Thursday, 22 January 2015

थक कर कहीं तुम रुक न जाना न समझना जीवन को भार

माना गम की रात लम्बी है सो जा तू चादर को तान
उषा किरण सुबह को जब आए बदल जाये समय की धार
थक कर कहीं तुम रुक न जाना न समझना जीवन को भार
मंजिलें मिलें गी आगे बहुत मिले गी तुम को नयी राह

रेखा जोशी 

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