Friday, 20 May 2016

देती दुहाई सूखी धरा

देती दुहाई सूखी धरा
करती रही पुकार
आसमाँ पर सूरज फिर भी
रहा बरसता अँगार
सूख गया अब रोम रोम
खिच गई लकीरें तन पर
तरसे जल को प्यासी धरती
सबका हुआ बुरा हाल
है प्यासा तन मन
प्यासी सबकी काया
क्षीण हुआ सबका श्वास
सूख गया है जन जीवन
सूख गया संसार
बाँध डोर से खींच
उमड़ घुमड़ ले आऊं
आसमान के बदरा काले
होगा जलथल चहुँ ओर फिर से
जन्म जन्म की प्यासी धरा पे
नाचेंगे मोर फिर से
हरी भरी धरा का फिर से
लहरायें गा रोम रोम
बरसेंगी अमृत की बूदें नभ से
होगा धरा पर नव सृजन
नव जीवन से
अंतरघट तक प्यासी धरा
फिर गीत ख़ुशी के गायेगी
हरियाली चहुँ ओर छा जायेगी
हरियाली चहुँ ओर छा जायेगी



रेखा जोशी

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