जल रहा है भारत आग में ,आवाज़ यही है आती ,
मुट्ठी भर अंगारों से अब ,धरा भी दहल है जाती ,
जला कश्मीर असम है जला,हमारे देश के वासी ,
नक्सलियों की चली गोलियां ,मरते है भारत वासी
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काँप उठती है जमीन यहाँ की,जब आतंकी धमाकों से .
खून से लथपथ जिस्म कटे यहाँ वहां,अपने ही भाइयों के
उजड़े सुहाग ,चिराग बुझे ,अनाथ हुए ,हुए बर्बाद अनेक
घर में जिनके जले न चूल्हे, कौन पोंछेगा आंसू यं सब के
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बिक रहा ईमान यहाँ पर , है झूठ का बोलबाला ,
खून खौलता है ममता का ,जब जलती उसकी बाला ,
.धर्म नपुंसक बना देखता ,है भूल चुका मर्यादा ,
जला देगा देख बेशर्मी ,यह मुट्ठी भर अंगारा .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति . आभार सही आज़ादी की इनमे थोड़ी अक्ल भर दे . आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
आभार ,शालिनी ji
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