भगवददर्शन [continued] 'यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे '॥
श्री कृष्ण भगवान् ने जिस विराट रूप का दर्शन अर्जुन को करवाया था वही दर्शन पा कर श्रद्धावान पाठक आनंद प्राप्त करें गे [लेखक प्रो महेन्द्र जोशी ]
श्री कृष्ण नमो नम:
[श्री मद भगवदगीता अध्याय 11 का पद्यानुवाद ]
आगे ....
श्री भगवान ने कहा :-
52देख तुम जो रहे वह ,रूप दुर्लभ देखना ,
देवता भी चाहते ,जिस को नित्य देखना ।
53न वेद से न यज्ञ से और ना तप दान से ,
दिख सकूँ हूँ कभी मै ,तुम देखते ज्यों मुझे ।
54अनन्यभक्तियुक्त ही यूं देख मुझको सके
तत्व से जान सकते और मुझ में मिल सकें ।
55कर्म दे मुझे ,मत्परम ,संगरहित भक्त जो ,
निर्वैर जो सभी में ,पाए मुझे पार्थ वो ।
॥ ग्यारहवां अध्याय समाप्त ॥
आगे ....
श्री भगवान ने कहा :-
52देख तुम जो रहे वह ,रूप दुर्लभ देखना ,
देवता भी चाहते ,जिस को नित्य देखना ।
53न वेद से न यज्ञ से और ना तप दान से ,
दिख सकूँ हूँ कभी मै ,तुम देखते ज्यों मुझे ।
54अनन्यभक्तियुक्त ही यूं देख मुझको सके
तत्व से जान सकते और मुझ में मिल सकें ।
55कर्म दे मुझे ,मत्परम ,संगरहित भक्त जो ,
निर्वैर जो सभी में ,पाए मुझे पार्थ वो ।
॥ ग्यारहवां अध्याय समाप्त ॥
No comments:
Post a Comment