भगवददर्शन
श्री कृष्ण भगवान् ने जिस विराट रूप का दर्शन अर्जुन को करवाया था वही दर्शन पा कर श्रद्धावान पाठक आनंद प्राप्त करें गे ।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे '
श्री कृष्ण नमो नम:
[श्री मद भगवदगीता अध्याय 11 का पद्यानुवाद ]
अर्जुन ने कहा
1 अध्यात्म परम गूढ़ कहा मुझ पर कर दया ,
आप के इस वचन पर मोह मेरा मिट गया ।
2 भूतों का लय उदभव है सुना विस्तार से ,
औ sमाहात्म्य आप का ,कमलाक्ष आप से ।
3 जैसा कहा आपने ,आप हो हे ईश्वर ,
देखना मे चाहता रूप अव्यय ऐश्वर ।
4 यदि समझो हे प्रभु मै देख सकता हूँ उसे,
योगेश्वर दिखाओ रूप अव्यय वह मुझे।
5 देखो पार्थ सैंकड़ों औ हजारों रूप ये ,
नाना वर्ण आकृति दिव्य बहु विध रूप ये ।
6 देखो आदित्य वसु रूद्र ,मरूतगण दो अश्विनी ,
आश्चर्य देखो अर्जुन ,जो न देखे कभी ।
7 देखो मेरी देह में एकस्थ जग चर अचर ,
देख लो और अर्जुन देखना चाहो अगर ।
8 अपने इन चक्षुओं से ,न देख सकोगे मुझे ,
देख सको योग ऐश्वर ,दिव्य चक्षु दूँ तुझे ।
क्रमश :
प्रो महेंद्र जोशी
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