Monday, 4 April 2016

प्रकृति का संगीत है पर्यावरण

प्रकृति का संगीत है पर्यावरण 
वनसम्पदा का प्रतीक पर्यावरण 
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कोयल की कूक,पंछी की चहक
फूलो की महक,झरनों की छलक 
रंगीं धरती का गीत है पर्यावरण 
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प्रदूष्ण ने फैलाया है जाल 
लिपटी धरा उसमें है आज 
बचाना है धरती का आवरण 
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कटे पेड़ों से बिगड़ा आकार 
चहुँ ओर फैला है हाहाकार 
टूटें तार ,सूना है पर्यावरण 
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आओ मिल लगायें नये पेड़ पौधे 
सूनी धरा में खुशियाँ नई बो दे 
नये स्वर बनायें  रंगीं पर्यावरण 

रेखा जोशी 

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