Tuesday, 31 January 2017

बसंत/पतझड़


बसन्त

गुलाबों का मौसम बगिया में बहार
कुहुकती कोयलिया अम्बुआ की डार
मचलते अरमां थिरक रहे झूम झूम
हौले हौले बह रही बसंती बयार
,
पतझड़

खोये हो कहाँ  अपना भूला अंगना
हुआ जीवन अब पतझड़ छूटा अंगना
बिखर गये पत्ते सभी टूट कर डार से
कैसी चली हवा सूना सूना अंगना

रेखा जोशी

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