Tuesday 2 May 2017

अधूरे  सपने   अधूरी  ज़िंदगी 
जाने  कब पायें  पूरी   ज़िंदगी
यूँ ही जिये जा रहे हम यहाँ पर
है व्यर्थ ही यह  गुज़री ज़िंदगी

रेखा जोशी 

No comments:

Post a Comment