तुम कौन
पहचानते खुद को
मुखौटों के भीतर छिपा चेहरा
क्यों नही स्वीकारते
इस सत्य को
क्यों झुठला रहे स्वयं को
कर पाते अंतर जो
सत्य असत्य में
उषा निशा में
उजाले अंधकार में
दिन रात में
छोड़ तमस निकालो खुद को
समझ लो
जिस दिन तुम
स्वीकारो गे खुद को
पहचान पाओगे तुम अपने
वास्तविक रूप को
लौट आयेगी
फिर से तुम्हारी
अपनी पहचान
रेखा जोशी
पहचानते खुद को
मुखौटों के भीतर छिपा चेहरा
क्यों नही स्वीकारते
इस सत्य को
क्यों झुठला रहे स्वयं को
कर पाते अंतर जो
सत्य असत्य में
उषा निशा में
उजाले अंधकार में
दिन रात में
छोड़ तमस निकालो खुद को
समझ लो
जिस दिन तुम
स्वीकारो गे खुद को
पहचान पाओगे तुम अपने
वास्तविक रूप को
लौट आयेगी
फिर से तुम्हारी
अपनी पहचान
रेखा जोशी
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