भगवददर्शन [continued] 'यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे '॥
श्री कृष्ण भगवान् ने जिस विराट रूप का दर्शन अर्जुन को करवाया था वही दर्शन पा कर श्रद्धावान पाठक आनंद प्राप्त करें गे [लेखक प्रो महेन्द्र जोशी ]
श्री कृष्ण नमो नम:
[श्री मद भगवदगीता अध्याय 11 का पद्यानुवाद ]
आगे ....
22 रूद्र और आदित्य ,वसु और साध्य ,
विश्वदेव अश्विनी मरुत पितर सब ,
गंधर्व यक्ष राक्षस औ सिद्धगण ,
देखें तुझे ही विस्मित हुए सब ।
23बहु मुख नेत्र बहु पाद जंघा ,
महाबाहो यह महारूप तेरा ,
उदर बड़े और विकराल दाढ़े ,
डरें लोग देख ,डरें मन मेरा ।
24नभ छू रहा बहु रंगों से दीप्त ,
फैला यह मुख चमके नेत्र बड़े ,
तुझे देख विष्णु भयभीत है मन ,
न इसको धीरज न शान्ति मिले।
25विकराल दाढ़े और मुख तेरे
जो काल अग्नि सदृश धधकते ,
देख सुख न पाऊं ,न जानू दिशा ,
प्रसीद देवेश ,निवास जगत के
26हों प्रविष्ट तुझ में धृतराष्ट्रपुत्र ,
सभी पृथ्वीपालों के साथ सब ,
भीष्म कर्ण द्रोण और हमारे ,
है मुख्य जो वे योधा भी सब । क्रमश:.....
आगे ....
22 रूद्र और आदित्य ,वसु और साध्य ,
विश्वदेव अश्विनी मरुत पितर सब ,
गंधर्व यक्ष राक्षस औ सिद्धगण ,
देखें तुझे ही विस्मित हुए सब ।
23बहु मुख नेत्र बहु पाद जंघा ,
महाबाहो यह महारूप तेरा ,
उदर बड़े और विकराल दाढ़े ,
डरें लोग देख ,डरें मन मेरा ।
24नभ छू रहा बहु रंगों से दीप्त ,
फैला यह मुख चमके नेत्र बड़े ,
तुझे देख विष्णु भयभीत है मन ,
न इसको धीरज न शान्ति मिले।
25विकराल दाढ़े और मुख तेरे
जो काल अग्नि सदृश धधकते ,
देख सुख न पाऊं ,न जानू दिशा ,
प्रसीद देवेश ,निवास जगत के
26हों प्रविष्ट तुझ में धृतराष्ट्रपुत्र ,
सभी पृथ्वीपालों के साथ सब ,
भीष्म कर्ण द्रोण और हमारे ,
है मुख्य जो वे योधा भी सब । क्रमश:.....
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