Wednesday, 27 February 2013

भगवददर्शन [continued] 3


भगवददर्शन [continued]          'यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
                                                अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
                                                परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
                                                  धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे '॥



श्री कृष्ण भगवान् ने जिस विराट रूप का दर्शन अर्जुन को करवाया था वही दर्शन पा कर श्रद्धावान पाठक आनंद प्राप्त करें गे [लेखक प्रो महेन्द्र जोशी ]

श्री कृष्ण नमो नम:

भगवददर्शन 
[श्री मद भगवदगीता अध्याय 11 का पद्यानुवाद ]
आगे ....
15 देखूं तुम्हारी देह में देव ,
देवता भूतविशेष समूह सब ,
शिव और कमलासन स्थित ब्रह्मा ,
कई सर्प दिव्य और ऋषि भी सभी ।

16 अनेक बाहु मुख उदर और नयन ,
दिखे सर्वत्र अनन्त रूप तेरा ,
न आदि न अंत न मध्य ही दिखे ,
विश्वेश्वर हे विश्व रूप तेरा ।

17 मुकुट और गदा चक्र धारण किये ,
तेजपुंज चमके जो सब ओर से ,
अग्नि और सूर्य सम ज्योतियुक्त ,
असीमित ,कठिन देखना है तुझे ।

18 तुम अक्षर परम तुम ज्ञान योग्य ,
तुम ही विश्व के परम आश्रय हो ,
रक्षक अव्यय शाश्वत धर्म के ,
मानूं  मै तुम सनातन पुरुष हो ।

19 अनादिममध्यान्त अनन्तवीर्य ,
अनंतबाहू शशिसूर्यनयन को ,
अनलदीप्तमुख तुझको मै देखूं ,
जो निज तेज से तपाते विश्व को ।

20 पृथ्वी स्वर्ग मध्य यह अन्तराल ,
और हर दिशा है व्याप्त तुझी से ,
देख कर यह उग्र रूप तुम्हारा ,
है लोक तीनो अत्यंत दुखी ये ।

21 हों प्रविष्ट तुझ में सभी देवता ,
डरे हाथ जोड़ सभी गुण गाते ,
'हो कल्याण 'कह महां ऋषि सिद्धगण ,
उत्तम स्त्रोतों से स्तुति गाते ।   क्रमश :.......



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