भगवददर्शन [continued] 'यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे '॥
श्री कृष्ण भगवान् ने जिस विराट रूप का दर्शन अर्जुन को करवाया था वही दर्शन पा कर श्रद्धावान पाठक आनंद प्राप्त करें गे [लेखक प्रो महेन्द्र जोशी ]
श्री कृष्ण नमो नम:
[श्री मद भगवदगीता अध्याय 11 का पद्यानुवाद ]
आगे ....
27 वे भयानक विकराल द्न्त्युक्त ,
तेज चलते जबड़ों में जा रहे ,
दांतों के बीच फसें है कई ,
सिर जिनके चूर्ण हुए जा रहे ।
28नदियों के जल जैसे वेगशील ,
समुद्र की ओर ही सब है जाते ,
वैसे ही नरलोक के वीर सब ,
तेरे प्रज्वल्लित मुखों में जाते ।
29जैसे पतंगे जलते दिए में ,
प्रविष्ट हो वेग से नाश को ,
वैसे वेग से ही लोग सब ,
तेरे मुखों में आते नाश को ।
30प्रज्ज्वलित मुखों में ग्रसित करते ,
चाटते लोक सब सभी ओर से ,
परिपूर्ण कर तेज से सब जगत ,
तपाते हो विष्णु उग्र प्रकाश से ।
31तुम कौन उग्र रूप मुझे यह कहो ,
नम:देववर हे तू प्रसन्न हो ,
तुम आध्य को देखना चाहता ,
न जानू तुम्हारी मै प्रवृति को । कमश :.....
आगे ....
27 वे भयानक विकराल द्न्त्युक्त ,
तेज चलते जबड़ों में जा रहे ,
दांतों के बीच फसें है कई ,
सिर जिनके चूर्ण हुए जा रहे ।
28नदियों के जल जैसे वेगशील ,
समुद्र की ओर ही सब है जाते ,
वैसे ही नरलोक के वीर सब ,
तेरे प्रज्वल्लित मुखों में जाते ।
29जैसे पतंगे जलते दिए में ,
प्रविष्ट हो वेग से नाश को ,
वैसे वेग से ही लोग सब ,
तेरे मुखों में आते नाश को ।
30प्रज्ज्वलित मुखों में ग्रसित करते ,
चाटते लोक सब सभी ओर से ,
परिपूर्ण कर तेज से सब जगत ,
तपाते हो विष्णु उग्र प्रकाश से ।
31तुम कौन उग्र रूप मुझे यह कहो ,
नम:देववर हे तू प्रसन्न हो ,
तुम आध्य को देखना चाहता ,
न जानू तुम्हारी मै प्रवृति को । कमश :.....
धन्यवाद अरुण जी ,आभार
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