Wednesday, 20 February 2013

तुम ही तुम

तुम ही तुम

महक उठती  है तमन्नाए दिल की 
जब गुजरते हो इन गलियों से तुम 
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खिल उठते है यह तन्हाई के लम्हे 
यादों में हमारी जब गुजरते हो तुम 
बहारे सकून की छा जाती हर ओर 
ख्यालों में हमारे जब आते हो तुम 
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खिल उठती है बगिया मेरे दिल की 
जब गुनगुनाती मै तुम्हारे वह गीत 
सहेज रखी है अब तलक वही यादे
समाये हो जिसमे सिर्फ तुम ही तुम 
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महक उठती  है तमन्नाए दिल की 
जब गुजरते हो इन गलियों से तुम 

2 comments:

  1. अतिसुन्दर प्रस्तुति,आभार.

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  2. Rajendra ji aise hi utsaah bdhate rahiye ,hardik dhnyvaad

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