है मौन बहती
सरिता गहरी
उदण्ड बहते निर्झर
झर झर झर झर
करते भंग मौन
पर्वत पर
उछल उछल कर
शोर मचाये
अधजल गगरी छलकत जाये
ज्ञानी रहते मौन
यहाँ पर
ज्ञान बाँचते
पोंगें पंडित
कुहक कुहक कर
रसीले मधुर गीत
कोयलिया गाये
पंचम सुर में
कागा बोले
राग अपना ही
अलापता जाये
अधजल गगरी छलकत जाये
मिलेंगे यहाँ
हज़ारों इंसान
आधा अधूरा ज्ञान लिये
गुण अपने करते बखान
कौन इन्हे अब समझाये
अधजल गगरी छलकत जाये
रेखा जोशी