बसन्त
गुलाबों का मौसम बगिया में बहार
कुहुकती कोयलिया अम्बुआ की डार
मचलते अरमां थिरक रहे झूम झूम
हौले हौले बह रही बसंती बयार
,
पतझड़
खोये हो कहाँ अपना भूला अंगना
हुआ जीवन अब पतझड़ छूटा अंगना
बिखर गये पत्ते सभी टूट कर डार से
कैसी चली हवा सूना सूना अंगना
रेखा जोशी
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