Saturday, 2 March 2013

भगवददर्शन [continued] 6


भगवददर्शन [continued]          'यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
                                                अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
                                                परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
                                                  धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे '॥



श्री कृष्ण भगवान् ने जिस विराट रूप का दर्शन अर्जुन को करवाया था वही दर्शन पा कर श्रद्धावान पाठक आनंद प्राप्त करें गे [लेखक प्रो महेन्द्र जोशी ]

श्री कृष्ण नमो नम:

भगवददर्शन 
[श्री मद भगवदगीता अध्याय 11 का पद्यानुवाद ]
आगे ....

श्री भगवान ने कहा :-

32मै काल हूँ लोक हनन को बढ़ा ,
अब मै लगा हूँ सब नष्ट करने ,
बिन तेरे भी न यह सब रहेंगे ,
जो योधा खड़े तेरे सामने ।

33द्रोण को भीष्म और जयद्रथ को ,
कर्ण को औ योद्धाओं अन्य को ,
मार इन मरों को दुखी तुम  न हो ,
जीतो गे अवश्य युद्ध तुम करो ।

संजय ने कहा :-

35सुन कर वचन ये तब श्री कृष्ण के
,हाथ जोड़ मुकुटधर ने कांपते ,
कृष्ण से कहा फिर नमस्कार कर ,
भयभीत ने हो गद्गद नमन कर ।

36कृष्ण तेरी कीर्ति से ठीक ही ,
जगत को हर्ष हो और प्रीत भी ,
राक्षस सब ओर डरते दौड़ते ,
और नमन सिद्ध गण करते तुझे ।

37महात्मन ,क्यों न सब तुझ को नमे ,
ब्रह्मा के भी आदि कर्ता हो बड़े ,
देवेश अनंत ,निवास जगत के ,
अक्षर हो तुम सत असत से परे ।  कमश:-.....




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