प्रकृति का संगीत है पर्यावरण
वनसम्पदा का प्रतीक पर्यावरण
..
कोयल की कूक,पंछी की चहक
फूलो की महक,झरनों की छलक
रंगीं धरती का गीत है पर्यावरण
..
प्रदूष्ण ने फैलाया है जाल
लिपटी धरा उसमें है आज
बचाना है धरती का आवरण
..
कटे पेड़ों से बिगड़ा आकार
चहुँ ओर फैला है हाहाकार
टूटें तार ,सूना है पर्यावरण
..
आओ मिल लगायें नये पेड़ पौधे
सूनी धरा में खुशियाँ नई बो दे
नये स्वर बनायें रंगीं पर्यावरण
रेखा जोशी
वनसम्पदा का प्रतीक पर्यावरण
..
कोयल की कूक,पंछी की चहक
फूलो की महक,झरनों की छलक
रंगीं धरती का गीत है पर्यावरण
..
प्रदूष्ण ने फैलाया है जाल
लिपटी धरा उसमें है आज
बचाना है धरती का आवरण
..
कटे पेड़ों से बिगड़ा आकार
चहुँ ओर फैला है हाहाकार
टूटें तार ,सूना है पर्यावरण
..
आओ मिल लगायें नये पेड़ पौधे
सूनी धरा में खुशियाँ नई बो दे
नये स्वर बनायें रंगीं पर्यावरण
रेखा जोशी
No comments:
Post a Comment