Tuesday, 26 February 2013

भगवददर्शन [continued] 2

भगवददर्शन [continued]         'यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
                                                अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
                                                परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
                                                  धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे '॥



श्री कृष्ण भगवान् ने जिस विराट रूप का दर्शन अर्जुन को करवाया था वही दर्शन पा कर श्रद्धावान पाठक आनंद प्राप्त करें गे [लेखक प्रो महेन्द्र जोशी ]

श्री कृष्ण नमो नम:

भगवददर्शन 
[श्री मद भगवदगीता अध्याय 11 का पद्यानुवाद ]
आगे ....

संजय ने कहा -
9 राजन यह कह कर हरि  महायोगेशवर ने ,
दिखलाए अर्जुन को रूप ऐश्वर अपने ।
1o अनेक मुख अनेक नयन ,अद्धभुत अनेक दर्शन ,
अनेक शस्त्र दिव्य औ अनेक दिव्य आभरण ।
11 दिव्यवस्त्र दिव्यमाल और दिव्य गंधयुक्त ,
अनन्त विश्वरूप जो सर्व आश्चर्ययुक्त ।
12 एक साथ नभ में हों सहस्त्र सूर्य ज्यों उदय ,
उन की ज्योति से अधिक ,अधिक जो हो ज्योतिमय ।
13 एकस्थ वहां जगत को विभक्त कई रूप में ,
देखा पार्थ ने देव देव के स्वरूप में ।
14 तब विस्मययुक्त उस रोमहर्षित पार्थ ने ,
शिर झुका हाथ जोड़ कर कहा यह भगवान् से ।  क्रमश: ...


2 comments:

  1. दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्‌ ।
    सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम्‌ ॥

    बहुत ही सुन्दर वर्णन,आभार आदरणीय.

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  2. आपका हार्दिक आभार राजेन्द्र जी ,धन्यवाद

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