Wednesday, 26 February 2014

यह बाँवरी अविरल अश्रुधारा

उठने
लगी आज
फिर
इक हलचल सी
सीने में मेरे
कसमसाने लगी
उफनती
भावनाएँ
बाँध रखा था
मैने जिन्हे
अब तक
नही रोक
पाई मै
आज उन्हें
तोड़ कर
सब बंधन 
उमड़ घुमड़ कर
बादल सी
बरसने लगी
फिर
नैनो से
यह बाँवरी
अविरल
अश्रुधारा

रेखा जोशी

No comments:

Post a Comment