घिर आये बदरा सखी छाई घटा घनघोर है
रिम झिम बरसे सावन की मधुर फुहार है
बन बदली उमड़ पड़ी आँखों से बिरहन के
मधुर नही फुहार यह अगनकणों की धार है
रिम झिम बरसे सावन की मधुर फुहार है
बन बदली उमड़ पड़ी आँखों से बिरहन के
मधुर नही फुहार यह अगनकणों की धार है
No comments:
Post a Comment