Friday, 19 July 2013

मुक्तक

आकाश  पर  असंख्य  सूर्य चाँद  तारे सब  विचर रहें है 
अनगिनत  पिंड  भी आकाशगंगा  संग भ्रमर कर रहें है 
अस्तित्व  मानव का  शून्य है यहॉं  विस्तृत बह्मांड में 
शीश झुकाएं अपना नमन उस परम पिता को कर रहें है 

रेखा जोशी 




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