तपती धूप में बीत गया हमारा बचपन
तरसता रहा सदा जीने को हमारा मन
टूटी फूटी छत ही रही सर पर हमारे
लिख दिया विधाता ने मरुस्थल में जीवन
रेखा जोशी
तरसता रहा सदा जीने को हमारा मन
टूटी फूटी छत ही रही सर पर हमारे
लिख दिया विधाता ने मरुस्थल में जीवन
रेखा जोशी
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