Tuesday 30 July 2013

सावन

घिर आये बदरा सखी छाई घटा घनघोर है
रिम  झिम बरसे सावन की मधुर फुहार है
बन बदली उमड़ पड़ी आँखों से बिरहन  के
मधुर नही फुहार यह अगनकणों की धार है


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