भगवददर्शन [continued] 'यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे '॥
श्री कृष्ण भगवान् ने जिस विराट रूप का दर्शन अर्जुन को करवाया था वही दर्शन पा कर श्रद्धावान पाठक आनंद प्राप्त करें गे [लेखक प्रो महेन्द्र जोशी ]
श्री कृष्ण नमो नम:
[श्री मद भगवदगीता अध्याय 11 का पद्यानुवाद ]
आगे ....
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भगवान् श्री कृष्ण ने कहा:-
47प्रसन्न हो दिखाया अर्जुन तुझे ,
परम रूप अपना निज योग से ,
तेजोमय अनंत विश्वाद्य जो ,
न देखा किसी ने पहले कभी जो ।
48न यज्ञों न वेदों के अध्ययन से ,
दान से न क्रिया से न उग्र तप से ,
इस रूप वाला मै नर लोक में ,
दिख सकूं न किसी को ,केवल तुझे ।
49न हो तू दुखी और न हो विमूढ़ ,
देख कर मेरा यह विकराल रूप ,
भय छोड़ और प्रीतियुक्त मन से ,
वही देवरूप तू देख फिर से ।
संजय ने कहा :-
50वासुदेव ने कह अर्जुन से यह ,
फिर से दिखाया उसको रूप वह ,
औ उस डरे को तब ढाढस दिया ,
कृष्ण ने सौम्यरूप धारण किया ।
अर्जुन ने कहा :-
51देख कर कृष्ण सौम्य न्रर तन यह तुम्हारा ,
हुआ शांत चित ,निज स्थिति मै दोबारा | क्रमश :-.......
हुआ शांत चित ,निज स्थिति मै दोबारा | क्रमश :-.......
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