मीना की अपनी अंतरंग सखी दीपा से किसी बात को लेकर अनबन हो गई |दोनों बचपन की सखियाँ जब भी एक दूसरे को देखती तो मुहं मोड़ लेती ,मन आक्रोश से भर जाता ,महीने बीत गए एक दूसरे से बात किये ,मीना अंदर ही अंदर बहुत दुखी थी और वह अपनी प्यारी बचपन की सहेली से बात करना चाहते हुए भी नही कर पाती थी बल्कि उसे दीपा पर और भी अधिक गुस्सा आता ,''आखिर वह अपनी गलती मान क्यों नही लेती'' ,दीपा भी मीना से बहुत प्यार करती थी लेकिन वह भी उसके आगे झुकना नही चाहती थी ,नतीजा क्या हुआ दोनों सहेलियाँ अपने दिलों में एक दूसरे के प्रति क्रोध लिए भीतर ही भीतर सुलगती रही और उन दोनों ने सदा के लिए एक दूसरे को खो दिया |अगर दोनों ने आपसी मनमुटाव को समाप्त करने के लिए एक दूसरे से क्षमा मांग ली होती या किसी एक सखी ने पहल कर दूसरी से क्षमा मांग ली होती और उसने भी उसे दिल से माफ़ कर दिया होता तो दोनों बचपन की सखियाँ यूँ एक दूसरे से नही बिछुड्ती बल्कि वह दोनों एक दूसरे के और अधिक करीब आजाती |मीना की मौसी ने उसे दुखी देख कर उसका कारण पूछा और सारी घटना जानने पर उसे समझाया कि बहुत ही खुशनसीब होते है वह लोग जो रिश्तों की गरिमा को पहचान कर उसे सजों कर रखना जानते है | अपने से हुई गलती पर क्षमा मांग लेने से कोई छोटा नही हो जाता और किसी को उसकी गलती पर माफ़ कर देना तो बड्पन की निशानी है हम अंपने जीवन में जाने अनजाने कितनी ही गलतियां करतें है ,कितनो का दिल दुखातें है लेकिन किसी से हुई कोई गलती को हम अनदेखा नही कर सकते बस क्रोधित हो कर उस पर बरस पडतें है ,कई बार तो किसी की क्षमा याचना करने पर भी ताउम्र हम उसे क्षमा नही कर पाते और मन ही मन सदा के लिए बैर भाव की गाँठ बाँध कर रख लेते है |जब कभी भी उस के बारे में मन में विचार आता है , तब एक अजीब सी कडवाहट भर जाती है हमारे दिल में जो हमे बेचैन कर देती है और न जाने हमारे भीतर उठ रही वह क्रोधाग्नि अनगिनत रोगों को निमन्त्रण दे देती है |असल में जब हम किसी से क्षमा मांगते है या किसी को क्षमा करते है तो किसी दूर्सरे से अधिक हम अपने उपर उपकार करते है |क्षमा हमारे भीतर उठ रही क्रोधाग्नि के ज्वालामुखी को शांत कर हमारे अंतर्मन को ठंडक प्रदान कर उसे शुद्ध बना देती है |क्षमा का अर्थ है किसी की गलती को दिल से माफ़ कर दो और उसके बाद उसकी उस गलती को सदा के लिए भूल जाना |सभी धर्मो ने क्षमा के महत्व को पहचाना है ,जिन्होंने ईसामसीह को सूली पर चढाया उनके लिए ईसामसीह ने परमात्मा से क्षमा करने के लिए प्रार्थना की |स्वामी दयानंद जी ने उस पुरुष जगन्नाथ को क्षमा कर वहां से भागने के लिए पैसे थमा दिए,जिसने उन्हें दूध में संखिया घोल कर पिलाया था |अपनी मौसी की बातों को सुनाने के बाद मीना ने दीपा को मनाने का फैसला लिया ,उसने एक सुंदर सा कार्ड बनाया और उस पर बड़े बड़े अक्षरों से लिखा ''सौरी ''और उस कार्ड को दीपा के पास जा कर उसके हाथ में थमा दिया |
एकदम सही बात कही है आपने ये क्या कर रहे हैं दामिनी के पिता जी ? आप भी जाने अफ़रोज़ ,कसाब-कॉंग्रेस के गले की फांस
ReplyDeleteधन्यवाद शालिनी जी
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