Saturday, 10 January 2015

करूँ चाहे जितना भी गुस्सा सोऊं कभी न भूखे पेट [हास्य कविता ]

करूँ चाहे जितना भी गुस्सा  सोऊं कभी न भूखे पेट [हास्य कविता ]

प्यारी श्रीमतीजी से
करके  झगड़ा हम
बैठ गये धरने पर
गलती से हम
भूखे पेट हो गई रात
सो गये  गप्पू पप्पू
और
सो गई श्रीमती  भी
 चूहों ने तब
मचाई पेट में उछल  कूद
कुछ ऐसी
मारे  भूख के हुआ हाल बेहाल
नींद आँखों से कोसो दूर
रह रह कर आये हमे
तब 
गर्मागर्म रोटी की याद
तैरने लगे आँखों में
भांति  भांति के स्वादिष्ट पकवान
मटर पनीर मलाई कोफ्ता
मुहं में हमारे
भर आया पानी
रसोई में फिर घुसे हम
धीरे धीरे दबे पाँव
था अँधेरा घनघोर वहां
जा टकराये अलमारी से
छनाछन का राग अलापा
बर्तन ज़मीं से टकराये
चोर चोर का शोर मचाते
गप्पू पप्पू दौड़े आये
आगे आगे हम भागे
पीछे गप्पू पप्पू आये
सामने से आ धमकी
हमारी प्यारी श्रीमती जी
नीचीआँखे  कर हमने
किया कबूल अपना अपराध
खाई कसम
न लूँगा पंगा
करूँ चाहे जितना भी गुस्सा
सोऊं कभी न भूखे पेट


रेखा जोशी








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