Wednesday, 7 August 2013

मुक्तक

 मुक्तक
तुम्हारी चाहत लिए  हम पल पल मरते रहे
जीने  की  तमन्ना दिल में लिए तड़पते  रहे
दिन का सुकून और रातों  की नींदे  उड़ गई
अनजान बने  तुम्ही इस दिल में धड़कते रहे
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मुक्तक
हिंदू मुसलमां सिख ईसाई रब तू सब का
पुकार रहे तुझे सभी झुका के अपने शीश
हम सबको मिलजुल कर सिखा दो रहना
दया दृष्टि सभी पर रखना हे करूणाधीश

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