंदगी मिली थी| बड़ी मुश्किल से उस कर्मचारी ने अम्मा को उस कड़वी सच्चाई से अवगत कराया,तो मानो उसके पाँव तले धरती खिसक गई चलते चलते लड़खड़ा गए उस बुढ़िया के पाँव ,वज्रपात हुआ उस माँ के ममतामयी सींने पर ,इतना बड़ा धोखा ,वो भी अपने पेट जाए बच्चों से ,धम से वह वहीं बैठ गई आक्रोश और गुस्से से उसके भीतर का ज्वालामुखी फूट पड़ा और वह जोर जोर से विलाप करने लगी ,''ओये हरद्याले ,ओये मुख्त्यारे ,की कीता तुसां ,मैनू ,अपनी माँ नू इ लुट लया,मै एथे किवें रवां गी .किथे रवां गी ,''बोलते बोलते अचानक वह चुप हो गई ,उसके आस पास भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी |उसने अपने आप को सम्भाला और खड़ी हो कर उस एयर इण्डिया के कर्मचारी की तरफ असहाय नजरों से देखा और वह उसे भीड़ से निकाल बाहर ले आया और पूछा ,''अम्मा अब कहाँ जाओ गी ''?कुछ भी सूझ नही रहा था उसे ,उसके अंदर के ज्वालामुखी का लावा , उसकी आँखों से लगातार अश्रुधारा के रूप में बहता ही जा रहा था |उस कर्मचारी ने मानवता के नाते उसे पानी पिला कर एक कमरे में बिठा दिया |रोते रोते बूढी अम्मा ने बोलना शुरू किया ,''मै,गीले में सोती थी ,इन्हें सूखे में डालकर ,इन्हें अमरीका भेजने के लिए मैने अपने सारे गहने भी बेच दिए ,इन निक्ख्तो की खातिर सबसे लड़ पडती थी मै ,इनके दार जी से भी ,अच्छा हुआ वो यह सब देखने से पहले ही इस दुनिया से चले गए ,उसके आंसू थमने का नाम ही नही ले रहे थे|लम्बी चुप्पी के बाद वह बोली ,''बेटा फगवाड़े में मेरे दूर के रिश्तेदार रहते है ,तुम्हारा भला होगा तुम मुझे वहां छोड़ आओ ,जैसे तैसे होगा अपना पेट तो भर ही लुंगी |वह एयर इण्डिया का कर्मचारी उसे ले कर फगवाड़े जाने की तैयारी में जुट गया और बूढ़ी अम्मा ने अपने तार तार हुए आंचल से अपने आंसू पोंछ लिए ,लेकिन उसका ममतामयी मन अंदर ही अंदर जल रहा था ,सुलग रहा था ,काश उसके बेटों ने उसकी ममता का यूँ गला न घोटा होता |काश वह उसे अपने साथ अमरीका ले जाते |वह एयर इण्डिया का कर्मचारी अम्मा को फगवाडे छोड़ कर आ गया था| उसके बाद पता नही ,वह वहां कैसे रही ,किसके पास रही ,शायद अब वह इस दुनियां में है भी याँ नही |
कपूतों की माताओं के दिल की आवाज़ :
यूं सुलगता है दिल ,जैसे सुलगती चिता ,
सब खत्म होने के बाद फिर धुंआ क्यों?
अंगारे तो सब जल कर राख हुए ,
फिर यह धधकती ज्वाला क्यों ?
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति दिल भर आया ,इस दुनियाँ में ऐसे भी कपूत हैं.
ReplyDeleteराजेन्द्र जी यह एक सत्य घटना पर आधारित है ,इसे लिखते समय मेरी आखें भी नम हो गई थी ,lekin aisa भी hota है
DeleteNIce Post ,,
ReplyDeleteThanks For Sharing
आभार
Deleteरेखा जी मेरी टिप्पणी कहीं दिखाई नहीं दे रही है जबकि मैंने टिपण्णी की थी !!
ReplyDeleteपूरण जी आपका कमेन्ट मेरी मेल पर आया था पर मालुम नही साईट पर दिखाई नही दिया ,ऐसा कुछ और कमेंट्स के साथ भी हो रहा है ,आभार टिपण्णीदेने पर
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