मेरी पुरानी रचना
सुबह के समय की ,हर रोज़ की तरह भाग दौड़ से ही शुरुआत हुई ,चाय को चुस्कियों का आनंद ,पिंकी के लिए नाश्ता बनाते बनाते ही उठाया ,इतने में ही सात बज गये ,जल्दी से पिंकी को जगा कर ,उसे झटपट नहला धुला कर भारती ने उसे स्कूल के लिए तैयार किया और उसके भारीभरकम स्कूल बैग को अपने काँधे पर लाद कर उसे स्कूल बस पर चढ़ाने घर से निकल पड़ी ,और भी कई बच्चे वहां खड़े बस का इंतज़ार कर रहे थे ,इतने में एक सुंदर सी महिला ,सलीके से साड़ी में लिपटी हुई पल्लू को काँधे पर अच्छे से टक किया हुआ ,सामने से आती हुई दिखाई पड़ी |उसे देखते ही ,बस का इंतज़ार करते हुए बच्चों ने ,”गुड मार्निंग ,टीचर ”कह कर उसका अभिवादन किया और उसने भी एक खिली हुई मुस्कुराहट के साथ उनके अभिवादन को स्वीकारते हुए ,बोला ,”गुड मार्निंग चिल्ड्रेन ”|इतने में बस आगई,और सभी जन उसमे सवार हो कर स्कूल के लिए निकल पड़े |
पिंकी को बस में चढ़ाने के बाद ,मै भी घर की ओर चल पड़ी ,रास्ते भर , मै अपने ही विचारों में खोई , यही ताने बाने बुनती रही कि कितना अंतर आगया है हमारे शिक्षा तन्त्र में ,सदियों से चली आ रही गुरुकुल प्रणाली हमारे समाज का एक विभिन्न अंग रही है और गुरु को हमारी संस्कृति में सर्वोच्च स्थान दिया गया है ,यहाँ तक कि राजे महाराजे भी गुरु के आगे सदैव नतमस्तक हो अपना शीश झुकाते रहें है |भारतीय संस्कृति की मजबूत नीव रही है ,यह गुरु शिष्य प्रणाली ,गुरु भी ऐसा जो निस्वार्थ भाव से अपने शिष्यों को विद्या का दान देता रहा और शिष्य भी ऐसे जो गुरु कि एक आवाज पर पूर्ण समर्पण को तैयार रहते थे |जो कुछ भी शिष्य अपने घरों से रुखा सूखा अपने गुरु के लिए ले आते थे उसी में उनकी गुरुमाता अपना जीवन यापन कर लेती थी |शांत वनों के वातावरण में बुद्धिजीवी ऋषियों की देख रेख में ,आश्रमों में सादगी से रहते हुए बालक अपनी शिक्षा ग्रहण किया करते थे |गुरु द्रोणाचार्य ,चाणक्य जैसे गुरुओं का बस एक ही उदेश्य हुआ करता था अपने शिष्यों का भविष्य ,उन्हें पूर्ण रूप से प्रशिक्षित करना |समय के साथ साथ शिक्षा का स्वरूप बदला, सभ्यता बदली ,गुरु बदले और शिष्य भी बदले ,विद्यालयों ,स्कूलों ने गुरुकुलों का स्थान ले लिया|
एक ऐसा भी समय आया था जब शिक्षक की छवि में आँख पर चश्मा चढाये और हाथ में डंडा लिए मास्टर जी कक्षा में पढाते नजर आते थे ,लेकिन बदलते वक्त के चलते स्कूलों की छवि में निखार आता गया ,कारपोरल पनिशमेंट एक्ट के अनुसार ,छात्र एवं छात्राओं को शारीरिक यातना देना मना है,लेकिन क्या सभी स्कूलों में इसका पालन होता है ?सरकारी स्कूलों में छात्र ,छात्राओं की पढाई को ले कर कई अनगिनत सवाल है ,क्या विद्यार्थी और अध्यापक अथवा अध्यापिकाओं से उनसे रिश्ता प्राइवेट स्कूलों जैसा है ?क्या सरकारी स्कूलों के अध्यापक गण अपनी पूरी निष्ठां से अपना काम करते है? कितनी शर्म की बात है कि इन स्कूलों में बच्चों से कई टीचर अपने निजी कार्य करवाते है और पढाने के नाम पर सिर्फ खानापूरी करते है |कई बार तो बच्चों की भावनाओं और संवेदनाओं को ताक पर रख कर उन्हें कठोर से कठोर दंड देने में भी नहीं हिचकचाते ,”|
सोचते सोचते कब घर आगया पता ही नहीं चला ,आते ही भारती घर का काम निबटाने में जुट गई ,दूसरे कमरे से टी वी की आवाज़ कानो में पड़ रही थी ,अचानक एक खबर सुनते ही काम करते करते उसके हाथ रुक गए ,”एक नौवीं कक्षा की छात्रा दूवारा आत्महत्या ,सन्न रह गई भारती ,मानसिक रूप से कितनी टूट गई होगी वह ,ऐसे कई समाचार हम आये दिन सुनते रहते है और ऐसी घटनाएँ केवल सरकारी स्कूलों में ही नहीं घटती ,इसकी चपेट में कई प्राइवेट एवम पब्लिक स्कूल भी आते है क्या इसके लिए शिक्षक उतरदायी नहीं है ?शिक्षा तो आजकल एक व्यवसाय बन गया है ,जिस में पिस रहें है छात्र ,छात्राओं के माँ बाप |अभी हाल ही में भारती की मुलाक़ात एक छोटी सी बच्ची की माँ से हुई जो एक टीचर के व्यवहार से बहुत परेशान थी ,कक्षा में उस छोटी सी बच्ची को बार बार डांटना और चांटे लगाना ,उस नन्ही सी बच्ची पर अनावश्यक दबाव ने उसे इतना भयभीत कर दिया था कि वह स्कूल जाने से ही कतराने लगी,अब ऐसी शिक्षिका के बारे में क्या कहा जाए ? क्या वह उस बच्ची को ट्यूशन से पढाना चाह रही थी ?
इंजीनिअरिंग और मेडिकल कालेज में दाखिला लेने के लिए माँ बाप अपनी मेहनत की कमाई के लाखों रूपये कोचिंग क्लासों में खर्च के देतें है |क्या स्कूल के शिक्षक ही अपने छात्रों को इन कालेजों में दाखिले के लिए तैयारी नहीं करवा सकते ? सारा दिन ऐसे अनेको सवालों में घिरी रही भारती ,बिस्तर पर लेटते ही कब आँख लगी पता ही नहीं चला |अगली सुबह फिर वही दिनचर्या ,पिंकी की ऊँगली पकड़ उसे बस में चढाने निकल पड़ी ,बस का इंतज़ार कर रहे बच्चे अपनी शिक्षिका के साथ खड़े थे ,तभी एक नन्ही , प्यारी सी बच्ची ,हाथ में गुलाब का फूल अपनी टीचर को देती हुई बोली ,”गुड मार्निंग टीचर ” |मै एक बार फिर सोच में पड़ गई,क्या यह सच में इस प्यारी सी गुड मार्निंग के योग्य है ??
पिंकी को बस में चढ़ाने के बाद ,मै भी घर की ओर चल पड़ी ,रास्ते भर , मै अपने ही विचारों में खोई , यही ताने बाने बुनती रही कि कितना अंतर आगया है हमारे शिक्षा तन्त्र में ,सदियों से चली आ रही गुरुकुल प्रणाली हमारे समाज का एक विभिन्न अंग रही है और गुरु को हमारी संस्कृति में सर्वोच्च स्थान दिया गया है ,यहाँ तक कि राजे महाराजे भी गुरु के आगे सदैव नतमस्तक हो अपना शीश झुकाते रहें है |भारतीय संस्कृति की मजबूत नीव रही है ,यह गुरु शिष्य प्रणाली ,गुरु भी ऐसा जो निस्वार्थ भाव से अपने शिष्यों को विद्या का दान देता रहा और शिष्य भी ऐसे जो गुरु कि एक आवाज पर पूर्ण समर्पण को तैयार रहते थे |जो कुछ भी शिष्य अपने घरों से रुखा सूखा अपने गुरु के लिए ले आते थे उसी में उनकी गुरुमाता अपना जीवन यापन कर लेती थी |शांत वनों के वातावरण में बुद्धिजीवी ऋषियों की देख रेख में ,आश्रमों में सादगी से रहते हुए बालक अपनी शिक्षा ग्रहण किया करते थे |गुरु द्रोणाचार्य ,चाणक्य जैसे गुरुओं का बस एक ही उदेश्य हुआ करता था अपने शिष्यों का भविष्य ,उन्हें पूर्ण रूप से प्रशिक्षित करना |समय के साथ साथ शिक्षा का स्वरूप बदला, सभ्यता बदली ,गुरु बदले और शिष्य भी बदले ,विद्यालयों ,स्कूलों ने गुरुकुलों का स्थान ले लिया|
एक ऐसा भी समय आया था जब शिक्षक की छवि में आँख पर चश्मा चढाये और हाथ में डंडा लिए मास्टर जी कक्षा में पढाते नजर आते थे ,लेकिन बदलते वक्त के चलते स्कूलों की छवि में निखार आता गया ,कारपोरल पनिशमेंट एक्ट के अनुसार ,छात्र एवं छात्राओं को शारीरिक यातना देना मना है,लेकिन क्या सभी स्कूलों में इसका पालन होता है ?सरकारी स्कूलों में छात्र ,छात्राओं की पढाई को ले कर कई अनगिनत सवाल है ,क्या विद्यार्थी और अध्यापक अथवा अध्यापिकाओं से उनसे रिश्ता प्राइवेट स्कूलों जैसा है ?क्या सरकारी स्कूलों के अध्यापक गण अपनी पूरी निष्ठां से अपना काम करते है? कितनी शर्म की बात है कि इन स्कूलों में बच्चों से कई टीचर अपने निजी कार्य करवाते है और पढाने के नाम पर सिर्फ खानापूरी करते है |कई बार तो बच्चों की भावनाओं और संवेदनाओं को ताक पर रख कर उन्हें कठोर से कठोर दंड देने में भी नहीं हिचकचाते ,”|
सोचते सोचते कब घर आगया पता ही नहीं चला ,आते ही भारती घर का काम निबटाने में जुट गई ,दूसरे कमरे से टी वी की आवाज़ कानो में पड़ रही थी ,अचानक एक खबर सुनते ही काम करते करते उसके हाथ रुक गए ,”एक नौवीं कक्षा की छात्रा दूवारा आत्महत्या ,सन्न रह गई भारती ,मानसिक रूप से कितनी टूट गई होगी वह ,ऐसे कई समाचार हम आये दिन सुनते रहते है और ऐसी घटनाएँ केवल सरकारी स्कूलों में ही नहीं घटती ,इसकी चपेट में कई प्राइवेट एवम पब्लिक स्कूल भी आते है क्या इसके लिए शिक्षक उतरदायी नहीं है ?शिक्षा तो आजकल एक व्यवसाय बन गया है ,जिस में पिस रहें है छात्र ,छात्राओं के माँ बाप |अभी हाल ही में भारती की मुलाक़ात एक छोटी सी बच्ची की माँ से हुई जो एक टीचर के व्यवहार से बहुत परेशान थी ,कक्षा में उस छोटी सी बच्ची को बार बार डांटना और चांटे लगाना ,उस नन्ही सी बच्ची पर अनावश्यक दबाव ने उसे इतना भयभीत कर दिया था कि वह स्कूल जाने से ही कतराने लगी,अब ऐसी शिक्षिका के बारे में क्या कहा जाए ? क्या वह उस बच्ची को ट्यूशन से पढाना चाह रही थी ?
इंजीनिअरिंग और मेडिकल कालेज में दाखिला लेने के लिए माँ बाप अपनी मेहनत की कमाई के लाखों रूपये कोचिंग क्लासों में खर्च के देतें है |क्या स्कूल के शिक्षक ही अपने छात्रों को इन कालेजों में दाखिले के लिए तैयारी नहीं करवा सकते ? सारा दिन ऐसे अनेको सवालों में घिरी रही भारती ,बिस्तर पर लेटते ही कब आँख लगी पता ही नहीं चला |अगली सुबह फिर वही दिनचर्या ,पिंकी की ऊँगली पकड़ उसे बस में चढाने निकल पड़ी ,बस का इंतज़ार कर रहे बच्चे अपनी शिक्षिका के साथ खड़े थे ,तभी एक नन्ही , प्यारी सी बच्ची ,हाथ में गुलाब का फूल अपनी टीचर को देती हुई बोली ,”गुड मार्निंग टीचर ” |मै एक बार फिर सोच में पड़ गई,क्या यह सच में इस प्यारी सी गुड मार्निंग के योग्य है ??
रेखा जोशी
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