वीरान
है यह दिल
बिन तुम्हारे
मालूम है
नही
आओ गे तुम
फिर भी
न जाने क्यों
इंतज़ार
है तुम्हारा
महक रहे
यह हसीन लम्हे
और
गुनगुनाती हुई
यह सुहानी शाम
बुला रही
है तुम्हे
अब तो
उतर आया है
चाँद भी
अंगना में
गुम है
यह दिल
जुस्तजू
में तेरी
और
तलाश रही है
तुम्हे मेरी
भीगी ऑंखें
रेखा जोशी
No comments:
Post a Comment